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लोक-प्रज्ञप्ति
वइरामया णिम्मा ।
रिट्ठामया पट्ठाणा |
वेरुलियामया खंभा ।
जायस्वोचिय-पवर पंचमणि-रण- कोमितले ।
हंसगभगए एए।
गोमेज दी।
लोहितमओ दारविडाओ।
जोतिरसामते उत्तरंगे ।
वेरुलियामया कवाडा । वइरामया संधी |
लोहितमईओ सूईओ ।
जाणा मणिमया समुग्गगा ।
रामईओ अग्गलाओ अग्गलपासाया ।
वइरामई आवत्तणपेढिया । अंकुत्तर पासते ।
निरंतरितघणकवाडे ।
तिर्यह लोक विजयद्वार
:
भिती चेव भित्तीगुलिया छप्पण्णा ।
तिष्णि होंति गोमाणसी ।
तत्तिया णाणा मणिरयण वालरूवग लीलट्ठिय- सालिभंजिया ।
वइरामए कूडे ।
रामए उस्सेहे ।
सव तवणिज्जमए उल्लोए ।
गाणा मगर-जाल जर-मणि यंग-लोहितपसि
भो ।
कामया पक्खा पक्खबहाओ ।
इसका नैम ( जमीन के ऊपर निकला प्रदेश — कुरसी) वज्रमय है ।
सूत्र ५२
प्रतिष्ठान ( देहली) रिष्ठरत्नमय है।
इसके खम्भे वैडूर्य रत्न के बने हैं ।
इसका कुट्टिमतल - बद्धभूमितल स्वर्ण से उपचित श्रेष्ठ पंचवर्ण वाले मणिरत्नों से बना हुआ है ।
इसकी एलुक ( देहली की चौखट ) हंसगर्भ नामक रत्न विशेष से बनी है ।
गोमेद रत्न से इसकी इन्द्रकील बनी है ।
लोहिताक्ष रत्न से इसकी द्वारशाखायें बनी है।
इसका उत्तरंग (द्वार के ऊपर तिरछा रखा हुआ काष्ठ). ज्योतिरस नामक रत्न से बना है ।
इसके किवाड़ वैडूर्य रत्न से निर्मित है ।
किवाडों की संधियाँ वज्ररत्न की है ।
विवादों में लगाई गई सुई कीनियाँ लोहिताक्ष रत्न की हैं। समुद्गक नाना मणियों से बने हुए हैं ।
वज्ररत्न से बनी हुई अगंलाये हैं और अर्गलाओं को रखने के स्थान भी वज्ररत्न के बने हुए हैं ।
आवर्तनपीठिका (इन्द्रकील का स्थान) भी वज्ररत्न का है। किवाडों का पार्श्वभाग ( पिछला हिस्सा) अंकरत्न का बना है ।
ये किवाड ऐसे जुड़े हुए है कि किचिन्माभी अन्तर (सांध नहीं है।
भीतों (दीवालों में एक सौ स (५६३ १६८) मिति गुलिकायें खुटिया है ।
और उतनी ही (१६०) गोमानसी ( शैयाकारस्थान विशेष) है।
और उतनी ही द्वार पर नाना प्रकार के मणियों और रत्नों से व्याप्त होके एवं क्रीडा करती हुई— लीलारत शालभंजिकाओं - पुतलियों के चित्र बने हुए हैं ।
वज्ररत्न से शिखर बना है ।
और उत्सेध - ऊँचाई रत्नमय है ।
चंदेवा चांदनी रूप ऊपरी भाग तपनीय स्वर्ण का बना है ।
इस द्वार के झरोखे मणिमय वंशों वाले लोहिताक्ष रत्नमय प्रतिवंशों वाले, रजतमय भूमि वाले और विविध प्रकार की मणि रत्नों वाले हैं।
इसके पक्ष और पक्षवाह अंकरत्न से बने हैं ।