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________________ १२६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक सूत्र १०-१४ जंबुद्दीवस्स पुढविआइपरिणामित्तं जम्बूद्वीप का पृथ्वी आदि परिणामित्व-- १०. ५० (१) जंबुद्दीवे णं भंते ! दोवे किं पुढवि-परिणामे, आउ- १०. प्र०-भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप क्या पृथ्वी का परिणामे, जीव-परिणामे, पोग्गल-परिणामे? परिणमन है, जल का परिणमन है, जीवका परिणमन है, या पुद्गल का परिणमन है ? उ० गोयमा ! पुढविपरिणामे वि, आउपरिणामे वि, जीव- उ०-गौतम ! (जम्बूद्वीप) पृथ्वी का परिणमन भी है, परिणामे वि, पोग्गलपरिणामे वि। जीव का परिणमन भी है और पुद्गल का परिणमन भी है.... -जंबु० व० ७, सु० १७६(१) जंबूहीवे सव्वजीवाणं एगिदियत्तणं अणंतसो उववन्न- जम्बूद्वीप में सब जीवों का एकेन्द्रिय रूप से पूर्व में उत्पन्न पुव्वत्तं होना११.५० (१) जंबहीवे णं भंते ! दीये सवपाणा, सव्वजीवा, ११. प्र० भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सब प्राणी, सब सव्वभूआ, सव्वसत्ता, पुढविकाइअत्ताए, आउकाइ- जीव, सब भूत और सबसत्व पृथ्वीकाय रूप में, अप्काय रूप में, अत्ताए. तेउकाइअत्ताए, वाउकाइअत्ताए, वणस्सइ- तेजस्काय रूप में, वायुकाय रूप में और वनस्पतिकाय रूप में काइअत्ताए उववन्नपुव्वा ? पूर्व में उत्पन्न हुए हैं ? उ० हंता गोयमा ! असई, अदुवा अणंतखुत्तो। उहाँ गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्तवार पूर्व में --जंबू० व० ७, सु० १७६(२) उत्पन्न में हुये हैं ।..... जंबुद्दीवजगतीपमाणं जम्बूद्वीप की जगती का प्रमाण१२. से णं एगाए वइरामईए जगईए सवओ समंता संपरिक्खित्ते, १२. वह (जम्बूद्वीप) एक वज्रमय जगती से सब ओर से घिरा है। सा णं जगई अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तणं,' वह जगती आठ योजन ऊपर की ओर उन्नत है, मूले बारस जोअणाई विक्खंभेणं, मूल में बारह योजन विष्कम्भ वाली है, मज्झे अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, मध्य में आठ योजन विष्कम्भ वाली है, उरि चत्तारि जोअणाई विक्खंभेणं, ऊपर चार योजन विष्कम्भ वाली है, मुले वित्थिन्ना, मझे संखित्ता, उरि तणुया, गोपुच्छ- मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर पतली है. संठाण-संठिया सव्य वइरामई अच्छा-जाव-पडिरूवा। गाय के पूंछ के आकार के संस्थान वाली सर्व वज्रमयी स्वच्छ -जम्बु० व० १, सु०७ -यावत् —मनोहर है। जंबुद्दीवजगतीगवक्खपमाणं जम्बूद्वीप की जगती के गवाक्ष का प्रमाण१३. साणं जगई एगेणं महंत गवक्खकडएणं सवओ समंता १३. वह जगती एक विशाल जालकटक (जालियों के समह) से संपरिक्खित्ता, सब ओर से घिरी है। से णं गवक्खकडए अद्धजोअणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई बह जालकटक आधा योजन ऊपर की ओर उन्नत है। पांच विक्खभेणं सव्वरयणामए अच्छे-जाव-पडिरूवे । सौ धनुष चौड़ा है, सर्वरत्नय स्वच्छ-यावत्-प्रतिरूप है। -जम्बु० २०१, सु०४ जंबुददीवजगतीपउमवरवेइयापमाणं जम्बूद्वीप को जगती पर पद्मवरवेदिका का प्रमाण१४. तीसे णं जगईए उपि बहुमज्झदेसभाए-एत्थ णं महई एगा १४. उस जगती के ऊपर मध्य भाग में एक विशाल पदमवर. पउमवरवेइया पण्णत्ता, वेदिका कही गई है। अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं, जगई वह (पद्मवरवेदिका) आधा योजन ऊपर की ओर उन्नत है. समिया परिक्वेण, सम्व रयणामई अच्छा-जाव-पडिरूवा। पांच सौ धनुष विष्कम्भ वाली है। जगती के समान परिधि है। -जम्बु० व०१, सु०३ सर्वात्मना रत्नमय स्वच्छ-यावत्-प्रतिरूप है। १ ठाणं ८, सु०६४२ । सम० ८, सु०। २ सम० १२, सु०७। ३ ठाणं, सू०६४२ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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