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________________ सूत्र २४५ अधोलोक गणितानुयोग ११६ चिदियतिरिक्खजोणियाणं ठाणा- पंचेन्द्रिय तिर्थञ्च योनिकों के स्थान२४५. प० कहि णं भंते ! पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जत्ताऽ- २४५. प्र०--भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त पंचेन्द्रियतिर्यंचपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता? योनिकों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? उ० गोयमा ! (१) उड्ढलोए तदेक्कदेसभाए। उ०-गौतम ! (१) ऊर्ध्वलोक के एक भाग में हैं। (२) अहोलोए तदेक्कदेसभाए। (२) अधोलोंक के एक भाग में हैं । (३) तिरियलोए अगडेसु तलाएसु नदीसु दहेसु वावीसु (३) तियं क्लोक में-कूपों में, तालाबों में, नदियों में, द्रहों पुक्खरिणीसु दीहियासु गुजालियासु सरेसु सरपंति- में, वापिकाओं में, पुष्करिणियों मे, दीपिकाओं में, गुजालिकाओं यासु सरसरपंतियासु बिलेसु बिलपंतियासु उज्झरेसु में, सरों में, सरपंक्तियों, सरसरपंक्तियों में, बिलों में, बिलनिज्झरेसु चिल्ललेसु पल्ललेसु वप्पिणेसु दीवेसु पंक्तियों में, पहाड़ी झरणों में, भूमि में से निकलने वाले झरणों समुद्देसु सव्वेसु चैव जलासएसु जलट्ठाणे-एत्थ णं में, चिल्वलों में, पल्वलों में, तालाबों के किनारे वाली भुमियों में, पंचेदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा द्वीपों में, समुद्रों में और सभी प्रकार के जलाशयों में, तथा सभी पण्णत्ता। जलस्थानों में पर्याप्त तथा अपर्याप्त तिर्य च-पंचेन्द्रियों के स्थान कहे गये हैं। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । उपपात की अपेक्षा-लोक के असंख्यातवे भाग में उत्पन्न होते हैं। समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । समुद्घात की अपेक्षा-लोक के असंख्पातवे भाग में समुद्घात करते हैं। सट्ठागेणं लोगस्स असंखेज्जइभागे।' स्वस्थान की अपेक्षा-लोक के असंख्यातवें भाग में इनके -पण्ण०, पद २, सु०१७५ स्थान हैं। ॥ अधोलोक वर्णन सम्पूर्ण । १ उत्त० अ० ३६, गाथा १८९ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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