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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : विजयद्वार
सूत्र ६६-७५
तेसि णं वइरामएस अंकुसेसु पत्तेयं पत्तेयं कुम्भिक्का इन वज्रमय प्रत्येक अंकुश में कुम्भप्रमाण मुक्ताओं की मुत्तादामा पण्णत्ता।
मालायें कही गई हैं। तेणं कुम्भिक्का मुत्तादामा अन्नेहिं चहि चहिं तदबुच्च- ये कुम्भप्रमाण मोतियों की मालायें भी और दूसरी चार-चार प्पमाणमेहि अद्धकुम्भिक्केहि मुत्तादामेहि सवओ समंता अर्धकुम्भ प्रमाण वाली और ऊँचाई में उनसे आधी मुक्तामालाओं संपरिक्खित्ता।
से सब ओर परिवेष्ठित है। तेणं दामा तवणिज्जलंबूसगा, सुवण्ण पयरगमंडिया जावये मालायें तपनीय स्वर्ण से बने हुए लांबुसकों (झमकों) से चिट्ठन्ति ।
युक्त हैं, और स्वर्ण के पतरों से मंडित हैं-यावत्-स्थित हैं। ७०. तेसि णं पासायडिसगाणं उप्पि बहवे अट्ठमंगलगा पण्णत्ता, ७०. इन प्रासादावतंसकों के ऊर्ध्वभाग में अनेक अष्टमंगल द्रव्य सोत्थिय तहेव जाव छत्ता।
कहे हैं, वे स्वस्तिक से लेकर छत्रपर्यन्त जैसे पहले कहे गये हैं वैसे -जीवा०प० ३, उ०१, सु० १३० ही हैं। विजयदारस्स णिसीहियाए तोरणा
विजयद्वार की नैषिधिकियों के तोरण७१. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासि दुहओ णिसीहियाए दो ७१. विजयद्वार के दोनों ओर की उन दोनों नैषिधिकियों पर दो तोरणगा पण्णत्ता।
दो-दो तोरण कहे गये हैं। तेणं तोरणा णाणा मणिमया तहेव जाव अट्ठमंगलगाय ये तोरण अनेक प्रकार की मणियों के बने हुए हैं, इनका छत्तातिछत्ता।
वर्णन (पूर्व में किये गये तोरणों के वर्णन के) समान समझना
चाहिए-यावत-वे आठ-आठ मंगल द्रव्य और छत्रातिछत्र युक्त हैं। तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो सालभंजियाओ पण्णताओ इन तोरणों के अग्रभाग में दो-दो काष्ठ पुतलिकायें कही गई जहेव णं हेट्ठा तहेव ।
हैं, इनका वर्णन जैसा पीछे किया गया है, वैसा ही जानना
चाहिए। तेसि गं तोरणाणं पुरओ दो दो णागदंतगा पण्णत्ता। इन तोरणों के आगे दो-दो नागदंतक खूटियाँ कही गई हैं। तेणं णागदंतगा मुत्ताजालंतरूसिया तहेव ।
इन नागदंतकों का वर्णन मुक्ताजालों के भीतर लटकती हुई
(इत्यादि पीछे किये गये) वर्णन के अनुरूप जानना चाहिए। तेसु णं णागदंतएसु बहवे किण्हे सुत्तवट्ट....वग्घारिय मल्ल- इन नागदंतकों पर कृष्ण सूत्र-डोरे से बँधी हुई अनेक दाम कलावा जाव चिट्ठन्ति ।
पुष्पमालाओं के समूह लटक रहे हैं-यावत -स्थित हैं । तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयसंघाडगा पण्णत्ता। इन तोरणों के अग्रभाग में दो-दो अश्वों के संघटक युगल सव्व रयणामया अच्छा जाव पडिरूवा।
कहे गये हैं, जो सर्वात्मना रत्नमय, स्वच्छ-यावत -प्रतिरूप हैं, एवं पंतीओ बीहीओ मिहुणगा।
___ इसी प्रकार से पंक्तियाँ, विथिकायें और मिथुनक भी जानने
चाहिए। ७२. दो दो पउमलयाओ जाव पडिरूवाओ।
७२. दो-दो पद्मलतायें हैं-यावत -प्रतिरूप हैं। ७३. तेसि णं तोरणाणं पुरओ अक्खा असोवस्थिया सव्वरयणामया ७३. इन तोरणों के आगे स्वस्तिक के अक्ष-पासे हैं, जो सर्वात्मना अच्छा जाव पडिरूवा।
रत्नमय, स्वच्छ-यावत – प्रतिरूप हैं । ७४. तेसि ण तोरणाणं पुरओ दो दो चं.णकलसा पण्णता। ७४. इन तोरणों के आगे दो-दो चन्दन कलश कहे गये हैं ।
तेणं चरणकलसा वरकमलपइट्टाणा तहेव सव्वरयणामया वे चन्दन कलश उत्तमकमलों पर प्रतिष्ठित है, शेष वर्गन अच्छा जाव पडिरूवा। समणाउसो !
पूर्व की तरह जानना तथा सर्वात्मना रत्नमय, स्वच्छ-यावत -
प्रतिरूप है। ७५. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो भिगारगा पण्णत्ता वरकमल- ७५. इन तोरणों के आगे दो-दो भृगारक झारियाँ कही गयी हैं,
पइट्ठाणा जाव सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूबा महता ये भृगारक, श्रेष्ठ कमलों पर रखे हैं-यावत् -सम्पूर्ण रूप से