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________________ १५० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : विजयद्वार सूत्र ८१-८६ ८१. तेसु णं वइरामएसु णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कया ८१. इन वज्रमय नागदन्तकों पर अनेक रत्नमय छींके लटक पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वायकरगा पण्णत्ता । इन रत्नमय छींकों के ऊपर अनेक कोरे घट कहे गये हैं। तेणं वायकरगा किण्हसुत्तसिक्कगवत्थिया-जाव- ये वातकरक काले सूत से बने हुए छींकों पर अवस्थित हैसुक्किलसुत्तसिक्कगवत्थिया सव्वे वेरुलियामया अच्छा-जाव यावत्-श्वेत सूत्र से बने छीकों पर रखे हुए हैं, और ये सभी –पडिरूवा। - वैडूर्य रत्नमय है, स्वच्छ-यावत्-प्रतिरूप हैं । ८२. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो चित्ता रयणकरंडगा पण्णत्ता ८२. इन तोरणों के आगे रंगबिरंगे रत्नों से भरे हुए दो-दो -से जहा णामए रणो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चित्ते रयण- करंडक-पिटारा कहे गये हैं, जैसे कि चातुरन्त चक्रवर्ती-चारों करडे वेरुलियमणिफालिय पडलपच्चोयडेसाए पभाए ते दिशाओं में एक छत्र राज्य करने वाले चक्रवर्ती राजा का पदेसे सवओ समता ओभासइ उज्जोवेइ तावेइ, पभासेइ- आश्चर्यजनक रत्नकरंडक जो कि वैडूर्य मणि और स्फटिकमणि एवामेव ते चित्तरयणकरंडगा पण्णत्ता। वेरुलिय पडल से बने हुए ढक्कन वाला होता है, और अपनी प्रभा से उस प्रदेश पच्चोयडा साए पभाए ते पदेसे सव्वओ समंता ओभासेइ। को सब तरफ से प्रकाशित करता रहता है, उद्योतित करता है, -जाव-पभासे।। चमकाता रहता है, और कांतियुक्त करता रहता है, उसी तरह के ये चित्र-विचित्र रत्नों के करंडक कहे गये हैं, ये रत्नकरंडक भी बैडूर्य रत्न के बने हुए ढक्कन वाले हैं, अपनी प्रभा से उस प्रदेश को समस्त दिशाओं और विदिशाओं में सर्वात्मना प्रकाशित करते रहते हैं। ८३. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयकंठगा—जाव-दो दो ८३. इन तोरणों के आगे दो-दो अश्व कंठा प्रमाण वाले-यावत उसभकंठगा पण्णत्ता । सवरयणामया अच्छा-जाव- -दो-दो वृषभ कंठाप्रमाणवाले आभूषण विशेष कहे गये हैं । ये पडिरूवा। सभी सर्वात्मना रत्नमय, स्फटिकमणि के समान स्वच्छ-निर्मल -यावत्-प्रतिरूप हैं। तेसु णं हयकंठएसु-जाव-उसभकंठएसु दो दो पुष्फ- इन अश्व कंठाप्रमाण वाले-यावत्-वृषभ कंठाप्रमाण वाले चंगेरीओ पण्णत्ताओ। एवं मल्ल-चुण्ण-गंध-वत्थाभरण- आभूषण विशेषों में दो-दो पुष्प चंगेरिकायें कही गई हैं। इसी सिद्धत्थग-लोमहत्थग चंगेरीओ, सव्व रयणामईओ अच्छाओ प्रकार से माला गंध, चूर्ण, सुगंधित द्रव्य, वस्त्र, आभरण, सरसों, -जाव-पडिरूवाओ। मयूरपिच्छों को रखने की चंगेरिकायें (ढोकनिया) हैं, ये सभी रत्नमयी, स्वच्छ-यावत्-प्रतिरूप हैं। ८४. तेसि गं तोरणाणं पुरओ दो दो पुष्फपडलाई-जाव- ८४. इन तोरणों के सामने दो-दो पूष्पपटल (गुलदस्ता)-यावत लोमहत्थपडलाइं सव्वरयणामयाई-जाव–पडिरूवाई। --मयूरपिच्छियाँ कही गयी हैं, जो सर्वात्मना रत्नमय-यावत् प्रतिरूप हैं। ५. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो सीहासणाई पपणत्ताई । तेसि ८५. इन तोरणों के सामने दो-दो सिंहासन कहे गये हैं, इन ण सीहासणाणं अयमेयारूबे वण्णावासे पण्णत्ते, तहेव-जाव- सिंहासनों का वर्णन पीछे किये गये सिंहासनों के वर्णन के समान पासाईया-जाव-पडिरूवा । कहना चाहिए, ये दर्शनीय-यावत -प्रतिरूप हैं। ८६. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो रुप्पछदा छत्ता पण्णत्ता। ८६. इन तोरणों के आगे दो-दो रुप्य के आच्छादनभूत छत्र (छत्रा छत्री) कहे गये हैं। तेणं छत्ता वेरुलियभिसंतविमलदंडा, जंबूणयकण्णिया इन छत्रों का दण्ड विमल एवं चमकीले वैडूर्य रत्नों का बना वइरसंधी मुत्ताजालपरिगया, अट्ठ सहस्सबरकंचणसलागा, हुआ है । इनकी कणिका जाम्बूनद स्वर्ण की बनी हुई हैं, वञ्चरत्न की संधियाँ हैं। ये छत्र मुक्ताजालों से परिगत-सुशोभित हैं, और प्रत्येक छत्र में श्रेष्ठ स्वर्ण से निर्मित आठ हजार शलाकायें-ताणी लगी हुई हैं, अत्यन्त सुगन्धित मलय चन्दन और सर्व ऋतुओं में
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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