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________________ ६६ लोक-प्रज्ञप्ति अधोलोक सूत्र १९६ w चरिंदस्स चमरचंचावासो चमरेन्द्र का चमरचंचावास१९६ : प० कहि णं भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकमाररण्णो १९६ : प्र. भगवन् ! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर का चमर चमरचंचे नाम आवासे पन्नत्ते ? । चंच नामक आवास कहाँ पर कहा गया है ? उ० गोयमा ! जबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स दाहिणणं उ० गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप से मेरु पर्वत के दक्षिण में तिरियमसंखेज्जे बीवसमुद्दे'बीइवइत्ता अरुणवरस्स दीवस्स तिरछे असंख्य द्वीप समुद्र लाँघने के बाद अरुणवरद्वीप की बाहर की बाहिरिल्लाओ बेइयंताओ अरुणोदयं समुई बायालीसं वेदिका के अन्तिम भाग से अरुणवर समुद्र में बियालीस हजार जोयणसहस्साई ओगाहित्ता-एत्य ण चमरस्स असुरिदस्स योजन जाने के बाद असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर का तिगिछि असुरकुमाररण्णो तिगिछिकूडे नाम उप्पायपव्वए कूट नामक उत्पात पर्वत कहा गया है। पण्णत्ते । सत्तरसएक्कवीसे जोयणसए उड्ढ उच्चत्तेणं । (वह) सत्रह सौ इकवीस योजन ऊपर की ओर उन्नत है, चत्तारितोसे जोयणसए कोसं च उब्वेहेण । चार सो तीस योजन और एक कोश भूमि में गहरा है, मूले बसबावीसे जोयणसए विक्खभेण, उसका विष्कम्भ मूल में एक हजार बाईस योजन का है। मझे चत्तारि चउबीसे जोयणसए विक्खभेण, मध्य में चार सौ चौबीस योजन का विष्कम्भ है। उरि सत्ततेवीसे जोयणसए विक्खभेण, ऊपर सातसौ तेवीस योजन का विष्कम्भ है । मूले तिण्णि जोयणसहस्साई दोण्णि य बत्तीसुत्तरे जोयणसए उसकी परिधि मूल में तीन हजार दो सौ बत्तीस योजन से किचि विसेसूर्ण परिक्खेवेणं । कुछ कम है। मझे एग जोयणसहस्स तिण्णि य इगुयाले जोयणसए मध्य में एक हजार तीन सौ इकतालीस योजन से कुछ किचि विसेसूण परिक्खेवेणं । कम है। उरि दोण्णि य जोयणसहस्साई दोण्णि य छलसीए जोयण- ऊपर दो हजार दो सौ छियालीस योजन से कुछ अधिक है। सए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं । मूले वित्थडे, मज्झे संखित्ते, उप्पि विसाले, वरवइर मूल में विस्तृत, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर से विशाल विग्गहिए महामउंदसठाणसठिए सव्वरयणामए अच्छे जाव है। श्रेष्ठ वन जैसी आकृति है, महा मुकंद के संस्थान से स्थित पडिरूवे। है, सब रत्नमय है स्वच्छ है यावत् मनोहर है । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं य वणसंडेणं सव्वओ वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर से समंता संपरिक्खित्ते। घिरा हुआ है। क-यहाँ संक्षिप्त वाचनाकार की सूचना है : एवं जहा वितिय सए सभा उद्देस वत्तव्वया (स० २ उ०८, सु० १) सच्चेव अपरिसेसा नेयव्वा, नवरं इमं नाणतं जाव तिगिच्छ कूडयस्स उप्पायपव्वयस्स, चमरचंचाए रायहाणीए चमरचंचस्स आवासपब्वयस्स अन्नेसि च बहणं सेसं तं चेव जाव तेरस अगुलाई अद्धंगुल च किचि विसेसाहिया परिक्खेवेणं । इस सूचना के अनुसार (स० २, उ० ८, सु० १) से “बोइवइत्ता".""से....... कोसं च उव्वेहेण..." तक का पाठ यहाँ दिया है। ख-ऊपर अंकित संक्षिप्त वाचना की सूचना में-"नवरं इमं नाणत्तं" के आगे जो जाव दिया है-इसका अभिप्राय अन्वेषणीय है। यहाँ (म० वि० विया० स० २, उ० ८, सू० १ में) सक्षिप्त वाचनाकार की सूचना है : ...गोत्थुभस्स आवासपव्वयस्स पमाणेणं नेयव्वं नवरं उवरिल्ल पमाणं मज्झे भाणियव्वं जाव मूले वित्थडे..." इस सूचना के अनुसार वियाहपण्णत्ति प्रथम भाग पृ० १११ के टिप्पण से यहाँ पाठ दिया है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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