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लोक- प्रज्ञप्ति
चरबियाणं ठाणाई
२४३. ५० कहि णं भंते! चउरदियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?
१
२
अधोलोक
उ० गोयमा ! (१) उड्ढलोए तदेक्कदेसभाए । (२) अहोलोए तटेक्कदेसभाए ।
(३) तिरियलोए अगडेसु तलाएसु नदीसु दहेसु बावीसु पुक्खरिणीसु दोहियासु गुंजालियासु सरेसु सरपंति यासु सरसरपंतियासु बिलेसु बिलपतियासु उज्झरेसु निजारे दिल्लले पहलले वपिनेसु दीधे समुद्देसु सम्ये व जलाए जाने एवं । एत्थ णं चरिदियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता ।
उपवाए लोस्स अभागे ।
समुग्धाएवं लोयस्स असं
सट्टागंणं लोयल्स असंभा
- पण्ण० पद २, सु. १६५
पंचिदियाणं ठाणा२४४. ५० कहि णं भंते! पंचिदियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?
३० दोषमा (१) उठलो तकसमाए । (२) अहोलोए तदेक्कदेसभाए ।
(३) तिरियलोए अगडे सताए नही रहे बाबी
श्री दहिया 'जालियासु सरेसु सरपंति या सरसरपंतिया बिलेसु बिलपतियासु उज्झरेसु निरे चिल्लले पहलले वग्यि दोबे समृद्द सम्ये चैव जलाए जाने एत्व – पंचेदियाणं पज्जताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ।
उपाए लोस्स अ
नुम्याएवं लोपस्य असं भागे।
सहाणे लोस्स असंखेज्जइभागे ।
- पण्ण०, पद २, सु० १६६
उत्त० अ० ३६, गाथा १४६ ।
उत्त० अ० ३६, गाथा १५८, १७३, १०२, १८६ |
सूत्र २४३-२४४
चतुरिन्द्रिय जीवों के स्थान
२४३. प्र० ] भगवन् । पर्याप्त और अपर्याप्त चतुरिन्द्रियों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ?
उ० --- गौतम ! ( १ ) ऊर्ध्वलोक के एक भाग में हैं । (२) अधोलोक के एक भाग में है।
(३) तिर्यक्लोक में कूपों में, तालाबों में, नदियों में, द्रहों में, वापिकाओं में, पुष्करिणियों में, दीर्घिकाओं में, गुरौंजालिकाओं में, सरों में, सरपंक्तियों में, सरसर- पंक्तियों में, बिलों में, बिलपंक्तियों में, पहाड़ी शरणों में भूमि से निकलने वाले मरणों में, चिल्लों में पल्लों में तालाब के किनारे वाली भूमियों में, द्वीपों में, समुद्रों में और सभी जलाशयों में तथा सभी जलस्थानों में पर्याप्त और अपर्याप्तद्वियों के स्थान कहे गये हैं।
उपपात की अपेक्षा - लोक के असंख्यातवें भाग में उत्पन्न होते हैं ।
समुद्घात की अपेक्षा —- लोक के असंख्यातवें भाग में समुद्घा करते हैं ।
स्वस्थान की अपेक्षा - लोक के असंख्यातवें भाग में हैं ।
पंचेन्द्रिय जीवों के स्थान
२४४. प्र० - भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त पंचेन्द्रियों के स्थान कहाँ कहे गये हैं।
उ०- गौतम ! (१) ऊर्ध्वलोक के एक भाग में हैं ।
(२) अधोलोक के एक भाग में हैं ।
(२) तिलोक में सूपों में तालाबों में नदियों में हों
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में वादिकाओं में पुष्करणियों में दीधिकाओं में, 'जालिकाम में, सरों में सरपंक्तियों में, सरसर- पंक्तियों में, बिलों में, बिलपंक्तियों में पहाड़ी झरणों में भूमि में से निकलने वाले झरणों में विलों में पत्लों में, तालाबों के किनारे की भूमियों में, द्वीपों में, समुद्रों में और सभी प्रकार के जलाशयों में तथा सभी जलस्थानों में पर्याप्त और अपर्याप्त पंचेन्द्रियों के स्थान कहे. गये हैं ।
उपपात की अपेक्षा -लोक के असंख्यातवें भाग में उत्पन्न होते हैं।
समुद्घात की अपेक्षा - लोक के असंख्यातवें भाग में समुद्घात करते हैं ।
स्वस्थान की अपेक्षा - लोक के असंख्यातवें भाग में उनके स्थान हैं ।