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________________ १०६ लोक-प्रज्ञप्ति अधोलोक सूत्र २१८ धरणस्स एवं चैव । नवरं :-अट्ठावीसं देवसहस्सा, सेसं तं - इसी प्रकार धरण के भी हैं। विशेष :-अठावीस नेव। हजार देव हैं । शेष उसी प्रकार है ।" जहा धरणस्स एवं-जाव-महाघोसस्स । नवरं :-पायत्ताणि- -"जिस प्रकार धरण के 'पदातिसेनापति के प्रथम कच्छ याहिबई अण्णे ते पुव्वभणियाओ पण्णताओ। में देवों की संख्या' है इसी प्रकार-यावत्-महाघोष की है। विशेष:-अन्य पदातिसेनापति पूर्व कथित के समान ही कहे -ठाणं ७, सु०५८३ गये हैं। भवणवइंदाणं लोगवालाणं य उप्पायपव्वया भवनवासी इन्द्रों और उनके लोकपालों के उत्पात पर्वत२१८. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तिगिच्छकूडे उप्पा- २१८. असुरकुमार असुरेन्द्र चमर का तिगिच्छकूट उत्पात पर्वत यपब्बए मूले दसबावीसे जोयणसए विक्खंभेणं पण्णत्ते,' है। 'उस पर्वत के' मूल का विष्कंभ 'दस सौ बाईस' योजन का कहा गया है। चमरस्स णं असुरिंदस्त असुरकुमाररण्णो १. सोमस्स महा- असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के (१) सोम 'लोकपाल' महाराज रण्णो सोमप्पभे उप्पायपव्वए दस जोयणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं, का सोमप्रभ उत्पात पर्वत दस सौ 'एक हजार' योजन ऊपर की दस गाउयसयाई उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसयाई विक्वंभेणं ओर उन्नत है, उसका उद्वेध भूमि में नीचे की ओर दस सौपणते। 'एक हजार' गाउ 'कोश' का है, 'उसका' मूल में विष्कंभ दस सौं 'एक हजार' योजन का कहा गया है। चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो २. जमस्स महा- असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के (२) यम 'लोकपाल' महाराज रणो जमप्पभे उप्पायपवए दस जोयणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं, का यमप्रभ उत्पात पर्वत दस सौ 'एक हजार' योजन ऊपर की दस गाउयसयाई उव्वेहेण, मुले दस जोयणसयाई विवखंभेणं ओर उन्नत है, उसका उद्वेध दस सौ 'एक हजार' गाऊ-'कोश' पण्णत्ते । का है । और उसका मूल में विष्कंभ दस सौ-एक हजार योजन का कहा गया है। एवं ३ वरुणस्स वि० एवं ४ वेसमणस्स वि० । इसी प्रकार (३) वरुण लोकपाल और (४) वैश्रमण लोकपाल के उत्पात पर्वत हैं। महावीर विद्यालय से प्रकाशित - वियाहपण्णत्तिसुत्तं प्रथम भाग पृष्ठ ११०-१११ में श० २, उ०८ सू०१ के मूलपाठ से तथा टिप्पण न० ७ से असुरराज चमर के तिगिच्छकूट उत्पात पर्वत का प्रमाण यहाँ तीन अशों में उद्धृत किया गया। प्रथम अंश मूलपाठ से :___ जंबुट्टीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लातो वेइयंतातो अरुणोदयं समुदं बावालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता-एत्थणं चमरस्स असुररण्णो तिगिछिकूड़े नाम उपायपव्वते, पण्णत्ते, सत्तरसएककवीसे जोयणसते उड्ढं उच्चत्तेण, चत्तारितीसे जोयणसते कोसं च उब्वेहेणं, गोत्थूभस्स आवासपब्वयस्स पमाणेणं नेयवं, नवरंः-उवरिल्लं पमाणं मज्झे भाणियब्व, जाव... द्वितीय अंश टिप्पण नं०७ से :मूले दसबावीस जोयणसते विक्वंभेण, मझे चत्तारि चउबीसे जोयणसते विक्र्वभेणं, उरि सत्ततेवीसे जोयणसते विक्ख भेणं, मूले तिण्णिजोयणसहस्साई दोण्णि य य बत्तीसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेगं, मज्झे एग जोयणसहस्सं तिण्णि य इगुयाले जोयणसए किचिदिसेसूर्ण परिक्खे वेणं, उरि दोष्णि य जोयणसहस्साई दोणि य छलसीए जोयणसए किचिबिसेसाहिए परिवेणं........ तृतीय अंश मूलपाठ से :मूले वित्थडे, मज्झे संखित्ते, उप्पिं विसाले वरवइरविग्गहिए महामउंदसंठाण संहिए सव्वग्यणामए अच्छे जाव पडिरूबे........
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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