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________________ सूत्र १६५ अधोलोक गणितानयोग ६५ गोत्थुभस्स आवासपव्वयस्स पमाणेण नेयव्वं, इस उत्पात पर्वत का प्रमाण गोस्तुभ आवास पर्वत के नवरंः-उवरिल्ले पमाण मज्झे भाणियव्वं जाव समान जानना चाहिए। विशेष (अन्तर) यह है कि मूले वित्थडे, मज्झे संखित्ते, उप्पि विसाले, वरवइर (गस्तुिभ आवास पर्वत के) ऊपर के प्रमाण के समान उत्पात पर्वत के) मध्य भाग का प्रमाण जानना चाहिए। विग्गहिए महामउदसंठाणसंठिए सव्वरयणामए यावत् यह मूल में विस्तृत है, मध्य में संक्षिप्त है और ऊपर अच्छे जाव पडिरूवे। से विशाल है। इस (पर्वत) की आकृति श्रेष्ठ वज्र जैसी है, महा मुकुंद (वाद्य) के संस्थान से स्थित है। सारा पर्वत रत्नमय है स्वच्छ है यावत् प्रतिरूप है। से णं एगाए पउमवरवेइयाएं एगेणं वणसंडेणं य सम्वओ यहाँ (उत्पात पर्वत) चारों ओर एक पद्मवर वेदिका और समंता संपरिक्खित्ते । एक वनखण्ड से घिरा हुआ है। पउमवरवेईयाए वणसंडस्स य वण्णओ। यहाँ पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड का वर्णन कहना चाहिए। तस्स णं तिगिछिकूडस्स उप्पायपव्वयस्स उप्पि उस तिगिच्छ कूट उत्पात पर्वत के ऊपर का भू-भाग अत्यधिक बहसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते । वण्णओ। तस्स णं सम एवं रमणीय कहा गया है। यहाँ भूभाग का वर्णन कहना बहसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेस चाहिए। उस सम एवं रमणीय भूभाग के ठीक मध्य भाग में एक भागे-एत्थ णं महं एगे पासायडिसए पण्णत्ते । अड्ढा- विशाल प्रासादावतसक (सुन्दर महल) कहा गया है । इस (प्रासादाइज्जाइं जोयण-सयाई उडढं उच्चत्तेणं, पणवीसं जोयण- वतंसक) की ऊँचाई दो सौ पचास योजन है और विष्कम्भ एक सौ सयं विक्खंभेणं । पचीस योजन का है। पासाय-वण्णओ। उल्लोयभूमिवण्णओ। अटु जोयणाई यहाँ प्रासादावतंसक एवं उसके ऊपरी भाग का वर्णन मणिपेढिया। कहना चाहिए । आठ योजन की मणिपीठिका है। चमरस्स सोहासणं सपरिवारं भाणियव्वं । यहाँ चमरेन्द्र के सिंहासन का सपरिवार वर्णन कहना चाहिए। तस्स णं तिगिछिकूडस्स दाहिणेणं छक्कोडिसए पणपन्नं उस तिगिच्छ कूट (उत्पात पर्वत) के दक्षिण में अरुणोदय च कोडीओ पणतीसं च सतसहस्साइं पण्णासं च जोयण समुद्र में छह सौ पचपन करोड़ पैंतीस लाख पचास हजार योजन असता मम तिरिय वीरवता अडेय जाने पर नीचे रत्न प्रभा पृथ्वी का चालीस हजार योजन भाग रयणप्पमाए पुढवीए चत्तालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता अवगाहन करने पर असुरराज असुरेन्द्र चमर की चमर चंचा एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो चमरचचा नामक राजधानी कही गई है। नामं रायहाणी पण्णता। एग जोयणसतसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं जंबुद्दीवपमाणा। इसका आयाम-विष्कम्भ एक लाख योजन है जो जम्बूद्वीप ओवारियलेणं सोलसजोयणसहस्साई आयामविक्खं भेणं, के बराबर है। उपकारिकालयन का आयाम-विष्कम्भ सोलह पन्नासं जोयणसहस्साइं पंच य सत्ताणउए जोयण किंचि- हजार योजन है और उसकी परिधि पचास हजार पाँच सो विसेसूणे परिक्खेवेणं । सित्तानवे योजन में कुछ कम है। मस्वप्पमाणं वेमाणियप्पमाणस्स अद्धं नेयव्वं । यहाँ सारा प्रमाण वैमानिकों के प्रमाण से आधा जानना सभा सुहम्मा उत्तर-पुरस्थिमेणं, जिणघरं, ततो चाहिए । सुधर्मा सभा, उत्तर-पूर्व में जिनघर, उपपात सभा, उववायसभा हरओ अभिसेय अलंकारो जहा ह्रद, अभिषेक और अलंकार यह सारा वर्णन विजय देव विजयस्स । गाहा के वर्णन के समान है। गाथार्थउववाओ संकप्पो अभिसेय विभूसणा प ववसाओ। उपपात, संकल्प, अभिषेक, विभूषणा, व्यवसाय, अर्च निका, अच्चाणिय सुहगमो वि य चमरपरिवार इड्ढत्त ॥ शुभागमन चमर का परिवार और उसकी ऋद्धि सम्पन्नता। (इस गाथा में कहे गये विषयों का विस्तृत वर्णन विजयदेव -भग० स० २, उ०८, सू०१। के समान है।)
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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