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________________ १०३ लोक-प्रज्ञप्ति अधोलोक सूत्र २०८-२१० wimmaaaaaaaaa.. १ समिया, २. चंडा, ३. जाया। १. समिता, २. चंडा, ३. जाता। १. अम्भितरिया-समिया, १. आभ्यन्तर परिषद-समिता, २. मज्झिमिया-चंडा, २. मध्यम परिषद-चंडा, ३. बाहिरिया-जाया। ३. बाह्य परिषद-जाया। उ० गोयमा ! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररन्नो अभि- उ. हे गौतम ! असुरराज असुरेन्द्र चमर की आभ्यन्तर तरपरिसाए देवा वाहिता हव्वमागच्छंति, णो अव्वा- परिषद के देव बुलाने पर शीघ्र आते हैं और बिना बुलाये नहीं हिता। मज्झिम-परिसाए देवा वाहिता हव्वमागच्छंति, आते हैं। मध्यम परिषद के देव बुलाने पर शीघ्र आते हैं और अवाहिता वि । बाहिर-परिसाए देवा अव्वाहिता नहीं बुलाने पर भी आ जाते हैं। बाह्य परिषद के देव बिना हव्वमागच्छंति। बुलाये ही शीघ्र आ जाते हैं। अदुत्तरं च णं गोयमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया अथवा-हे गौतम ! असुरराज असुरेन्द्र चमर किसी प्रकार अन्नयरेसु उच्चावएसु कज्जकोडंबेसु समुप्पन्नेसु अम्भि- का सामान्य या विशेष कौटुम्बिक कार्य होने पर आभ्यन्तर परिषद तरियाए परिसाए सद्धि संमइ-संपुच्छणाबहुले विहरइ। के देवों से सम्मति लेता है और उन्हें पूछता रहता है। मध्यम मज्झिमपरिसाए सद्धि पयं एवं पवंचेमाणे २ विह- परिषद के देवों को गुण-दोष का विस्तारपूर्वक कथन करता हुआ रति । बाहिरियाए परिसाए सद्धि पयंडेमाणे २ रहता है। बाह्य परिषद के देवों को विध्या देश एवं निषेधादेश विहरति । से तेण? गं गोयमा ! एवं वुच्चइ- करता हुआ रहता है। इसलिए हे गौतम ! असुर कुमारों से चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तओ राजा असुरेन्द्र चमर की तीन परिषदायें कही गई हैं, यथापरिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा१. समिया, २. चंडा, ३. जाता। १. समिता, २. चंडा, ३. जया। १. अभितरिया-समिया, १. आभ्यन्तर परिषद-समिता। २. मज्झिमिया-चंडा, २. मध्यम परिषद-चडा। ३. बाहिरिया-जाता। ३. बाह्य परिषद-जाया । -जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ११८ । । बलिस्स परिसाओ बलि की परिषदायें२०६ : १० बलिस्स णं भंते ! बहरोयणिवस्स वइरोयणरन्नो कति २०६:प्र. हे भगवन् ! वैरोचन राजा वैरोचनेन्द्र बली की कितनी परिसाओ पण्णत्ताओ? __ परिषदायें कही गई है ? उ० गोयमा ! तिणि परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- उ० हे गौतम ! तीन परिषदायें कही गई हैं, यथा१. समिया, २. चंडा, ३. जाया। १. समिता, २. चंडा, ३. जाया। १. अभितरिया-समिया, १. आभ्यन्तर परिषद-समिता । २. मज्झिमिया-चंडा, २. माध्यमिका परिषद-चंडा। ३. बाहिरिया-जाया। ३. बाह्य परिषद-जाया। -जीवा० पडि० ३, उ०१, सु० ११६ । तिविहासु बलिपरिसासु देव-देवीणं संखा- बली की तीन प्रकार की परिषदाओं में देव-देवियों की संख्या २१०:५० [१] बलिस्स गं वइरोणिदस्स बहरोयणरनो अभि- २१०: प्र० [१] वैणेचन राजा वैरोचनेन्द्र बली की आभ्यन्तर तरियाए परिसाए कति देवसहस्सा पण्णत्ता? परिषद के कितने हजार देव कहे गये हैं ? [२] मज्झिमियाएपरिसाए कति देवसहस्सा पण्णता? [२] माध्यमिका परिषद के कितने हजार देव कहे गये हैं ? [३] बाहिरियाए परिसाए कति देवसहस्सा पण्णता? [३] बाह्य परिषद के कितने हजार देव कहे गये हैं ? [४] अभितरियाए परिसाए कति देविसया पण्णता? [४] आभ्यन्तर परिषद की कितनी सौ देवियाँ कही गई हैं ? [५] मज्झिमियाए परिसाए कति देविसया पण्णता? [५] माध्यमिका परिषद की कितनी सौ देवियां कही गई हैं ? [६] बाहिरियाए परिसाए कति देविसया पण्णता? [६] बाह्य परिषद की कितनी सौ देवियाँ कही गई हैं ? anaw
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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