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सूत्र १२२-१२८
तिर्यक् लोक :विजयद्वार
गणितानुयोग
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पउमवरवेइयाए वण्णओ, वणसंड-वण्णओ-जाव-देवाय यहाँ पद्मवरवेदिका और वनखंड का वर्णन कर लेना चाहिये देवीओ य आसयंति-जाव-विहरंति ।
-यावत्-देव-देवियाँ बैठती है-यावत् - विचरण करती हैं। १२३. से णं वणस हे देसूणाई दो जोयणाई चक्कवाल-विक्खंभेणं, १२३. इस वनखंड का चक्रवाल-विष्कम्भ-घेरा कुछ कम दो योजन ओवरियालयणसमपरिवखेवेणं ।।
का है, और उपकारिकालयन के बराबर परिक्षेप वाला है। तस्स णं ओवरियालयणस्स चउद्दिसि चत्तारि तिसोवाण इस उपकारिकालयन के चारों ओर चार त्रिसोपान पंक्तियाँ पडिरूवगा पण्णत्ता । बण्णओ।।
कही गयी हैं, यहाँ त्रिसोपान का वर्णन करना चाहिए। १२४. तेसि णं तिसोवाण पडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं तोरणा १२४. इन शोभनीय तीन सोपानों में से प्रत्येक के आगे तोरण पण्णता-जाव-छत्तातिछत्ता।
कहे गये हैं-यावत्-छत्रातिछत्र है । १२५. तस्स णं ओवरियालयणस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिमागे १२५. इस उपकारिकालयन की ऊपरी छत का प्रदेश बहुत ही
पण्णते,-जाव-मणीहि उवसोभिए। मणिवणओ, गंध-रस- सम और रमणीय कहा गया है-यावत्-मणियों से शोभायमान फासो। -जीवा०प०३, उ० १, सु० १३६ हो रहा है, यहाँ मणियों का वर्णन तथा गंध रस और स्पर्श का
वर्णन कहना चाहिये। मूलपासायडिसस्स पमाणं
मूलप्रासादवतंसक का प्रमाण१२६. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए- १२६. इस बहु सम रमणीय भूमिभाग के मध्यातिमध्य भाग में एत्थ णं एगे महं मूलपासायडिसए पण्णत्ते ।
एक विशाल मुख्य प्रासादावतंसक कहा गया है । से णं पासायडिसए बाढि जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढे वह प्रासादावतंसक बासठ योजन और आधे योजन का ऊँचा उच्चत्तेणं, एकतीसं जोयणाई कोसं च आयाम-विक्खं भेणं, है, तथा एक कोस अधिक इकतीस योजन का लम्बाई-चौड़ाई अब्भुग्गयमूसियप्पहसिए, तहेव ।
वाला है, और ऐसा प्रतीत होता है कि अपनी ऊँचाई से आकाशतल का स्पर्श करके उसका उपहास कर रहा है, इत्यादि वर्णन
पूर्व में किये गये वर्णन के अनुरूप इसका भी समझना चाहिये । तस्स णं पासायडिसगस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे इस प्रासादावतंसक का अन्तवर्ती भूमिभाग अत्यन्तसम एवं पण्णते,-जाव- मणिफासे उल्लोए ।
रमणीय कहा गया है-यावत्-मणियों का स्पर्श और उल्लोक
चांदनी का वर्णन पूर्व की तरह करना चाहिये । २२७. तस्स गं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे- १२७. इस अत्यन्त सम एवं रमणीय भूमिभाग के अतिमध्यभाग में एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पण्णत्ता।
एक बहुत बड़ी मणिपीठिका कही गई है। सा च एग जोयणमायाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं यह मणिपीठिका एक योजन की लम्बी चौड़ी है, और आधे सव्वमणिमई अच्छा-जाव-पडिरूवा।
योजन की मोटी है, तथा सर्वात्मना रत्नों से बनी हुई स्वच्छ -
-यावत्-प्रतिरूप है। तीसे णं मणिपेढियाए उरि एगे महं सीहासणे पण्णते । इस मणिपीठिका के ऊपर एक बहुत बड़ा सिंहासन कहा गया एवं सीहासण-वण्णओ सपरिवारो।
है, और भद्रासन आदि परिवारसहित इस सिंहासन का वर्णन करना चाहिए।
१२८. तस्स णं पासायडिसगस्स उप्पि बहवे अट्टमंगलगा, झया, १२८. इस प्रासादावतंसक के ऊपर अनेक आठ-आठ मंगलद्रव्य, छत्तातिछत्ता।
ध्वजायें और छत्रातिछत्र हैं। तेणं पासायवडेंसगा अण्णेहि चहिं तबद्धच्चत्तप्पमाण- यह प्रासादावतंसक अपनी ऊँचाई से आधी ऊंचाई वाले मेत्तेहिं पासायवडेंसएहि सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । अन्य चार प्रासादावतसकों द्वारा सर्वतः सभी दिशाओं में परि
वेष्टित है।