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________________ १४२ लोक-प्रज्ञप्ति वइरामया णिम्मा । रिट्ठामया पट्ठाणा | वेरुलियामया खंभा । जायस्वोचिय-पवर पंचमणि-रण- कोमितले । हंसगभगए एए। गोमेज दी। लोहितमओ दारविडाओ। जोतिरसामते उत्तरंगे । वेरुलियामया कवाडा । वइरामया संधी | लोहितमईओ सूईओ । जाणा मणिमया समुग्गगा । रामईओ अग्गलाओ अग्गलपासाया । वइरामई आवत्तणपेढिया । अंकुत्तर पासते । निरंतरितघणकवाडे । तिर्यह लोक विजयद्वार : भिती चेव भित्तीगुलिया छप्पण्णा । तिष्णि होंति गोमाणसी । तत्तिया णाणा मणिरयण वालरूवग लीलट्ठिय- सालिभंजिया । वइरामए कूडे । रामए उस्सेहे । सव तवणिज्जमए उल्लोए । गाणा मगर-जाल जर-मणि यंग-लोहितपसि भो । कामया पक्खा पक्खबहाओ । इसका नैम ( जमीन के ऊपर निकला प्रदेश — कुरसी) वज्रमय है । सूत्र ५२ प्रतिष्ठान ( देहली) रिष्ठरत्नमय है। इसके खम्भे वैडूर्य रत्न के बने हैं । इसका कुट्टिमतल - बद्धभूमितल स्वर्ण से उपचित श्रेष्ठ पंचवर्ण वाले मणिरत्नों से बना हुआ है । इसकी एलुक ( देहली की चौखट ) हंसगर्भ नामक रत्न विशेष से बनी है । गोमेद रत्न से इसकी इन्द्रकील बनी है । लोहिताक्ष रत्न से इसकी द्वारशाखायें बनी है। इसका उत्तरंग (द्वार के ऊपर तिरछा रखा हुआ काष्ठ). ज्योतिरस नामक रत्न से बना है । इसके किवाड़ वैडूर्य रत्न से निर्मित है । किवाडों की संधियाँ वज्ररत्न की है । विवादों में लगाई गई सुई कीनियाँ लोहिताक्ष रत्न की हैं। समुद्गक नाना मणियों से बने हुए हैं । वज्ररत्न से बनी हुई अगंलाये हैं और अर्गलाओं को रखने के स्थान भी वज्ररत्न के बने हुए हैं । आवर्तनपीठिका (इन्द्रकील का स्थान) भी वज्ररत्न का है। किवाडों का पार्श्वभाग ( पिछला हिस्सा) अंकरत्न का बना है । ये किवाड ऐसे जुड़े हुए है कि किचिन्माभी अन्तर (सांध नहीं है। भीतों (दीवालों में एक सौ स (५६३ १६८) मिति गुलिकायें खुटिया है । और उतनी ही (१६०) गोमानसी ( शैयाकारस्थान विशेष) है। और उतनी ही द्वार पर नाना प्रकार के मणियों और रत्नों से व्याप्त होके एवं क्रीडा करती हुई— लीलारत शालभंजिकाओं - पुतलियों के चित्र बने हुए हैं । वज्ररत्न से शिखर बना है । और उत्सेध - ऊँचाई रत्नमय है । चंदेवा चांदनी रूप ऊपरी भाग तपनीय स्वर्ण का बना है । इस द्वार के झरोखे मणिमय वंशों वाले लोहिताक्ष रत्नमय प्रतिवंशों वाले, रजतमय भूमि वाले और विविध प्रकार की मणि रत्नों वाले हैं। इसके पक्ष और पक्षवाह अंकरत्न से बने हैं ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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