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घूत्र १४०-१४६
तिर्यक् लोक : विजयद्वार
गणितानुयोग
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१४०. तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं उपि अट्ठमंगलगा, झया, छत्ता- १४०. इन प्रेक्षागृह मंडपों के ऊपर आठ-आठ मंगल द्रव्य है, इछत्ता।
ध्वजायें हैं, छत्रातिछत्र है। १४१. तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ तिदिसि तओ मणिपेढियाओ, १४१. इन प्रेक्षागृह मंडपों के सामने तीन दिशाओं में तीन मणिपण्णत्ताओ।
पीठिकायें कही गई है। ताओ णं मणिपेढियाओ दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, ये मणिपीठिकायें दो योजन की लम्बी-चौड़ी और एक योजन जोयणं बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ-जाव- की मोटी है, सभी सर्वात्मना रत्नमयी स्वच्छ --यावत - पडिरूवाओ। -जीवा० ५० ३, उ० १, सु० १३७ प्रतिरूप है। चेइयथभाणं पमाणं
चैत्यस्तूपों का प्रमाण१४२. तासि णं मणिपेढियाणं उपि पत्तेयं पत्तेयं चेइयथूभा पण्णत्ता, १४२. इन प्रत्येक मणिपीठिकाओं के ऊपर अलग-अलग चैत्य
तेणं चेइयथभा दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाइं स्तूप कहे गये हैं, ये चैत्य स्तूप दो योजन के लम्बे-चौड़े, और दो जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, सेया, संखककुन्ददगरयामय ऊँचाई में कुछ अधिक दो योजन के ऊँचे हैं, इनका वर्ण शंख, महियफेणपुञ्ज सप्णिकासा सव्वरयणामया अच्छा-जाव- कुन्दपुष्प, जलकण, अमृत और मथित फेन पुज के समान श्वेत पडिरूवा।
है, ये सभी सर्वात्मना रत्नमय, स्वच्छ - यावत् -प्रतिरूप हैं। १४३. तेसि णं चेइयथूभाणं उप्पि अट्ठमंगलगा, बहुकिण्हचामर, १४३. इन चैत्य स्तूपों के ऊपर आठ-आठ मंगलद्रव्य, अत्यन्त झया, पण्णत्ता छत्ताइछत्ता।
कृष्णवणीय चामर आदि ध्वजाये छत्रातिछत्र कहे गए हैं। तेसि ण चेइयथूभाण चउद्दिसि पत्तेयं पतयं चतारि मणि- इन प्रत्येक चैत्य स्तूपों की चारों दिशाओं की पृथक्-पृथक् पेढियाओ पणत्ताओ।
चार मणिपीठिकायें वही गई है। ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयाम-विक्खंभेण, अद्ध- वे मणिपीठिकायें एक योजन की लम्बी-चौड़ी और आधे जोयण बाहल्लेणं, सब्बमणिमईओ।
योजन की मोटी हैं, तथा सर्वात्मना मणिमयी है। -जीवा० प० ३, उ० १, सु० १३७ चत्तारि जिणपडिमाओ
चार जिनप्रतिमायें
१४४. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं पत्तेयं चत्तारि जिण- १४४. इन प्रत्येक मणिपीठिकाओं के ऊपर अलग-अलग चार जिन
पडिमाओ जिणुस्सेहपमाणमेत्ताओ पलियंकणिसण्णाओ थूभाभि- प्रतिमायें हैं, जिनका उत्सेध जिनेश्वर के उत्सेध प्रमाण है, अर्थात् महीओ सन्निविट्ठाओ चिट्ठन्ति, तं जहा- (१) उसभा, (२) जिनका उत्सेध उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष और जघन्य सात हाथ का बद्धमाणा, (३) चंदाणणा, (४) वारिसेणा ।
है, ये सब जिन प्रतिमाएँ पर्यकासन से बैठी हुई हैं, और इनका मुख स्तूप के अभिमुख है, प्रतिमाओं के नाम इस प्रकार है
(१) वृषभ, (२) वर्धमान, (३) चन्द्रानन, (४) वारिसेण । १४५. तेसि णं चेइययभाणं पुरओ तिदिसि पतेयं पतेयं मणिपेकि- १४५. इन चैत्य स्तूपों के आगे तीन दिशाओं में अलग-अलग
याओ पण्णत्ताओ। ताओ णं मणिपेढियाओ दो दो जोयणाई मणि-पीठिकायें कही गई है, वे मणिपीठिकाएँ दो-दो योजन की आयाम-विक्खंभेणं, जोयण बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ लम्बी-चौड़ी, एक योजन की मोटी, सर्वात्मना रत्नमयी, स्वच्छअच्छाओ-जाव-पडिरूवाओ।
यावत्-प्रतिरूप है। -जीवा०प०३, उ०१, सु० १३७ चेइयरुक्खाणं पमाणं
चैत्यवृक्षों का प्रमाण१४६. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं पत्तेयं चेइयरुवखा पण्णत्ता, १४६. इन प्रत्येक मणिपीठिकाओं के ऊपर अलग-अलग चैत्य वृक्ष
तेणं चेइयरक्खा अट्ठ जोयणाई उडढं उच्चत्तेणं, अद्धजोयणं कहे गये हैं, ये चैत्य वृक्ष आठ योजन ऊँचे हैं, उद्वेध की अपेक्षा उब्वेहेणं, दो जोयणाई खंधी, अद्धजोयणं विक्खंभेणं छ जोय- (गहराई में, नींव में) आधे योजन के हैं, इनके स्कन्ध दो योजन
के विस्तृत हैं, और वह स्कन्ध आधा योजन मोटा है, छह योजन