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________________ सूत्र २३०-२३१ अधोलोक - गणितानुयोग ११३ २३०. ५० कहि णं भंते ! बादरपुढविकाइयाणं अपज्जतगाणं ठाणा २३०. प्र० भगवन् ! अपर्याप्त बादर पृथ्विकायिकों के स्थान पण्णता? कहाँ कहे गये हैं। उ० गोयमा ! जत्थेव बादरपुढविकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा उ० गौतम ! जहाँ पर्याप्त बादर पृथ्विकायिकों के स्थान हैं तत्थेव बादरपुढविकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णता। वहीं पर अपर्याप्त बादर पृथ्विकायिकों के स्थान कहे गये हैं। तं जहा- उववाएणं सव्वलोए । यथा-उपपात की अपेक्षा-सम्पूर्ण लोक में उत्पन्न होते हैं । समुग्धाएणं सम्वलोए। समुद्घात की अपेक्षा–सम्पूर्ण लोक में समुद्घात करते हैं । सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । स्वस्थान की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में इनके स्थान हैं। प० कहि णं भंते ! सुहमपुढविकाइयाणं पज्जत्तगाणं अपज्ज- प्र. भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्विकायिकों के तगाण य ठाणा पण्णत्ता? स्थान कहाँ कहे गये हैं। उ० गोयमा ! सुहमपुढविकाइया जे पज्जत्तगा जे य अपज्ज- उ०-हे आयुष्मान् श्रमण गौतम ! सूक्ष्म पृथ्विकायिक जो तगा ते सव्वे एगविहा अविसेसा अणाणत्ता सव्वलोय- पर्याप्त और अपर्याप्त हैं, वे सब एक प्रकार के हैं, वे किसी प्रकार परियावयण्णगा पण्णत्ता समणाउसो। की विशेषता वाले नहीं हैं, वे नाना प्रकार के नहीं हैं और वे -पण्ण, पद० २, सु० १४८-१५० सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हैं। आउक्काइयाणं ठाणाइं-- अप्कायिक जीवों के स्थान२३१. प० कहिणं भंते ! बादरआउक्काइयाणं पज्जत्ताणं ठाणा २३१. प्र. भगवन् ! पर्याप्त बादर अप्कायिकों के स्थान कहाँ पण्णता? कहे गये हैं ? उ० गोयमा ! सटाणेणं सत्तसु घणोदधीसु सत्तसु घणोदधिव- उ. गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से सात घनोदधियों में लएसु और सात घनोदधिवलयों में हैं । (१) अहोलोए पायालेसु भवणेसु भवणपत्थडे सु। (१) अधोलोक में-पातालों में, भवनों में और भवन-प्रस्तटों (२) उड्ढलोए कप्पेसु विमाणेसु विमाणावलियासु (२) ऊर्ध्वलोक में-कल्पों में, विमानों में, विमान-पंक्तियों विमाणपत्थडेसु । . - में और विमान-प्रस्तटों में हैं। (३) तिरियलोए अगडेसु तलाएसु नदीसु दहेसु वावीसु (३) तिर्यक्लोक में अगडों में (कूपों में), तालाबों में, पुक्खरिणीसु दीहियासु गुन्जालियासु सरेसु सरपंति- नदियों में, द्रहों में, वापिकाओं में, पुष्करणियों में, दीपिकाओं में, यासु सरसरपंतियासु विलेसु, विलतियासु उज्झ- गुजालिकाओं में, सरों में, सरपंक्तियों में, सरसर-पंक्तियों में, रेसु निझरेसु चिल्ललेस पल्ललेसु वप्पिणेसु दीवेसु बिलों में, बिल-पंक्तियों में, उज्झरों में, (पहाड़ी झरणों में), समुद्देसु सम्वेसु चेव जलासएस जलट्ठाणेसु-एत्थ निज्झरों में (जमीन में से निकालने वाले झरणों में), चिल्ललों में गं बादरआउक्काइयाणं पज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। (छोटे जलाशयों में), पल्वलों में (बहुत छोटे जलाशयों में), तालाब के किनारे के समीप वाली भूमि में, द्वीपों में, समुद्रों में और जलाशयों में एवं जलस्थानों में पर्याप्त बादर अप्कायिकों के स्थान कहे गये हैं। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइ भागे । उपपात की अपेक्षा-लोक के असंख्यातवें भाग में इनके स्थान हैं। समुग्धाएणं लोयस्स असंखेज्जइ भागें । समुद्घात की अपेक्षा-लोक के असंख्यातवें भाग में इनके स्थान हैं। सट्ठाणणं लोयस्स असंखेज्जइ भागे। स्वस्थान की अपेक्षा-लोक के असंख्यातवें भाग में इनके स्थान हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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