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________________ सूत्र ३५.३६ तिर्यक् लोक गणितानुयोग १३७ वणसंडे पडिरूवाओ वावीआईओ वनखण्ड में मनोहर बावड़ियां आदि३५. तस्स णं वणसंडस्स तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे खुड्डा ३५. उस वनखण्ड में जगह-जगह पर अनेक छोटी-छोटी वापिकायें, खुड्डियाओ, वावीओ, पुक्खरिणीओ, गुंजालियाओ, दोहि- पुष्करिणियां, गुजालिकायें (टेड़े-मेढे आकार-वक्र आकार वाली याओ, सराओ, सरपंतियाओ, सरसरपंतियाओ, बिलपंति- वापिकायें) दीपिकायें (झरने वाली वापिकायें) सरोवर, सरः याओ, अच्छाओ सहाओ रययामयकूलाओ समतीराओ पंक्तियाँ, सर-सर पंक्तियाँ, कूप पंक्तियाँ हैं। जो स्वच्छ, स्फटिक वयरामयपासाणाओ तवणिज्जमयतलाओ वेरुलिय-मणि- की तरह चिकने प्रदेश वाली है, रत्नमय तटों वाली है, समान फालिय-पडलपच्चोयडाओ णवणीयतलाओ सुवण्णसुज्झ-(ब्भ) तीर-किनारों वाली है, वज्ररत्नमय पाषाण-पत्थरों वाली है, रययमणिवालुयाओ सुहोयारा सु उत्तराओ गाणामणि-तित्थ- इनका तल भाग तपनीय सुवर्ण का बना हुआ है । तट के समीपसुबद्धाओ चारु (चउ) क्कोणाओ, समतीराओ आणुपुरव- वर्ती अत्युन्नत प्रदेश वैडूर्यमणि और स्फटिकमणि से बने हुए हैं। सुजाय-वप्प-गंभीर-सीयजलाओ संछण्ण पत्त-भिस-मुणालाओ, नवनीत के समान इनके सुकोमल तल है। इनमें जो बालुका है, बहुउप्पल-कुमुय-णलिण-सुभग-सोगंधित-पोंडरीय-सयपत्त-सह- वह सुवर्ण शुद्ध रजत-चाँदी और मणियों से युक्त और उनके स्सपत्त-फुल्लकेसरोवइयाओ, छप्पय-परिभुज्जमाणकमलाओ, समान कांति वाली है। जो सुखपूर्वक प्रवेश करने और निर्गमनअच्छ विमल-सलिल पुण्णाओ, बाहर निकलने योग्य है, जिनके घाट नाना प्रकार की मणियों से बने हुए हैं, इनके (चारों) कोने सुन्दर-मनोज्ञ हैं । तट-सम हैं, इनका वप्र-जलस्थान क्रमश: नीचे गहरा होता गया है, और अगाध एवं शीतल है, जिनका जल पत्र भिस, मृणाल से आच्छादित है। इनमें प्रफुल्लित केशर परागयुक्त अनेक उत्पल, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगंधिक, पुण्डरिक, शतपत्र, सहस्रपत्र, जातीय कमल व्याप्त है। भ्रमर समूह जिनके कमलों और कुमुदों का रसास्वादन कर रहे हैं, जो स्वच्छ विमलजल से परिपूर्ण हैं, परिहत्थ भमंत-मच्छ-कच्छभ-अणेग-सउणमिहुणपरिचरित्ताओ, जिनमें बहुत बड़ी संख्या में मच्छ और कच्छप इधर से उधर पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेबिया परिक्खित्ताओ, पत्तेयं पत्तेयं वण- घूमते रहते हैं। तथा जो अनेक प्रकार के शकुनमियन पक्षियों के संडपरिक्खित्ताओ अप्पेगतियाओ आसवोदगाओ, अप्पेगतियाओ जोड़ों के गमनागमन से व्याप्त है। प्रत्येक जलाशय पद्मवरवारुणोदगाओ. अप्पेगतियाओ खोदोदगाओ, अप्पेगतियाओ वेदिका से व्याप्त है। प्रत्येक वनखण्ड से घिरा हुआ है। इनमें सोयाओ. अप्पेगतियाओ घओदगाओ, अप्पेगतियाओ से किन्हीं वापिकाओं आदि का जल आसव जैसा मधुर स्वाद अमयरससमरसोदगाओ, अप्पेगइयाओ पगतीए उदगरसेणं वाला है। कितने का जल इक्षुरस के सदृश मधुर स्वाद वाला है, पण्णत्ताओ पासाइयाओ-जाव-पडिरूवाओ। कितनेक का जल क्षीरसमुद्र के जल जैसा स्वाद वाला है, कितनेक -जीवा० ५० ३, उ० १, सु० १२७ जलाशयों का जल घृत के जैसे स्वाद वाला है, कोई-कोई जलाशय ऐसे हैं जिनका जल अमृतरस के सदृश स्वाद वाला है, कितने ही जलाशय प्राकृतिक उदकरस से युक्त है। और ये सभी जलाशय प्रासादिक-यावत्-प्रतिरूप है। तिसोवाणपडिरूवाणं वष्णावासे त्रिसोपान प्रतिरूपकों का वर्णन35. तस्स णं वणसंडस्स तत्थ तत्थ देसे देसे तहि तहिं तासि णं ३६. उस वनखण्ड में जगह-जगह पर स्थित जो अनेक छोटी-छोटी खडियाणं बावीणं-जाव-बिलपंतीयाणं पत्तेयं पत्तेयं चउद्दिसि वापिकायें-यावत्-कूपपंक्तियाँ है वे प्रत्येक चारों दिशाओं में चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, तेसि गं तिसोवाण चार त्रिसोपान-प्रतिरूपक कही गयी है-विशिष्ट तीन-तीन पडिरूवाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते तं जहा, वइरामया सीढियों से युक्त है, उन त्रिसोपान प्रतिरूपकों का वर्णविन्यास इस नेमा, रिद्वामया पतिद्वाणा, वेरुलियामया खंभा, सुवण्ण- प्रकार का कहा गया है । यथा-इनका मूलभाग-नींव वज्ररत्नों रुप्पामया फलगा, से निर्मित है । मूलपाद रिष्टरत्नों से बने हुए हैं, एवं ये वैडूर्य रत्न से बने हैं । फलक पट्टियाँ, (तख्ता) स्वर्ण और चाँदी के बने हैं । इन फलकों की संधियाँ वज्ररत्न की है। जिनमें लोहिताक्ष
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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