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सूत्र ७-६
तिर्यक् लोक
गणितानुयोग
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उ० (१) गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे एगं जोयणसयसहस्सं उ०-(१) गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप का आयामआयाम-विक्खंभेणं ।
विष्कम्भ एक लाख योजन है । (२) तिण्णि जोयणसयसहस्साई सोलसयसहस्साई दोणि (२) परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताइस योजन,
अ सत्तावीसे जोअणसए तिण्णि अ कोसे अट्ठावीसं तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष एवं कुछ अधिक साढ़े तेरह च धणुसयं तेरस अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचि अंगुल की कही गई है।
विसेसाहिलं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।। (३) एगं जोयणसहस्सं उब्वेहेणं ।
(३) गहराई एक हजार योजन है । (४) णवणउति जोअणसहस्साई साइरेगाई उद्धं उच्च- (४) ऊँचाई कुछ अधिक निन्यानवें हजार योजन है।
तेणं। (५) साइरेगं जोअणसयसहस्सं सव्वग्गेणं पण्णत्ते । (५) सर्वपरिमाण कुछ अधिक एक लाख योजन का कहा।
-जंबु० व० १, सु० १७४ गया है । जंबुद्दीवस्स सासया- सासयत्तं
जम्बूद्वीप शाश्वत और अशाश्वत
८.५० (१) जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे कि सासए असासए ? ८. प्र०-भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप क्या शास्वत है या
अशाश्वत है ? उ० गोयमा ! सिय सासए, सिय असासए ।
उ०-गौतम ! कथंचित् शाश्वत है और कथंचित्
अशाश्वत है। प० (२) से केण? णं भंते ! एवं बुच्चइ-सिय सासए प्र०-भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है किसिय असासए?
'कथंचित् शाश्वत और कथंचित् अशाश्वत है ?' . उ० गोयमा ! दवट्ठयाए सासए, वण्ण-पज्जवेहि, गंध-पज्ज- उ०-गौतम ! द्रव्यों की अपेक्षा से (जम्बूद्वीप) शाश्वत है
वेहि, रस-पज्जवेहि, फास-पज्जवेहिं असासए । से तेण? और वर्णपर्यायों से, गंधपर्यायों से, रसपर्यायों से तथा स्पर्शपर्यायों णं गोयमा ! एवं बुच्चइ- 'सिय सासए, सिय असासए। से अशाश्वत है। गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है
-जंबु० व० ७, सु० १७५ 'कथंचित् शाश्वत और कथंचित् अशाश्वत है ।........ १. ५० (१) जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे कालओ केवचिरं होइ ? ६. प्र०-भगवन् ! काल की अपेक्षा से जम्बूद्वीप कब तक
रहता है? उ० गोयमा? ण कयावि णासि, ण कयावि णत्थि, ण कयावि उ०-गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप कभी नहीं था- ऐसा
ण भविस्सइ, भुवि च, भवइ अ, भविस्सइ अ, धुवे, नहीं है, कभी नहीं है, ऐसा नहीं है और कभी नहीं होगा, ऐसा णिइए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, णिच्चे जंबुद्दीवे भी नहीं है । वह था, है और रहेगा । वह ध्र व, नियत, शाश्वत, दीवे पण्णते ।
___ अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य कहा गया है । -जंबु० व० ७, सु० १७५
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-वक्षस्कार एक के सूत्र ३ में जम्बूद्वीप से सम्बन्धित चार प्रश्नोत्तर है और सूत्र १७४ में पांच प्रश्नोत्तर है, सूत्र तीन के चौथे प्रश्न में तथा सूत्र १७४ के प्रथम-द्वितीय प्रश्न में भाव-साम्य होते हुए भी शब्द साम्य नहीं है, किन्तु इनके उत्तर में शब्द साम्य एवं भाव साम्य पूर्ण रूप से है।
एक ही आगम में इस प्रकार के प्रश्न भेदों का अस्तित्व विचारणीय है। २ ऊपर सूत्र के प्रथम विभाग में जम्बू द्वीप को द्रव्य की अपेक्षा शास्वत तथा पर्याय की अपेक्षा से अशाश्वत कहा गया है और
द्वितीय विभाग में काल की अपेक्षा से सर्वथा शास्वत कहा गया है।