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________________ मूत्र १६७ तिर्यक् लोक : विजयद्वार गणितानुयोग १७६ अप्पेगइया देवा अप्फोडेंति, अप्पेगइया देवा वगंति, कितने ही देव ताल ठोकते हैं, कितने ही देव उछल-कूद करते अप्पेगइया देवा तिति, अप्पेगइया देवा छिति, अप्पेगइया हैं, कितने ही देव छलांग लगाते हैं, कितने ही देव छेदन-भेदन देवा अप्फोडेति, वगंति, तिति, छिति । करते हैं, कितने ही देव ताल ठोकते हैं, उछल-कूद करते हैं, छलांग मारते हैं, और छेदन-भेदन करते हैं। अप्पेगइया देवा हयहेसिधं करेंति, अप्पेगइया देवा हत्थि- कितने ही देव घोड़े जैसे हिनहिनाते हैं, कितने ही देव हाथी गुलगुलाइयं करेंति, अप्पेगइया देवा रहघणघणाइयं करेंति, जैसे गुडगुड़ाहट करते हैं. कितने ही देव रथ जैसी घनघनाहट करते अप्पेगइया देवा हयहेसियं, हत्थिगुलगुलाइयं रहघणघणाइयं हैं, कितने ही देव घोड़े जैसी हिनहिनाहट करते हैं, हाथी जैसी करेंति । गुडगुडाहट और रथ जैसी घनघनाहट करते हैं। अप्पेगइया देवा उच्छोलेंति, अप्पेगइया देवा पच्छोलेंति, कितने ही देव हर्षातिरेक से उछलते हैं, कितने ही देव आँखें अप्पेगइया देवा उक्किट्ठीओ करेंति, अप्पेगइया देवा उच्छो- मटकाते हैं, कितने ही एक-दूसरे को गोदी में उठा लेते हैं, और लेंति, पच्छोलेंति, उक्किट्ठीओ करेंति । कितने ही देव उछलते हैं, आँखें मटकाते हैं एवं एक-दूसरे को गोदी में उठा लेते हैं। अप्पेगइया देवा सीहणादं करेंति, अप्पेगइया देवा पाय- कितने ही देव सिंहनाद करते हैं, कितने ही देव जोर-जोर से दहरयं करेंति, अप्पेगइया देवा भूमिचवेडं दलयंति, अप्पेगइया जमीन पर पैर पटकते हैं, कितने ही देब जमीन पर हाथों को देवा सीहणादं, पायदद्दरयं करेंति, भूमिचवेडं दलयंति । पटकते हैं, और कितने ही देव सिंहनाद करते हैं, जमीन पर पैर पटकते हैं, एवं हाथों को पटकते हैं। अप्पेगइया देवा हवकारेंति, अप्पेग इया देवा बुक्कारेंति, कितनेक देव एक-दूसरे को पुकारते हैं, कितनेक देव बकरे अप्पेगइया देवा थक्कारेंति, अप्पेगइया देवा पुवकारेति, अप्पे- की तरह बुगबुगाहट करते हैं, कितनेक देव थकथकाहट करते हैं, गइया देवा नामाइं सावेति, अप्पेगइया देवा हक्कारेंति, कितनेक देव फुत्कराहट करते हैं, कितनेक देव आपस में एक-दूसरे वुक्कारेति, थक्कारेंति, पुक्कारेति, णामाइं सावेंति । के नामों को सुनाने लगते हैं, और कितनेक देव आपस में एक दूसरे को पुकारते हैं, बुगबुगाहट करते हैं, थकथकाहट करते हैं, फुत्कराहट करते हैं, और एक-दूसरे के नामों को सुनाते हैं। अप्पेगइया देवा उप्पतंति, अप्पेगइया देवा णिवयंति, कितनेक देव ऊपर को उछलते हैं, कितनेक देव जमीन पर अप्पेगइया देवा परिवयंति, अप्पेगइया देवा उप्पयंति, णिव- लोटपोट होते हैं, कितनेक देव वाँके-तिरछे होते हैं, और कितनेक यंति, परिवयंति। देव ऊपर उछलते हैं, लोटपोट होते हैं एवं वाँके-तिरछे नमते हैं । अप्पेगइया देवा जलेंति, अप्पेगइया देवा तवंति, अप्पेगइया कितनेक देव दैदीप्यमान ज्वालाओं को प्रगट करने का रूपक देवा पतवंति, अप्पेगइया देवा जलेंति, तवंति, पतवति । दिखाते हैं, कितने ही देव महान तपस्वी होने का रूपक दिखाते हैं, और कितने ही देव अत्यधिक ज्वालाओं को प्रगट करने का रूपक दिखाते हैं, कितने ही देव ज्वाला प्रकट करते हैं तपस्वी होने का तथा अत्यधिक ज्वाला प्रकट करने का रूपक दिखाते हैं । अप्पेग इया देवा गज्जेंति, अप्पेगइया देवा विज्जयायंति, कितनेक देव मेघ गर्जना जैसे दृश्य को उपस्थित करते हैं, अप्पेग इया देवा वासे ति, अप्पेग इया देवा गज्जेति, विज्जया- कितने ही देव मेघ विद्य त के चमकने का दृश्य दिखाते हैं, कितने गंति, वासें ति । ही देव मेघवर्षा का दृश्य दिखाते हैं, और कितने ही देव मेघ गर्जना, विद्युत के चमकने (कोंधने) एवं मेघवर्षा का दृश्य उपस्थित करते हैं। अप्पेगइया देवा देव-सन्निवायं करेंति, अप्पेगइया देवा कितने ही देव एक-दूसरे के गले मिलते हैं, कितने ही देव देववक लिगं करेंति, अप्पेग इया देवा देवकहकह करेंति, अप्पे- खेल-कूद आदि क्रीड़ा करते हैं, कितने ही देव कहकहे लगाते हैं, गइया देवा देवदुहदुहं करेंति, अप्पेगइया देवा देवसन्निवायं कितने ही देव दुह-दुहध्वनिघोष करते हैं, और कितनेक देव देवुक्कलियं, देवकहकहं, देवदुहदुहं करेंति । आपस में गले मिलते हैं, खेल-कूद आदि क्रीडा करते हैं, कहकहे लगाते हैं, एवं दुह-दुह घोष करते हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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