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________________ १६८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : विजयद्वार सूत्र १६७-१६६ रिट्ठामईओ रोमरोईओ, रिष्ट रत्न की इनकी रोमराजि है, तवणिज्जमया चुच्चुया,तवणिज्जमया सिरिवच्छा, तपनीय स्वर्ण के इनके चुचुक (स्तन के अग्रभाग) और श्रीवत्स है, कणगमयाओ बाहाओ, स्वर्णमय इनकी बाँहें हैं, कणगमईओ पासाओ, स्वर्णमय पार्श्वभाग (पसलियों का भाग) है, . कणगमईओ गीवाओ, स्वर्णमयी इनकी ग्रीवा है, रिट्ठामए मंसु, रिष्ट रत्न के वर्ण जैसी इनकी मश्रु दाढ़ी-मूंछे हैं, सिलप्पवालमया उट्ठा, इनके ओठ शिलाप्रवाल-मूंगा के हैं, फलिहामया दंता, इनके दाँत स्फटिकमणि के बने हुए हैं, तवणिज्जमईओ जीहाओ, इनकी जीभ तपनीय स्वर्ण की बनी हुई है, तवणिज्जमया तालुया, और इनका तालु भाग तपनीय स्वर्ण का बना हुआ है, कणगमईओ णासाओ, इनकी नासिका स्वर्ण की बनी हुई है, अंतो लोहितक्ख परिसेयाओ, नाक के भीतर की रेखा आदि भाग लोहिताक्ष रत्न का बना हुआ है, अंकामयाई अच्छीणि, इनकी आँखें अंकरत्न की बनी हुई है, पुलगमईओ दिट्ठीओ, इनकी दृष्टिका चितवन-पुलक-रत्न विशेष की बनी हुई है, रिट्ठामईओ तारगाओ, आँखों की तारिकायें कनीनिकायें, रिष्ट रत्न की बनी हुई हैं, रिट्ठामयाई अच्छिपत्ताई, आँखों की बरौनियाँ (अक्षिपत्र) रिष्ट रत्न की बनी हुई हैं, रिट्ठामईओ भमुहाओ, और भौहें भी रिष्ट रत्न की बनी हुई हैं, कणगामया कवोला, इनके कपोल-गाल स्वर्ण के बने हुए हैं, कणगामया सवणा, इनके कान स्वर्ण के बने हुए हैं, कणगामया णिडाला, इनके भाल ललाट स्वर्ण के बने हुए हैं, वट्टा वइरामईओ सीसघडीओ, इनके मस्तक वतु'लाकार वजरत्न के बने हुए हैं, तवणिज्जमईओ केसंतकेसभूमीओ, तपनीय स्वर्ण की इनकी केशभूमि (टाल चाँद), रिट्ठामया उवरिमुद्धजा, और रिष्ट रत्न के इनके सिर के बाल हैं। १६८. तासि णं जिणपडिमाणं पिट्टओ पत्तेयं पत्तयं छत्तधारपडिमाओ १६८. इन जिनप्रतिमाओं में से प्रत्येक जिनप्रतिमाओं के पीछे पण्णताओ, ताओ गं छत्तधारपडिमाओ हिम-रयय-कुन्देंदु. छत्र धारण करने वाली प्रतिमायें कही गई हैं, ये छत्रधारिणी सप्पकासाई, सकोरेंटमल्लदामधवलाई आतपत्ताई सलील प्रतिमायें हाव-भाव-विलासपूर्वक हिम, रजत, कुन्दपुष्प, और ओहारमाणीओ चिट्ठन्ति । चन्द्रमा की प्रभा के समान श्वेत प्रभा वाले और कोरंट पुष्पों की माला से युक्त आतपत्रों को उत्साहपूर्वक उन प्रतिमाओं के ऊपर ताने हुए खड़ी है। १६६. तासि णं जिणपडिमाणं उभओ पासि पत्तेयं पत्तेयं चामर- १६६. इन जिन प्रतिमाओं में से प्रत्येक जिन प्रतिमा की दोनों धार पडिमाओ पन्नत्ताओ, ताओ णं चामरधारपडिमाओ बाजुओं में अलग-अलग चामरधारिणी प्रतिमायें कही गई हैं । ये चंदप्पह-वइर-वेरुलिय-णाणामणि-कणग-रयण-विमल-महरिह- चामरधारिणी प्रतिमायें इन प्रतिमाओं के ऊपर चन्द्रकान्त, वज्र, तवणिज्जुज्जल-विचित्तदंडाओ, चिल्लियाओ, संखंक-कुन्द- वैडूर्य आदि अनेक प्रकार की महामूल्यवान् मणियों, कनक दगरय-अमय-मथित-फेज-पुंज सण्णिकासाओ सुहुभरययदोह आदि रत्नों और तपनीय स्वर्ण से बनी हुई उज्ज्वल कांतियुक्त, बालाओ, धवलाओ चामरायो सलीलं ओहारमाणीओ चित्र विचित्र डांडियाँ हैं, जिनकी ऐसे दैदीप्यमान शंख, कुन्दपुष्प, चिट्ठन्ति । जलकण, अमृत और मथित फैन पुज के सदृशः चाँदी के बारीक तारों जैसे लम्बे-लम्बे बालों वाले श्वेत-धवल-चामरों की विलासपूर्वक ढोरती हुई खड़ी हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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