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सूत्र २२२-२२६
तिर्यक् लोक : वैजयंतद्वार
गणितानुयोग
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उहपहरणा, तिणयाई तिसंधीणि, वइरामया कोडीणि, धणूइं नत, तीन सन्धियों वाले और वज्रमय कोटि (अग्रभाग) वाले ऐसे अहिगिज्झ परियाइय कंडकलावा णीलपाणिणो, पीयपाणिणो, विशिष्ट धनुष बाण और तूणीर लिये थे, कितनेक आत्मरक्षक देव रत्त-पाणिणो, चाव-पाणिणो, चारु-पाणिणो, चम्म-पाणिणो, हाथ में नीले-नीले बाण, कितनेक पीले-पीले और कितनेक रक्त खग्ग-पाणिणो, देउ-पाणिणो, पास-पाणिणो,
वर्ण के वाण लिये हुए थे, कितनेक देव हाथों में धनुष लिये हा थे, कितनेक चारु-शस्त्र विशेष, कितनेक चर्म (चमड़े से बना कोड़ा), कितनेक खड्ग (तलवार), कितनेक दंड, कितनेक पाश
(जाल) लिये हुए थे। णील-पीय-रत्त-चाव-चारु-चम्म-खग्ग-दंड-पासवरधरा, और कितने ही देव श्रेष्ठ नील, पीत और रक्त वर्ण के आयरक्खा रक्खोवगा गुत्ता, गुत्तपालिया, जुत्ता-जुत्तपालिया बाणों, धनुषों, चारुओं, चमों, तलवारों, दंडों और पाशों को लिये पत्तेयं पत्तेयं समयओ विणयओ किंकरभूताविव चिट्ठति । हुए थे, ये आत्मरक्षक देव रक्षा कार्य में निरत-तत्पर रहते हैं, -जीवा०प० ३, उ० १, सु० १४३ गुप्त वेश में, गुप्तरूप से कार्य करते हैं, अपने योग्य सहकारियों
से युक्त होते हैं, और इनकी कार्य परम्परा एक-दूसरे से जुड़ी हुई होती है, और ये प्रत्येक समय विनयपूर्वक किंकर के जैसे होकर
बैठते हैं। विजयदेवस्स सामाणियाणं देवाणं य ठिई
विजयदेव के सामानिक देवों की स्थिति२२३. प०-विजयस्स णं भंते ! देवस्त केवइयं कालं ठिई २२३. प्र०-हे भगवन् ! विजयदेव की स्थिति कितने काल की पण्णत्ता?
कही गई है ? उ०—गोयमा ! एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता।
उ०—हे गौतम ! विजय देव की स्थिति एक पल्योपम की
कही गई है। २२४. ५०--विजयस्स णं भंते ! देवस्स सामाणियाण देवाणं केवइयं २२४. प्र०—हे भगवन् ! विजय देव के सामानिक देवों की स्थिति कालं ठिई पण्णता?
कितने काल की कही गई है ? उ०-गोयमा ! एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता।
उ०-हे गौतम ! एक पल्योपम की स्थिति कही गई है। एवं महिड्ढीए, एवं महज्जुईए, एवं महब्बले, एवं महायसे "इस प्रकार से विजयदेव की ऐसी महा ऋद्धि है, ऐसी एवं महासुक्खे, एवं महाणुभागे विजए देवे विजए देवे। महा छ ति है, ऐसा महाबल है, ऐसा महायश है, ऐसा महासुख
-जीवा०प० ३, उ० २, सु० १४३ है, और ऐसा महान् प्रभाव है। जंबुद्दीवस्स वेजयंतं णाम दारं
जम्बूद्वीप का वैजयन्त द्वार२२५. ५०-कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स वेजयते णाम दारे पण्णत्ते? २२५. प्र०—हे भगवन् ! जम्बूद्वीप का वैजयन्त नामक द्वार कहाँ
पर कहा गया है ? उ०-गोयमा ! जंबुद्दीवे बोवे मंदरस्स पव्वयस्स दक्खिणेणं उ०—हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर पर्वत
पणयालीसं जोयणसहस्साई अबाहाए जंबुद्दीवरीव- (सुमेरु पर्वत) की दक्षिण दिशा में पैतालीस हजार योजन आगे दाहिण-पेरते लवणसमुद्द दाहिणद्धस्स उत्तरेणं-एत्थ णं जाने पर जम्बूद्वीप की दक्षिणदिशा के अन्त में और लवणसमुद्र जंबुद्दीवस्स बीवस्स बेजयंते णामं दारे पण्णत्ते । के दक्षिणार्ध से उत्तर में जम्बूद्वीप का वैजयन्त नामक द्वार कहा
गया है। अट्ठजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, सच्चेव सव्वा बत्तवया यह वैजयन्त द्वार आठ योजन ऊँचा है, इत्यादि विजय द्वार जाव णिच्चे।
के जैसी इसकी सब वक्तव्यता है-यावत्-नित्य है । २२६. ५०-कहि णं भंते ! रायहाणी?
२२६. प्र०-हे भगवन् ! वैजयन्त देव की राजधानी कहाँ पर है
और क्या नाम है ? उ०-गोयमा ! दाहिणण-जाव-वेजयंते देवे, वेजयंते देवे। उ०-गौतम ! दाहिनी ओर राजधानी हैं, उसका नाम
-जीवा०प० ३, उ० १, सु०१४४ वैजयन्ती है, और वहाँ का अधिपति वैजयन्त नामक देव है।