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सूत्र ३१-३२
तिर्यक् लोक
गणितानुयोग
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ति वा, बूरे ति वा, गवणीतेति वा, हंसगम्भतूलीति वा, आजिनक (चर्ममय वस्त्र) के जैसा होता है, अथवा रुई के जैसा सिरीसकुसुमणिचतेति वा, बालकुमुदपत्तरासीतिवा,- होता है, अथवा बूर नामक वनस्पति जैसा होता है, अथवा भवे एयारूवे सिया ?
नवनीत जैसा होता है, अथवा हंसगर्भतुलिका जैसा होता है, अथवा शिरीष पुष्पसमूह जैसा होता है, अथवा वालकुमुद पत्र के राशि (समूह) जैसा होता है तो क्या उन तृणों और मणियों का
स्पर्श इस प्रकार का होता है ? । उ० गोयमा ! णो इण8 सम? । तेसि णं तणाण य मणीण उ०-हे गौतम ! यह अर्थ उनके स्पर्श का वर्णन करने में
य एतो इत्तराए चेव-जाव-मणामतराए चेव फासे समर्थ नहीं है, उन तृणों और मणियों का स्पर्श तो इनसे भी
पण्णते। -जीवा०प० ३, उ० १, सु० १२६ इष्टतर-यावत्-मणामतर कहा है। तण-मणोणं इठ्ठयरे सद्दे
तृण-मणियों का इष्टतर शब्द३२. ५० तत्थ णं जे ते तणा य मणी य तेसि णं भंते ! पुब्वावर- ३२. हे भगवन् ! वहाँ जो तृण और मणि है, वे जब पूर्व-पश्चिम
दाहिण उत्तरागतेहि वाएहि मंदायं मंदायं एइयाणं, दक्षिण और उत्तर दिशाओं से बहने वाली वायु से मंद-मंद रूप वेइयाणं, कंपियाणं, खोभियाणं, चालियाणं, फंदियाणं, से कंपित किये जाते हैं, विशेष रूप में कंपित किये जाते हैं, घट्टियाणं, उदीरियाणं केरिसए सद्दे पण्णते ? बारंबार कंपित किये जाते हैं, क्षुभित किये जाते हैं, चलाये जाते
हैं, स्पंदित किये जाते हैं, परस्पर संघर्षित किये जाते हैं, उदीरित
किये जाते हैं, तब इनकी कैसी शब्द ध्वनि कही गई है ? से जहा णामए-सिवियाए वा, संदमाणियाए वा, रहव- क्या वह इन नाम वाले पदार्थों से होने वाली शब्द ध्वनि जैसी रस्स वा सछत्तस्स सज्झयस्स सघंटयस्स सतोरणवरस्स, होती है । यथा-शिविका (पालखी) से होने वाली ध्वनि जैसी सणंदिघोसस्स सखिखिणिहेमजालपेरंतपरिखित्तस्स हेमव- अथवा स्पन्दमानिका (एक प्रकार की पालखी विशेष) से होने यचित्त-विचित्त-तिणिस कणग-निउजुस-दारुयागस्स सुप्पि- वाली ध्वनि जैसी अथवा जो छत्र से युक्त हो, ध्वजा से युक्त हो, णिद्धारकमंडलधुरागस्स कालायस-सुकय-णेमिजंतकम्मस्स- दोनों बाजुओं में लटकते हुए घंटों से युक्त हो, उत्तम तोरण से
युक्त हो, नन्दिघोष आदि तुणों (मह से बजाये जाने वाले वाद्य विशेष) के निनाद से युक्त हो, क्षुद्र घटिकाओं से युक्त सुवर्ण निर्मित मालाओं द्वारा जो सब ओर से व्याप्त हो, चित्रविचित्र मनोहारी चित्रों से युक्त एक सुवर्ण खचित ऐसे हिमवान् पर्वत के तिनिशकाष्ठ से जो निर्मित हो, जिसके पट्टियों में आंटे बहुत ही अच्छी तरह से लगे हो, और जिसकी धुरा मजबूत हो, जिसके चक्र (पट्टीये) जमीन की रगड़ से घिस न जायें और चक्र के पटिया अलग-अलग न हो जाये, इस अभिप्राय से पट्टियों पर लोहे
की दाँत चढाई गई है।--आइण्णवरतुरगसुसंपउत्तस्स कुसलणर-छय-सारहि-सुसं- -गुणसम्पन्न, जातिमन्त श्रेष्ठ घोड़े जिसमें जुते हुए हैं, अश्व परिगहितस्स सरस्सय-बत्तीस-तोरण-परिमंडितस्स सकं- संचालन में कुशल और दक्ष सारथि से जो युक्त हो, जिनमें सौ-सौ कडडिसगस्स, सचावसरपहरणावरण-हरियस्स जोह बाण हो ऐसे बत्तीस तूणीरों (भाथों) से युक्त हो, जिसका शिखर जुद्धस्स रायंगणंसि बा, अंतेउरंसि वा, रम्मंसि वा, भाग कवच (बस्तर) से आच्छादित हो, धनुषसहित बाणों और मणिकोट्टिमतलंसि अभिक्खणं अभिक्खणं अभिघट्टिज्ज• कुन्त-भाले आदि प्रहरणों एवं कवच आदि आयुधों से जो परिमाणस्स वा, णियट्टिज्जमाणस्स वा, जे उराला मणुण्णा पूर्ण हो, योद्धाओं के युद्ध के निमित्त जो सजाया गया हो और जो कण्ण-मणणिन्तुतिकरा सवओ समंता सद्दा अभिणिस्स• राजप्रांगण एवं अन्तःपुर की मणियों से खचित भूमि में बारंवार वंति-भवे एयारवे सिया ?
वेग से आता-जाता हो ऐसे श्रेष्ठ रथ से उस समय जो उदार, मनोज्ञ तथा कर्ण एवं मन को तृप्तिकारक सब ओर से उस समय निकलने वाली ध्वनि जैसी है तो क्या ऐसी ध्वनि उन तृणों और मणियों से निकलती है ?