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सूत्र २८-२६
तिर्थ लोक
हालिद्दतण मणी इयरे हालिवणे
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२८. ५० तत्थ णं जे ते हालिगा तथा य मणी य तेसि णं भंते ! अयमेयारूवे वण्णा वासे पण्णत्ते से जहा णामए- चंपए वा, चंपगच्छल्लीइ वा चंपयभेएड वा, [ चंपगच्छेएइ वा ] हालिद्दाइ वा हालिद्दर्भेएड वा हालिद्दगुलियाइ वा, हरियालेइ वा, हरियालभेएइ वा, हरियालगुलियाइ वा, चिउरेति वा चिउरंगरागेति वा वरकणए ति वा, बरकणग-निधसेति वा, सुबनसिपिए ति या, वरपुरिसबसति वा सहलाई सुमेति वा चंपक कुमुमेह वा, कुहंडिया-कुसुमेइ वा, कोरंटक- कुसुमेइ वा, तडउडाकुसुमेइ वा घोसाडिया - कुसुमेइ वा सुवन्नजूहिया - कुसुमेइ वा सुहिरणिया कुसुमे वा, बीजय-कुसुमेद वा पोया सोएसिया, पीय-कणवीरे तिवा पी-बंधुजीए ति वा भवे एयारूवे सिया ?
उ० गोषमा ! नो इष्टु सम ते णं हालिा तथा व मणी य एत्तोsट्टतराए चेव जाव-मणामतराए चैव वण्णेज पण्णत्ते । - जीवा० प० ३, उ० १, सु० १२६ सुविकल्लतण मणीनं इयरे सुविकल्ले वण्णे२६. प० तत्थ णं जे ते सुक्किलगा तथा य मणी य तेसि णं भंते । अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते से जहा णामए- अंके ति वा, संखेति वा, चंदेति वा कुन्दे ति वा, कुसुमेति वा, दगरए ति वा, दहिघणेइ वा, खीरेइ वा, खीरपूरेइ वा, हंसावलीति वा, कोंचावलीति वा, हारावलीति वा, बलायावतीति वा, चंदावलीति वा, सारइअबला हइएति बा, तोवरूप वा सालिपरासीति वा
गणितानुयोग
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पीत तृणमणियों का इष्टतर पीतवर्ण
२८. प्र० - हे भगवन् ! वहाँ जो हारिद्र वर्ण के तृण और मणि हैं क्या उनका वर्णविन्यास इस प्रकार का कहा गया है ? जैसे- सुवर्ण चम्पक के समान अथवा सुवर्ण चम्पक वृक्ष की छाल के समान अथवा चम्पक खण्ड के समान, अथवा (सुवर्ण चम्पक वृक्ष के समान) अथवा हरिद्रा (हल्दी) के समान, अथवा हरिद्राभेद (खण्ड-टुकड़ा) के समान, अथवा हरिद्रा की गुलिका ( अन्दर का भाग या गोली) के समान अथवा हरताल (खनिज) के समान अथवा हरतालभेद (खण्ड) के समान अथवा हरताल की गोली के समान अथवा चिकुर (गंध द्रव्य विशेष) के समान अथवा चिकुर के रंग से रंगे हुए वस्त्र के समान, अथवा श्रेष्ठ स्वर्ण (सोना) धातु के समान, अथवा कसौटी पर खींची गई श्रेष्ठ स्वर्णरेखा के समान अथवा सुवर्णशिल्पिक के समान अववा वर पुरुष (कृष्ण वासुदेव) के वस्त्र के समान अथवा शल्यकी पुष्प के समान अथवा चम्पक कुसुम के समान अथवा कुष्मांड पुष्प के समान अथवा कोरंटक पुष्प के समान, अथवा तड़बड़ा के पुष्प के समान, अथवा घोषातिकी (चिरायता) के फूल के समान, अथवा सुवर्ण जुही के पुष्प के समान, अथवा सुहिद पियका के पुष्प के समान, बीजक (बीजा नामक वृक्ष ) पुष्प के समान, अथवा पीलाशोक वृक्ष के समान अथवा पीतवनेर के समान, अथवा पीत बन्धुजीवक के समान - तो क्या उनका ऐसा रूप (वर्ण) होता है ?
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उ०- हे गौतम! इनका वर्णन करने में यह अर्थ समर्थ नहीं है, वे हारिद्र वर्ण के तृण और मणि इनसे भी इष्टतर- यावत् - मणामतर वर्ण वाले कहे गये हैं ।
शुक्ल तृण मणियों का इष्टतर शुक्ल वर्ण
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२६. प्र० हे भगवन् ! इन तृणों और मणियों के बीच जो शुक्लवर्ण के तृण और मणि है, इनका वर्ण विन्यास क्या इस प्रकार का कहा गया है ? यथा अंकरत्न के समान है, अथवा शंख के समान है, अथवा चन्द्रमा के समान है, अथवा कुन्दपुष्प के समान है, अथवा कुसुम के समान है, अथवा उदकरज (बूंद) के समान है, अथवा दधिधन ( जमा हुआ दही) के समान है, अथवा क्षीर (दूध) के समान है, अथवा क्षीर पूर ( दूध का फेन) के समान है, अथवा हंस पंक्ति के समान हैं, अथवा क्रौंच पक्षियों की पंक्ति के समान है, अथवा (मुक्ता ) हार की पंक्ति के समान है, अथवा बलावली (रजत निर्मित कंकण) के समान है, अथवा चन्द्रावली के समान है, अथवा शरदऋतु की मेघ पंक्ति के समान है, अथवा अग्नि से तपाकर राख आदि से माँजे गये रजत पट् के समान है, अथवा चावल की चूर्णराशि के समान है ।