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सूत्र १८४-१८६
तिर्यक् लोक : विजयद्वार
गणितानुयोग
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एगा महा ववसायसभा
एक महान व्यवसायसभा१८४. तोसे णं आलंकारिय सभाए उत्तर-पुरस्थिमेणं-एस्थ णं एगा १८४. इस अलंकार सभा के उत्तर-पूर्व ईशान-दिशा में एक विशाल महा ववसायसभा पण्णत्ता।
व्यवसाय सभा कही गई है। अभिसेयसभा वत्तव्वया-जाव-अपरिवार ।
इस व्यवसाय सभा का वर्णन भी भद्रासन आदि रूप परिवार -जीवा०प० ३, उ० १, सु० १४० से रहित सिंहासन तक अभिषेक सभा के वर्णन सदृश करना
चाहिये। विजयदेवस्स एग महं पोत्थयरयणं
विजयदेव का एक महान् पुस्तक रत्न१८५. तत्थ णं विजयस्स देवस्स एगे महं पोत्थयरयणे संनिक्खित्ते १८५. इस सिंहासन पर विजयदेव का एक श्रेष्ठ-उत्तम-विशाल
चिट्टइ। तत्थ गं पोत्थयरयणस्त अयमेयारूवे वण्णावासे पुस्तक रत्न रखा हुआ है, इस पुस्तक रत्न का वर्णन इस प्रकार पण्णते, तं जहा-रिट्ठामईओ कंबियाओ।
का कहा गया है, यथा-रिष्ट रत्न से बना हुआ जिसका आवरण
पृष्ठ (पुट्ठा) है। रयतामताति पत्तकाई,
चाँदी से जिसके पृष्ठ (पन्ने) बने हैं । रिट्ठामयाति अक्खराई,
रिष्ट रत्न से बने जिसमें अक्षर हैं । तवणिज्जमए दोरे,
डोरे (बाँधने की रस्सी) तपनीय स्वर्ण के बने हैं। णाणामणिमए गंठी,
इन डोरों में अनेक मणियों की गांठें लगी हैं। वेरुलियमए लिप्पासणे,
वैडूर्य रत्न के लिप्यासन-दावात हैं। तवणिज्जमयी संकला,
लिप्यासन में जो सांकल लगी है वह तपनीय स्वर्ण की बनी
रिटुमए छादने,
मषी-पात्र-दावात का ढक्कन रिष्ट रत्न का बना हुआ है। रिट्टामया मसी,
स्याही रिष्ट रत्न की बनी हुई है। वइरामयो लेहणी,
वज्ररत्न की बनी लेखनी है। रययामयाइं पत्तकाई,
इसके पत्र चाँदी के बने हैं। [अंकमयाई पत्ताई,]
(अंकरत्न से इसके पत्र बने हैं।) रिडामयाइं अक्खराइं, धम्मिए सत्थे ।
अक्षर रिष्ट रत्न के बने हुए हैं, और यह पुस्तकरत्न धर्म
शास्त्र है। १८६. ववसायसभाए णं उप्पि अदृट्ठमंगलगा, झया, छत्ताइछता, १८६. व्यवसाय सभा के ऊपर उत्तम आकार प्रकार के आठ-आठ
उत्तिमागारेति । -जीवा०प०३, उ० २, मु० १४० मंगलद्रव्य ध्वजायें, और छत्रातिछत्र हैं । एग महं बलिपेढं तस्स य पमाणं
एक महा बलिपीठ और उसका प्रमाण१८७. तीसे णं ववसायसभाए उत्तर-पुरथिमेणं-एत्थ णं एगे महं १८७. इस व्यवसाय सभा के ईशानकोण में एक विशाल बलिपीठ
बलिपेढे पण्णत्ते, से ण दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं जोयणं कहा गया है, वह बलिपीठ दो योजन का लम्बा-चौड़ा, एक योजन बाहल्लेणं, सम्वरययामए अच्छे-जाव-पडिरूवे ।
मोटा, और सर्वात्मना चाँदी से बना हुआ स्वच्छ-यावत्
प्रतिरूप है। १८८. एत्थ णं तस्स णं बलिपेढस्स उत्तर-पुरथिमेणं एगा महई १८८, इस बलिपीठ के उत्तर-पूर्व दिग्भाग में एक उत्तम विशाल गंदा पुक्खरिणी पण्णत्ता, जं चेव माणं हरयस्स तं चेव सव्वं । नन्दा पुष्करिणी कही गई है, जैसा पूर्व में पुष्करिणी की लम्बाई-जीवा० ५० ३, उ० २, सु० १४० चौड़ाई आदि का प्रमाण आदि कहा गया है, वैसा ही सब
इस नन्दा पुष्करिणी का तथा ह्रदों का वर्णन समझना चाहिये। विजयदेवस्स उववायं
विजयदेव का उपपात (जन्म)१८६. तेणं कालेणं तेणं समएणं विजए देवे विजयाए रायहाणीए, १८६. उस काल और उस समय में विजयदेव विजया राजधानी