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सूत्र १६६
अधोलोक
गणितानुयोग
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पउमवरवेइयाए, वणसंडस्स य वण्णओ।
यहाँ पद्मवरवेदिका और वनखण्ड का वर्णन कहना
चाहिए। तस्स णं तिगिछिकूडस्स उप्पायपव्वयस्स उप्पि बहुसमर- उस तिगिच्छ कूट उत्पात पर्वत से ऊपर का भू भाग अधिक मणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते । वण्णओ।
सम एवं रमणीय कहा गया है। (भू भाग का) वर्णन कहना
चाहिए। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेस- उस अधिक सम एवं रमणीय भू भाग के मध्य में एक महान भागे-एत्थण महं एगे पासायडिसए पण्णत्ते । अड्ढा- प्रासादावतंसक (भव्य प्रासाद) कहा गया है। वह प्रासाद ढाई सौ इज्जाइ जोयणसयाइ उड्ढे उच्चत्तेण, पणवीस जोयणसयं योजन ऊपर की ओर उन्नत है और उसका विष्कम्भ एक सौ विक्खंभेणं।
पच्चीस योजन का है। पासायवण्णओ। उल्लोयमिवण्णओ।
प्रासाद का वर्णक, छत का वर्णक, आठ योजन की अट जोयणाइं मणिपेढिया, चमरस्स सीहासणं मणिपीठिका और चमर का सपरिवार सिंहासन (का सपरिवार भाणियव्वं ।
वर्णक) यहाँ कहना चाहिए। तस्स णं तिगिछिकडस्स दाहिणणं छक्कोडिसए पणपन्नं उस तिगिच्छ कूट (पर्वत) के दक्षिण में छह सो पचपन करोड़ च कोडीओ, पणतीसं च सयसहस्साइं, पण्णासं च जोयण- पैतीस लाख पचास हजार योजन अरुणोदक समुद्र में तिरछे जाने सहस्साई अरुणोदए समुद्दे तिरियं वीइवइत्ता, अहे य पर और (वहाँ से) नीचे रल प्रभा पृथ्वी के भीतर चालीस हजार रयणप्पभाए पुढवीए चत्तालीसं जोयणसहस्साइं ओगा. योजन जाने पर असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर की चमर चंचा हिता-एत्थ णं चमरस्स असुरिदस्स असुररनो चमरचंचा नाम को राजधानी कही गई है। नामं रायहाणी पण्णत्ता। एग जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खभेणं', तिण्णि जोयण- (वह राजधानी) एक लाख योजन की लम्बी चौड़ी हैं और सयसहस्साई सोलससहस्साई दोष्णि य सत्तावीसे जोयण- उसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तावीस योजन सए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस य अंगुलाई तीन कोश अठावीस धनुष तेरह अंगुल तथा आधे अंगुल से कुछ अद्धंगुलं च किचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते। अधिक कही गई है। पागारो दिवढं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पण्णासं (उस राजधानी का) प्राकार डेढ सौ योजन ऊपर की ओर जोयणाई विक्ख भेणं, उरि अद्धतेरस जोयणाई विक्खंभेणं उन्नत है, (प्राकार के) मूल का विष्कम्भ पचास योजन है, (प्राकार कविसीसगा अद्धजोयणायाम, कोसं विक्खंभेणं देसूर्ण के) ऊपर का विष्कम्भ साड़े बारह योजन है, (प्राकार के) कपि अडजोयणं उड्ढ उच्चत्तेणं, एगमेगाए बाहाए पंच पच शीर्षक-कंगूरे आधा योजन लम्बे हैं, एक कोश चौड़े हैं और आधा दारसया, अड्ढाइज्जाई जोयणसयाइ उड्ढ उच्चत्तेणं, योजन से कुछ कम ऊपर की ओर उन्नत हैं । (प्राकार की) प्रत्येक अद्धं विक्खंभेण ।
बाहु में पांच पांच सौ द्वार हैं, (प्रत्येक) द्वार ढाई सौ योजन ऊपर की ओर उन्नत है (ढाई सौ के आधा अर्थात्) सवा सौ योजन का चौड़ा है।
यहाँ म० वि० वियाहपण्णत्ति स० २, उ० ८, सु० १ में 'जंबुद्दीवपमाणा' । यह संक्षिप्त वाचना का पाठ है। यह पाठ सगत होते हुए भी भ्रांति मूलक है क्योंकि श० १३, उ०६, सू०५ में
सेसं तं चैव जाव तेरस अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचि विसेसाहिया परिक्खेवेणं । ऐसा पाठ है । अतः श० २, उ० ८, सु० १ में-"जंबुद्दीवपमाणा" के स्थान में श० १३, उ० ६, सू० ५ में सूचित पाठ ही होना चाहिए।
२.
म० वि० वियाहंपण्णत्ति, श० २, उ०८, सू०६, पृष्ठ ११२ के टिप्पण ४ से चमरचंचा राजधानी के प्राकार आदि का परिमाण यहाँ दिया है।