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________________ सूत्र २३१-२४३ एवं पुक्खरवरदीवड्ढ पुरत्थिमद्धे, एवं खरवरी २४२. - ठाणं ३, उ० ३, सु० १८३ जंबुद्दी वे तीस अकम्मभूमीओ२४०. ० कति भंते! अम्मभूमीओ पन्नताओ ? उ०- गोयमा ! तीस कम्मभूमी पणाओ तं जहा पंच हेमववाह, पंच हेरणवयाई, पंच रम्मगवासाई, पंच देवकुरुओ, पंच उत्तरकुरुओ । -भग० स० २, उ० ८, सु० २ २४१ छ अफम्मभूमीओ पन्यताओं तं जहाजंबुद्दीवे दीवे (१) हेमच (२) वा (३) हरिवासे, (४) रम्मगवासे, (५) देवकुरा, (६) उत्तरकुरा । एवं धादीने पुरविमर्द्ध छ अरुम्मभूमीमो पण्णत्ताओ, तं जहा - हेमवए - जाव उत्तरकुरा । एवं धादीने पण्यस्थिमणं छ अरुम्मभूमीम पण्णत्ताओ, तं जहा - हेमवए- जाव- उत्तरकुरा । एवं पुक्खरवरदीवड्ढ पुरस्थिमद्ध े णं छ अकम्मभूमीओ पणता तं जहा - हेमा-उत्तरकुरा । तिर्यक् लोक : अकर्मभूमियाँ एवं पुक्खरवरदीवड्ढ - पच्चत्थिमद्ध े णं छ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा हेमबए जाव उत्तरकुरा। - ठाणं ६, सु० ५२२ - देवकुद-उत्तरकुरु-बनाओ चत्तारि अकम्म भूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा – (१) हेमवए, (२) हेरण्णवए, (३) हरिवासे, (४) रम्मा -- - ठाणं ४, उ० १, सु० ३०२ २४३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं तओ अकम्मभूमीओ लाओ जहा (१) हेमबए, (२) हरिवासे, (३) देवकुरा । " जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं तओ अकम्मभूमीत पाओ जहा (१) उत्तरकुरा, (२) रम्मग वासे (३) रणए । एवं धादीपुरस्थिम वि अम्मभूमीओ, एवं धायइसंडे दीवे पच्चत्थिमद्ध े वि अकम्मभूमीओ, गणितानुयोग इसी प्रकार पुष्करवर- द्वीपा के पूर्वार्ध में हैं । इसी प्रकार पुष्करवर द्वीपार्थ के पश्चिमार्ध में हैं । तीस अकर्मभूमियाँ ! २४० प्र० ] भगवत् । अरुभूमियां कितनी कही गई है ? उ०- हे गौतम! अकर्मभूमियाँ तीस कही गई हैं, यथापांच हैमवत, पांच हैरम्यवत, पांच हरिवर्ष पाँच रम्यवर्ष पाँच देवकुरु, पांच उत्तरकुरु । १९३ २४१. जम्बूद्वीप नामक द्वीप में छह अकर्मभूमियाँ कही गई है, यथा- (१) हैमवत, (२) रण्यवत, (३) हरिवर्ष (४) रम्यवर्ष (५) देवकुरु, (६) उत्तरकुद | इसी प्रकार धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध में छह अकर्मभूमियां कही गई है, यथा-हेमवतात् उत्तरद इसी प्रकार धातकीखण्डदीप के पश्चिमार्थ में छह अकर्मभूमियां कही गई है, यथा हैमवत यावत् उत्तरकुरु । यथा-हैमवतं - - - इसी प्रकार पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध में छह अकर्मभूमियाँ कही गई हैं, यथा - हैमवत - यावत् उत्तरकुरु । इसी प्रकार पुष्करवर द्वीपार्ध के पश्चिमार्ध में छह अकर्मभूमियाँ कही गई है, यथा हैमवत यावत् उत्तरकुर २४२. जम्बूद्वीप नामक द्वीप में देवकुफ और उत्तरकुरु को छोड़कर चार अकर्मभूमियाँ कही गई हैं, यथा - (१) हैमवत, (२) हैरण्य-वत, (३) हरिवर्ष, (४) रम्य २४३. जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण में तीन अकर्म भूमियां कही गई हैं, यथा- (१) (२) हरिवर्ष (३) 1 देवकुम जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से उत्तर में तीन अकर्मभूमियां कही गई हैं, यथा ( १ ) उत्तरकुरु (२) रम्यवर्ष (३) रम्यवत इसी प्रकार धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में भी (छह ) अकर्म भूमियाँ हैं । इसी प्रकार धातकीखण्ड द्वीप के पश्चिमार्ध में भी (छह ) अकर्मभूमियाँ हैं । १ स्थानांग ६, सूत्र ५२२ में जम्बूद्वीप में छह अकर्मभूमियाँ कही गई है किन्तु इस सूत्र में देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर केवल चार अकर्मभूमियां कहने का तात्पर्य क्या है ? यह अन्वेषणीय है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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