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________________ १६२ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : सप्त वर्ष (क्षेत्र) वर्णन सूत्र २३४-२३६ जंबूद्दीवे दस खेत्ता जम्बूद्वीप में दस क्षेत्र-- २३४. जंबुद्दीवे दीवे दस खेत्ता, पण्णत्ता, तं जहा—(१) भरहे, (२) २३४. जम्बूद्वीप नामक द्वीप में दस क्षेत्र कहे गये हैं, यथा एरवए, (३) हेमवए, (४) हिरण्णवए, (५) हरिवासे, (६) (१) भरत, (२) ऐरवत, (३) हैमवत, (४) हैरण्यवत, (५) हरिरम्मगवासे, (७) पुश्वविदेहे, (८) अवरविदेहे, (९) देवकुरा, वर्ष, (६) रम्यक् वर्ष, (७) पूर्व विदेह, (८) अपर विदेह, (६) देव(१०) उत्तरकुरा।' -ठाणं १०, सु० ७२३ कुरु, (१०) उत्तरकुरु। जंबुद्दीव-खेताणं आयाम-विक्खंभ-परिणाहेण तुल्लतं- जम्बूद्वीप का आयाम-विष्कम्भ और परिधि की अपेक्षा से क्षेत्रों का तुल्यत्व - २३५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स उत्तर-दाहिणणं दो वासा २३५. जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से उत्तर और दक्षिण में पण्णत्ता, बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अन्नमन्नणाइवन्ति दो वर्ष (क्षेत्र) कहे गये हैं-वे अधिक समान एवं तुल्य हैं, आयाम-विक्खंभ-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा-(१) भरहे विशेषता रहित हैं, नानापन से रहित हैं, आयाम-विष्कम्भ-संस्थान चेव, (२) एरवए चेव। तथा परिधि की अपेक्षा से एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं, यथा-(१) भरत और (२) ऐरवत । एवमेएणमभिलावेणं (१) हेमवए चेव, (२) हेरण्णवए चेव । इसी प्रकार ऐसे ही अभिलापक्रम से हैमवत और हैरण्य वत है। एवमेएणमभिलावेणं (१) हरिवासे चेव, (२) रम्मयवासे चेव। इसी प्रकार ऐसे ही अभिलापक्रम से हरिवर्ष और रम्यक् वर्ष हैं। २३६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिम-पच्चत्थिमेणं दो २३६. जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व और पश्चिम में दो खेत्ता पण्णत्ता, बहुसमतुल्ला-जाव-आयाम-विक्खंभ-संठाण- क्षेत्र कहे गये हैं, वे अधिक समान एवं तुल्य हैं-यावत्-आयाम परिणाहेणं, तं जहा-(१) पुश्वविदेहे चेव, (२) अवरविदेहे विष्कम्भ-संस्थान तथा परिधि की अपेक्षा से एक-दूसरे का अति क्रमण नहीं करते हैं, यथा-(१) पूर्वविदेह और (२) अपरविदेह । २३७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणणं दो कुराओ २३७. जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से उत्तर और दक्षिण में पण्णत्ताओ, बहुसमतुल्लाओ-जाव-आयाम-विक्खंभ-संठाण-परि- दो कुरा कहे गये हैं-वे अधिक समान एवं तुल्य हैं-यावत्जाहेणं, तं जहा-(१) देवकुरा चेव, (२) उत्तरकुरा चैव। आयाम-विष्कम्भ-संस्थान तथा परिधि की अपेक्षा से एक-दूसरे -ठाणं० २, उ० ३, सु० ८६ का अतिक्रमण नहीं करते हैं, यथा-(१) देवकुरु (२) और उत्तर कुरु ।.... जंबुद्दीवे पण्णरस कम्मभूमीओ पन्द्रह कर्मभूमियाँ२३८. ५०-कति णं भंते ! कम्मभूमीओ पण्णत्ताओ? २३८. प्र०-हे भगवन् ! कर्मभूमियाँ कितनी कही गई हैं ? उ०-गोयमा ! पण्णरसकम्मभूमीओ पणत्ताओ, तं जहा- उ०-हे गौतम ! कर्मभूमियाँ पन्द्रह कही गई हैं, यथा- . पंच भरहाई, पंच एरवयाई, पंच महाविदेहाई। पाँच भरत, पाँच ऐरवत, पाँच महाविदेह । -भग० स० २०, उ०८, सु० १ २३६. जंबुद्दीवे दीवे तओ कम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- २३६. जम्बूद्वीप नामक द्वीप में तीन कर्मभूमियाँ कही गई हैं, (१) भरहे, (२) एरवए, (३) महाविदेहे । यथा-(१) भरत, (२) ऐरवत, (३) महाविदेह । एवं धायइ संडे दीवे पुरथिमद्ध, इसी प्रकार धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में हैं। एवं धाय इसंडे दीवे पच्चत्थिमद्ध, इसी प्रकार धातकीखण्ड द्वीप के पश्चिमार्ध में हैं । चेव। १ इस सूत्र में महाविदेह का नाम नहीं है किन्तु महाविदेह के चार विभाग (१. पूर्व विदेह, २. अपर-पश्चिम विदेह, ३. देव कुरु, ४. उत्तरकुरु के नाम गिनाकर दस की संख्या पूरी की गई है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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