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सूत्र २२१-२२३
अधोलोक
गणितानुयोग
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णमृगीयवाइय-जाव-भोगभोगाइं भुजमाणीओ विहरंति, भोग भोगती हुई रहती हैं, यथा-गाथायें-आठ दिशाकुमारियों के तं जहा-- गाहा
नाम१. भोगंकरा,
२. भोगवई, १. भोगंकरा,
२. भोगवती, ३. सुभोगा, ४. भोगमालिणी। ३. सुभोगा,
४. भोगमालिनी, ५. तोयधारा ६. विचित्ता य, ५. तोयधारा,
६. विचित्रा, और ७. पुप्फमाला,
८. अणिदिया॥ ७. पुष्पमाला,
८. अनिन्दिता। -जंबु० वक्ख० ५, सु० ११२ उडढलोगवत्थव्वाओ अट्ठदिसाकुमारीओ- ऊर्ध्वलोक में रहने वाली आठ दिशाकुमारियाँ-२२२. उड्ढलोगवत्थव्वाओ अट्ठदिसाकुमारिमहत्तरियाओ सएहिं २२२. ऊर्ध्वलोक में रहने वाली आठ महादिशाकमारियां 'समभमि
सएहि कूडेहिं–एवं तं चैव पुथ्ववणिय-जाव-विहरंति, से पांच सौ योजन ऊँचे नन्दनवन में पांच-पांच सौ योजन ऊँचे' तं जहा-गाहा
अपने-अपने आठ कूटों पर 'यहाँ वही पूर्व वणित कहें'-यावत्
रहती हैं । यथा-गाथार्थ- आठ दिशाकुमारियों के नाम१. मेहंकरा,
२. मेहबई, १. मेघंकरा,
२ मेघवती, ३. सुमेहा, ४. मेहमालिणी। ३. सुमेघा,
४. मेघमालिनी, ५. सुवच्छा , ६. वच्छमित्ता य, ५. सुवत्सा ,
६, वत्समित्रा, ७. वारिसेणा,
८. बलाहगा ॥ ७. वारिसेणा,
८. बलाहका। -जंबु० वक्ख० ५, सु० ११३ परत्थिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ठदिसाकुमारीओ- पूर्व दिशा के रूचकपर्वत पर रहने वाली आठ दिशा
__ कुमारियाँ२२३. पूरस्थिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ठदिसाकुमारिमहत्तरियाओ २२३. पूर्व दिशावर्ती रुचकपर्वत पर रहने वाली आर
१ अधोलोक और उर्ध्वलोक की दिशाकुमारियों के नामों में भिन्नता :५. सुवच्छा, ६, वच्छमित्ता य, ७. वारिमेणा, ८. बलाहगा।
-ठाणं ८, सु० ६४३ .२ ५. तोयधारा, ६. विचित्ता य, ७, पुष्फमाला, ८. अणिदिया।
-ठाणं ८, सु० ६४३ आठ दिशा कुमारियाँ अधोलोक में कहाँ रहती है ? इसका समाधान इस प्रकार किया गया है :गाथा-१. सोमणस, २. गंधमायण, ३, विज्जुप्पभ, ४, मालवंतवासीओ। अट्टदिसिदेवयाओ, वत्थब्बाओ अहेलोए ।
-ठाणं अ०८ सु० ६४३ की टीका :'अधोलोकवास्तव्या:-चतर्णा गज दन्तानामधः समभूतलान्नवशतयोजनरूपा तियंग्लोकव्यवस्था विमुच्य प्रतिगजदन्तं विभिनेर तत्र भवनेषु वसनशीला.....
-जंबु० वक्ख०५ सू० ११२वी टीका आठ दिशाकूमारियाँ ऊर्ध्व लोक में कहाँ रहती हैं ? इसका समाधान इस प्रकार किया गया है :........"ऊर्ध्वलोकवासित्वं चासां समभूतलात् पंचशतयोजनोच्चनन्दनवनगतपंचशतिकाष्टकटवासित्वेन ज्ञयं ।।
-जंबु० वक्ख, सू० ११३ की टीका सभी दिशाकुमारियाँ भवनपति जाति की देवियाँ हैं-यह इस प्रकार सिद्ध किया गया है :....."दिक्कुमारीणां......"स्थानागे पल्योपमस्थितेर्भणनात्... " भवनपति जातीयत्वं सिद्ध......... ....... दिक्कुमार्या-दिक्कुमारभवनपतिजातीया महत्तरिकाः........
-ठाणं ८, सु० ६४३ की टीका दिशाकुमारियाँ की संख्या ५६ है। -जंबु० वक्ख० १, सु० ११२, ११३, ११४ मुल पाठों का संकलन जंबूद्वीप पण्णत्ति से किया है उक्त सूत्रों के पूर्वापर अंश धर्मकथानुयोग के जिन जन्माभिषेक स्कंध१. पृष्ठ १०-१४ सूत्र २६ से ३४ पर आ गये हैं।