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________________ १६० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : जयंतद्वार सूत्र २२७-२२६ जंबुद्दीवस्स जयंतं णामं दारं जम्बूद्वीप का जयन्तद्वार२२७. ५०-कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स जयंते णामं दारे २२७. प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप का जयन्त नामक द्वार कहाँ पण्णते ? पर कहा गया है ? उ०-गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स पच्चत्थि- उ०-हे गौतम ! जम्बूद्वीप के मन्दर पर्वत की पश्चिम मेण पणयालीसं जोयणसहस्साइं जंबुद्दीवपच्चत्थिम दिशा में पैंतालीस हजार योजन आगे जाने पर जम्बूद्वीप के पेरते लवणसमुद्दपच्चत्थिमद्धस्स पुरथिमेणं सीओदाए पश्चिमान्त में और लवणसमुद्र की पूर्व दिशा में सीतोदा महामहाणदीए उप्पिएत्थ णं जंबुद्दीवस्स जयंते णामं दारे नदी के ऊपर जम्बूद्वीप का जयन्त नामक द्वार कहा गया हैं। पण्णते। तं चेव से पमाणं जयंते देवे पच्चत्थिमेणं से इसके प्रमाण आदि का वर्णन विजयद्वार के वर्णन के जैसा रायहाणी जाव महिड्ढीए। जानना चाहिये । यहाँ के अधिपति का नाम जयन्त है, पश्चिम में -जीवा० ए०३, उ० १, सु० १४४ राजधानी है-यावत्-महाऋद्धि वाला है। जंबुद्दीवस्स अपराइयं णामं दार जम्बूद्वीप का अपराजित द्वार२२८. ५०-कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स अपराइए णामं दारे २२८. प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप का अपराजित नामक द्वार पण्णते? कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! मंदरस्स उत्तरेणं पणयालीसं जोयणसहस्साई उ०—हे गौतम ! मन्दर पर्वत की उत्तर दिशा में पैतालीस अबाहाए जंबुद्दीवे दीवे उत्तरपेरते लवणसमुदस्स उत्तर- हजार योजन आगे जाने पर जम्बूद्वीप की उत्तर दिशा के अन्त द्धस्स दाहिणेणं-एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे अपराइए णाम में और लवणसमुद्र के उत्तरार्द्ध की दक्षिण दिशा में जम्बूद्वीप दारे पण्णत्ते। का अपराजित नामक द्वार कहा गया है। तं चेब पमाणं । रायहाणी उत्तरेणं जाव अपराइए देवे इसके प्रमाण आदि का वर्णन विजयद्वार के वर्णन जैसा चउण्ह वि अण्णं मि जंबुद्दीवे ।' जानना चाहिये, उत्तर में राजधानी है-यावत् -अपराजित नामक देव वहाँ का अधिपति है। [जम्बूद्वीप के इन चारों द्वारों के विषय में अन्य जो कुछ भी विशेष वक्तव्य है, वह यहाँ कहा जाता है।] -जीवा०प०३, उ०२, सु०१४४ जंबुद्दीवस्स दारस्स दारस्स य अंतरं जम्बूद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर२२६. प०-जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स दारस्स य दारस्स य. २२६. प्र०-भगवन् ! जम्बुद्वीप के इन प्रत्येक द्वार से द्वार के एस णं केवइयं अबाहाए अंतरे पण्णते ? बीच में कितनी दूरी का अन्तर कहा गया है? उ०-गोयमा ! अउणासीइं जोयणसहस्साई बावष्णं च उ०-हे गौतम ! प्रत्येक द्वार से द्वार के बीच उन्यासी हजार जोयणाई देसूर्ण च अद्धजोयणं दारस्स य वारस्स य और कुछ कम साढ़े बावन योजन का अबाधा–अन्तर जानना अबाहाए अंतरे पप्णत्ते । चाहिये। --जीवा० प०३, उ०२, सु०१४५ १ जंबु० व. १, सु०७, सु० ८। २ जंबु० व० १, सु०६। सूत्र ६ में एक गाथा अधिक है, गाहा-अउणासीइ सहस्सा, बावण्णं चेव जोअणा । ऊणं च अद्धजोअण, दारंतरं जंबुद्दीवस्स ।।.
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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