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________________ १५८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : विजयद्वार सूत्र १२६-१३४ पासायडिसगाणं पमाणं प्रासादावतंसकों का प्रमाण१२६. ते णं पासायडिसगा एक्कतीसं जोयणाई कोसं च उड्ढे १२६. ये प्रासादावतंसक ऊँचाई में एक कोस अधिक इकतीस उच्चत्तेणं अद्धसोलस जोयणाई अद्धकोसं च आयामविक्खंभेणं योजन ऊँचे हैं, तथा साढ़े पन्द्रह योजन और आधे कोस के लम्बे-. अब्भुग्गतमूसियपहसियाविव विविहमणिन्यण - भत्तिचित्ता चौड़े हैं, अपनी ऊँचाई से ऐसे प्रतीत होते हैं कि आकाश का तहेव, तेसि णं पासायडिसयाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा स्पर्श करते हुए उसका उपहास ही कर रहे हैं, अनेक प्रकार के भूमिभागा उल्लोया। मणिरत्नों के चित्रामों से चित्रित है, इत्यादि वर्णन पूर्व में किये गये वर्णन के अनुरूप कहना चाहिये, इन प्रासादावतंसकों का अन्तर्वर्ती भूमिभाग अत्यधिक सम और रमणीय है, और चाँदनी अगासी है, इत्यादि वर्णन करना चाहिये। तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए इन बहु सम रमणीय भूमिभागों के बीचों-बीच पृथक्-पृथक् पत्तेयं पत्तेयं सीहासणं पण्णत्तं, वण्णओ। सिंहासन कहे गये हैं, उनका वर्णन करना चाहिये। तेसि परिवारभूता भद्दासणा पण्णत्ता, तेसि णं अट्ठट्ठमंगलगा इन सिंहासनों के परिवार-भूत अन्य भद्रासन कहे गये हैं, झया छतातिछत्ता। और उनके आठ-आठ मंगलद्रव्य ध्वजायें, छत्रातिछत्र है, (इत्यादि सबका वर्णन यहाँ पर करना चाहिये ।) १३०. ते णं पासायडिसका अर्णोहिं चउहिं चहिं तदद्धच्चत्तपमाण- १३०. ये प्रासादवतंसक भी अन्य चार-चार प्रासादावतंसकों से मेत्तेहिं पासायवडेंसएहि सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता । सर्व दिशाओं में घिरे हुए हैं, जिनकी ऊँचाई उन प्रासादावतंसको से आधी है। १३१. ते णं पासायव.सका अद्धसोलसजोयणाई अद्धकोसं च उड्ढं १३१. ये सभी प्रासादावतंसक साधिक अर्ध कोस साढ़े पन्द्रह उच्चत्तेणं देसूणाई अट्ट जोयणाई आयामविक्खभेणं अन्भुग्गय- योजन के ऊँचे हैं, कुछ कम आठ योजन के लम्बे-चौड़े हैं, तथा मूसियपहसियाविव विविहमणिरयणभत्तिचित्ता तहेव, तेसि अपनी ऊँचाई से आकाश का स्पर्श करते हुए ऐसे प्रतीत होते हैं, णं पासायवडेंसगाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा कि, उसका उपहास ही कर रहे हैं, विविध मणिरत्नों से बने उल्लोया, तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झ- चित्रों से चित्रित है, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् करना चाहिये, इन देसभाए पत्तेयं पत्तेयं पउमासणा पण्णत्ता, तेसि णं पासायाणं प्रासादावतंसकों का भीतरी भाग बहुत ही सम और रमणीय है, अट्ठट्ठमगलगा झया छत्तातिछत्ता। और चाँदनी-अगासी है, उन बहु सम और रमणीय भूमिभागों के अति मध्य प्रदेश में पृथक्-पृथक् पद्मासन कहे गये हैं, उन प्रासादों के अग्र भाग में आठ-आठ मंगलद्रव्य; ध्वजायें छत्राति-- १३२. ते पासायवडेंसगा अण्णेहि चहिं तदुद्धच्चत्तपमाणमेत्तेहिं १३२. ये प्रासादावतंसक अपने से आधी ऊंचाई के प्रमाण वाले पासायब.सएहि सव्वतो समता संपरिक्खित्ता । अन्य चार प्रासादावतंसकों द्वारा सर्वतः चारों दिशाओं में घिरे १३३. ते णं पासायवडेंसका देसुणाई अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेण १३३. ये प्रासादावतंसक देशोन आठ योजन ऊँचे और देशोन चार देसूणाई चत्तारि जोयणाई आयामविक्खंभेणं अब्भुग्गतमूसिय- योजन के लम्बे-चौड़े हैं, तथा अपनी ऊंचाई से आकाश मंडल का पहसियाविव विविहमणिरयणभत्तिचित्ता भूमिभागा उल्लोया स्पर्श करते हुए मानो उसका उपहास करते हुए से प्रतीत होते हैं भद्दासणाई उरि मंगलगा झया छत्तातिछत्ता । विविध मणि रत्नों से बने हुए अनेक प्रकार के चित्रों से चित्रित हैं, भूमिभाग, उल्लोकों, भद्रासनों के ऊपर अष्ट मंगलद्रव्य, ध्वजायें, छत्रातिछत्र इत्यादि वर्णन कर लेना चाहिये । १३४. ते णं पासाय वडेंसगा अण्णेहिं चउहि तदुद्धच्चत्तप्पमाणमेहि १३४. ये प्रासादावतंसक भी अपने से आधी ऊँचाई वाले और पासायडिसएहि मव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। दूसरे चार प्रासादावतंसकों द्वारा चारों दिशाओं में घिर हुए हैं। ते णं पासायवडेंसगा देसूणाई चत्तारि जोयणाई उड्ढं ये प्रासादावतंस क देशोन चार योजन के ऊंचे हैं, देशोन दो
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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