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सूत्र २१६-२१७
अधोलोक
गणितानुयोग
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२. जसोधरे-आसराया पोढाणियाहिवई,
२. यशोधर अश्वराज-अश्वसेना का सेनापति । ३. सुदंसणे-हत्थिराया कुन्जराणियाहिबई,
३. सुदर्शन हस्तिराज-कुञ्जरसेना का सेनापति । ४. नीलकंठे-महिसाणियाहिवई,
४. नीलकंठ-महिषसेना का सेनापति । ५. जाणंदे-रहाणियाहिवई,
५. आनन्द-रथसेना का सेनापति । ६. नंदणे-नट्टाणियाहिवई,
६. नन्दन-नर्तकसेना का सेनापति । ७. तेतली-गंधवाणियाहिबई। -ठाणं० ७, सु० ५८२ ७. तेतली-गन्धर्वसेना का सेनापति । २१६. भूयाणंदस्त नागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो सत्त अणिया, २१६. नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र भूतानन्द के सात सेनायें और सत्त अणियाहिवई पण्णत्ता, तं जहा
सात सेनापति कहे गये हैं यथा१-७. पायत्ताणिए-जाव-गंधवाणिए ।
पदातिसेना-यावत्-गंधर्व सेना । १. दक्खे-पायत्ताणियाहिवई,
१. दक्ष-पदातिसेना का सेनापति । २. सुग्गीवे-आसराया पोढाणियाहिवई,
२. सुग्रीव अश्वराज-अश्वसेना का सेनापति । ३. सुविक्कमे–हत्थिराया कुन्जराणियाहिवई,
३. सुविक्रम हस्तिराज-कुञ्जरसेना का सेनापति । ४. सेयकठे-महिसाणियाहिवई,
४. श्वेतकंठ-महिषसेना का सेनापति । ५. नंदुत्तरे-रहाणियाहिवई,
५. नन्दुत्तर-रथसेना का सेनापति । ६. रतो-नट्टाणियाहिवई,
६. रती-नर्तकसेना का सेनापति । ७. माणसे-गंधवाणियाहिवई ।
७. मानस-गंधर्वसेना का सेनापति । -एवं-जाव-घोस-महाघोसाणं नेयवं ।'
- "इसीप्रकार-यावत्-'घोष महाघोष' की 'सेनायें और
सेनापतियों के सम्बन्ध में जानना चाहिये।" "जहा धरणस्स तहा सन्वेसि दाहिणिल्लाणं-जाव-घोसस्स" । -"दक्षिण के घोष पर्यन्त सभी 'इन्द्रों की सेनायें और
सेनापतियों के नाम आदि' धरण के समान हैं।" "जहा भयाणवस्स तहा सव्येसि उत्तरिल्लाणं-जाव-महा- -"उत्तर के महाघोष पर्यन्त सभी 'इन्द्रों की सेनायें और घोसस्स"।
-ठाणं० ७, सु० ५८२ सेनापतियों के नाम आदि' भूतानन्द के समान हैं।" भवणणायत्ताणियाहिवईणं सत्तसु कच्छासु देवसंखा- भवनवासि पदाति सेनापतियों के सात कच्छों में देवों की
सख्या२१७. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो दुमस्स पायत्ताणि- २१७. असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के पदातिसेनापति द्रम
याहिवइस्स सत्त कच्छाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पढमा कच्छा के सात कच्छ कहे गये हैं, यथा-प्रथम कच्छ -यावत्-सप्तम -जाव-सत्तमा कच्छा।
कच्छ। चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो दुमस्स पायत्ताया- असुरकुमार राज असुरेन्द्र चमर के द्रम पदातिसेनापति के हिवइस्स पढमस्स कच्छाए चउसट्ठिदेवसहस्सा पण्णत्ता, प्रथम कच्छ में चौसठ हजार देव कहे गये हैं। जावइया पढमा कच्छा, तम्बिगुणा दोच्चा कच्छा, तब्बिगुणा प्रथम कच्छ में जितने 'देव' हैं उनसे दुगुने दूसरे कच्छ में तच्छा कच्छा एवं-जाव-जावइया छट्ठा कच्छा तब्बिगुणा हैं । उनसे दुगुने तीसरे कच्छ में हैं इस प्रकार-यावत्-छठे सत्तमा कच्छा।
कच्छ में जितने देव हैं उनसे दुगुने सातवें कच्छ में हैं । -एवं बलिस्स वि ! नवरं-महद्दुमे सट्ठिदेवसाहस्सीओ, --"इस प्रकार बलि के भी हैं । विशेष :-महद् म पदातिसेसं तं चेव ।
सेनापति के प्रथम कच्छ में साठ हजार देव हैं। शेष उसी प्रकार हैं।"
१ ठाणं ५, उ०१, सू० ४०४ ।