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________________ सूत्र २४१-२४२ अधोलोक बेवियाण ठाणाई २४१. ५० कहि णं भंते! बेइंदियाणं पज्जत्तगाऽपज्जतगाणं ठाणा पन्नत्ता ? उ० गोयमा । (१) उड्लोए तदेक्कदेसभा (२) अहोलोए तदेक्स देसमा । (३) तिरिचतोए अग तलाए नबी हेसु वामीसु क्खरिणी दोहियासु गुरौंजालियासु सरेसु सरपंति यासु सरसरपंतियासु बिलेस बिलपंतियासु उज्झ रेसु निझरे चिल्लले पालनेसु बपिणेस दोबे समुद्देसु सम्बे व जलासएस जलट्ठाणेसु एत्थ णं बेइंदियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं लोगस्स असंखेज्जइभागे । समुग्धाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । सट्टाणेणं लोपस्स असंखेज्जइभागे ।" पण्ण०, पद० २, सु० १६३ तेइंदियाणं ठाणाइं २४२. प० कहि णं भंते! तेइंद्रियाणं पज्जताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? उ० गोयमा ! ( १ ) उड्ढलोए तदेक्कदेसभाए । (२) अहोलोए सदेवक (३) तिरियलए अगला नदी रहेको खरिणी दीहिषासु जातिसरे सरति यासु सरसरपंतिया बिलेसु बिलपंतियासु उज्झरेसु निज्झरेसु चिल्ललेसु पल्ललेसु वष्पिणेसु दीवेसु समुई सुसज्जे व अलासएस जलद्वा एत्थ णं तेइंदियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । समुग्धा एवं लोयस्त अभा सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे ।" - पण्ण०, पद २, सु० १६८ दीन्द्रिय जीवों के स्थान २४१. प्र० -भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त द्वीन्द्रियों के स्थान कहाँ कहे गये हैं? गणितानुयोग ११७ उ० -गौतम ! (१) वे ऊर्ध्व लोक के एक भाग में हैं । (२) अधोलोक के एक भाग में हैं। (३) निर्मलोक में कूपों में, तालाबों में, नदियों में हों में, वापिकाओं में, पुष्करिणीयों में, दीर्घिकाओं में, गुरौंजालिकाओं में, सरों में, सरपंक्तियों में, सरसरपंक्तियों में, बिलों में, बिलपंक्तियों में पहाड़ी शरणों में भूमि से निकलने वाले सरणों में, चिल्लों में पावलों में तालाब के किनारे की भूमियों में द्वीपों में, समुद्रों में और सभी जलाशयों में तथा सभी जलस्थानकों में पर्याप्त और अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों के स्थान कहे गये हैं । , 1 उपपात की अपेक्षा -लोक के असंख्यातवें भाग में उत्पन्न होते हैं । समुद्घात की अपेक्षा -लोक के असंख्यातवें भाग में समुद्घात करते हैं । स्वस्थान की अपेक्षा -लोक के असंख्यातवें भाग में हैं । त्रीन्द्रिय जीवों के स्थान २४२. प्र० - भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त त्रीन्द्रियों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? उ०- गौतम ! (१) ऊर्ध्वलोक के एक भाग में हैं । (२) अधोलोक के एक भाग में हैं। - 1 (३) सिक्लोक में यूपों में तालाबों में नदियों में हों में यापिकाओं में पुष्करिणीयों में दीषिकाओं में गुंजालिकाओं में, सरों में, सरपंक्तियों में, सरसरपंक्तियों में, बिलों में, बिल-पंक्तियों में, पहाड़ी झरणों में, भूमि में से निकलने वाले झरणों में, विश्वासों में पत्थलों में तालाब के किनारे की भूमियों में द्वीपों में, समुद्रों में और सभी जलाशयों में, तथा सभी जलस्थानों में पर्याप्त और अपर्याप्त त्रीन्द्रिय जीवों के स्थान कहे गये हैं । उपपात की अपेक्षा -- लोक के असंख्यातवें भाग में उत्पन्न होते हैं । समुद्घात की अपेक्षा - लोक के असंख्यातवें भाग में समुद्घात करते हैं । स्वस्थान की अपेक्षा - लोक के असंख्यातवें भाग में हैं । १ लोगदे से य ते सबे, न सव्वत्थ वियाहिया ॥ - उत्त० अ० ३६, गाथा १३० । २ उत० अ० ३६, गाथा १३६ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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