SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक सूत्र ३७-४० www वइरामया संधी, लोहितक्खमईओ सूईओ, णाणा मणिमया रत्न की सूचियाँ-कीलियाँ लगी हुई है। आजू-बाजू के अवलंबन अवलंबणा, अवलंबण बाहाओ। दंड (रेलिंग) और अवलंबनबाहा नाना प्रकार की मणियों की -जीबा० ५० ३, उ० १, सु० १५७ बनी हुई है। तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरओ तोरणा त्रिसोपान प्रतिरूपकों के आगे तोरण३७. तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरतो पत्तेयं पत्तेयं तोरणा ३७. उन प्रत्येक त्रिसोपान प्रतिरूपकों के आगे तोरण कहे गये पण्णता, तेणं तोरणा णाणा मणिमयखंभेसु उवणिविट्ठ सण्णि- है। ये तोरण अनेक प्रकार की मणियों से बने हुए खंभों पर पास विट्ठा, विविहमुत्तंत रोवइता, विविहतारारूवोवचिता, ईहा- में ही स्थित है और यथास्थान लगे हुए हैं। इनमें अनेक प्रकार मिय-उसम-तुरग-णर-मगर-विहग-वालग-किण्णर-रुरू-सरभ- की आकृतियों में गूंथे गये मुक्तामणि लगे हुए हैं। विविध प्रकार चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्ता खंभुग्गय-वइर- के तारारूपों से खचित है। इनमें ईहामृग, वृषभ, घोड़ा, मनुष्य, वेदिया परिगताभिरामा, विज्जाहर-जमल-जुयल-जंतजुत्ताविव, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, रुरू, सरभ-अष्टापद, चमर, कुजरअच्चि सहस्समालणीया, भिसमाणा, भिब्भिसमाणा, चक्खु- हाथी, वनलता, पद्मलता के चित्र बने हुए हैं । स्तम्भों पर बनी ल्लोयणलेसा, सुहफासा, सस्सिरीयरूवा, पासाइया-जाव- हुई वज्रमयी वेदिकाओं के कारण ये तोरण बहुत ही सुन्दर लगते पडिरूवा। -जीवा०प० ३, उ० १, सु० १२७ हैं । समश्रेणी में बने हुए विद्याधर युगलों के चित्र-यंत्रचालित जैसे प्रतीत होते हैं। सहस्ररश्मि सूर्य की प्रभा जैसे प्रभा समुदाय से युक्त है। चमकदार दीप्तमान, अत्यन्त दैदीप्यमान, दर्शनीय, नेत्राकर्षक, सुखकर, सुखद स्पर्श वाले, सधीकरूप वाले, प्रासादीय, आल्हादजनक-यावत्-प्रतिरूप है । तोरणाणं उप्पि अठ्ठट्ठमंगलगा तोरणों के ऊपर आठ-आठ मंगल३८. तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे अट्ठमंगलगा पण्णत्ता। ३८. उन तोरणों के ऊपर अनेक आठ-आठ मंगल द्रव्य कहे गये हैं। तं जहा उनके नाम यह हैं(१) सोत्थिय, (२) सिरिवच्छ, (३) णंदियावत्त, (१) स्वस्तिक, (२) श्रीवत्स, (३) नन्दिकावर्त, (४) वर्द्धमान, (४) वद्धमाण, (५) भद्दासण, (६) कलस, (७) मच्छ, (८) (५) भद्रासन, (६) कलश, (७) मत्स्य, और (८) दर्पण, ये सभी वप्पणा, सव्वरयणामया अच्छा-जाव-पडिरूवा। सर्वात्मना रत्नमय, स्वच्छ-यावत्-प्रतिरूप हैं । ___ --जीवा० प० ३, उ० १, सु० १२७ तोरणाणं उप्पि चामरज्झया तोरणों के ऊपर चामर युक्त ध्वजायें३६. तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे किण्हचामरज्झया नीलचाम- ३६. उन तोरणों के ऊर्श्वभाग में कृष्णकांति वाले चामरों से रज्झया लोहियचामरज्झया हारिद्दचामरज्झया सुक्किल्ल- युक्त ध्वजायें हैं। नीलवर्ण वाले चामरों से युक्त ध्वजायें हैं । चामरज्झया अच्छा सहा रुप्पपट्टा बइरदंडा जलयामल- लोहित-लाख वर्णीय चामरों से युक्त ध्वजायें हैं। हारिद्र वर्ण वाले गंधीया सुरुवा पासाइया-जाव-पडिरूवा । चामरों से युक्त ध्वजायें हैं, श्वेत वर्ण के चामरों से युक्त ध्वजायें -जीवा०प०३, उ० १, सु० १२७ हैं। ये ध्वजायें स्वच्छ स्निग्ध हैं। इनके किनारे सोने-चांदी के बने हैं । और दंड वजरत्न से बना हुआ है। इनका गंध विमल जलज-कमल के गंध जैसा है, सूरूप प्रासादीय-यावत्-प्रति तोरणाणं उप्पि छत्ताइपयत्थाई तोरणों के ऊपर : छत्रादि पदार्थ४०. तेसिं गं तोरणाणं उप्पि बहवे छत्ताइछत्ता, पडागाइपडागा, ४७. उन तोरणों के ऊपर अनेक छत्रातिछात्र (एक छत्र के ऊपर घंटाजुयला, चामरजुयला, उप्पलहत्थया-जाव-सय-सहस्सवत्त- दूसरा छत्र) पताकातिपताकायें, घंटायुगुल, चामरयुगल, उत्पल हत्थगा, सबरयणामया, अच्छा-जाव-पडिरूवा। हस्तक-कमलों के गुच्छे (गुलदस्ते)-यावत्-शत-सहस्र-पत्र -जीवा०प०३, उ० १, सु० १२७ हस्तक है । जो सभी सर्व रत्नमय, स्वच्छ-यावत्-प्रतिज्य है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy