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________________ १४ लोक-प्रज्ञप्ति अधोलोक सूत्र १९४-१६५ २. बलिस्स णं वइरोणिदस्स वइरोयणरन्नो १ सोमस्स २. वैरोचनराज वैरोचनेन्द्र बलि के सोम (लोकपाल) महाराज महारण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, की चार अग्रमहिषियाँ कही गई हैं, यथातं जहा १. मितगा, २. सुभद्दा, ३. विज्जुत्ता, ४. असणी। १. मितगा, २. सुभद्रा, ३. विद्युत, ४. अशनी । एवं २ जमस्स, ३ वेसमणस्स, ४ वरुणस्स। इसी प्रकार यम, वरुण और वैश्रमण (लोकपाल की अग्रमहिषियों के नाम) हैं। ३. धरणस्स णं नागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो काल- ३. नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र धरण के कालवाल (लोकपाल) वालस्स महारण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, महाराज की चार अग्रमहिषियाँ कही गई हैं, यथातं जहा १. असोगा, २. विमला, ३. सुप्पमा, ४. सुदंसणा। १. असोका, २. विमला, ३. सुप्रभा, ४. सुदर्शना । एवं जाव संखवालस्स। इसीप्रकार संखवाल पर्यंत (लोकपालों की अग्रमहिषियों के नाम) हैं। ४. भूताणंदस्स णं नागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो ४. नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र भूतानन्द के कालवाल कालवालस्स महारण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्ण- (लोकपाल) महाराज की चार अग्रमहिषियाँ कही गई हैं, यथात्ताओ, तं जहा१. सुणंदा, २. सुभद्दा, ३. सुजाया, ४. सुमणा। १. सुनन्दा, २. सुभद्रा, ३. सुजाया, ४. सुमना । एवं जाव सेलवालस्स। इसी प्रकार सेलवाल पर्यंत (लोकपालों की अग्रमहिषियों के नाम) हैं। जहा धरणस्स एवं सव्वेसि दाहिणिदलोगपालाणं घोष पर्यंत सभी दक्षिणेन्द्रों के लोकपालों की अग्रमजाव घोसस्स। हिषियों के नाम धरण (के लोकपालों की अग्रमहिषियों के नाम) जैसे हैं। जहा भूताणंदस्स एवं सन्वेसि उतरिंदलोगपालाणं महाघोष पर्यंत सभी उत्तरेन्द्रों के लोकपालों की अग्रमजाव महाघोसस्स लोगपालाणं । हिषियों के नाम भूतानन्द (के लोकपालों की अग्रमहिषियों) -ठाणं० ४, उ० १, सु० २७३। के समान हैं। १६५ चमरस्स सुहम्मा सभा चमरेंद्र की सुधर्मा सभाप० कहि णं भंते ! चमरस्स असुररण्णो सभा सुहम्मा १६५ :प्र. हे भगवन् ? असुरराजचमर की सुधर्मा सभा कहाँ पण्णत्ता? पर कही गई है? उ० गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं उ० हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स में तिरछे असंख्यद्वीप समुद्र पार करने पर अरुणवर द्वीप की दीवस्स बाहिरिल्लातो वेइयंताओ अरुणोदयं समुई बाहिर की वेदिका से अरुणोदय समुद्र में बियालीस हजार योजन बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता-एत्थ णं जाने पर असुरराज चमर का तिगिच्छ कूट नामक उत्पात पर्वत चरमस्स असुररण्णो तिगिछि कूडे नामं उप्पायपव्यत्ते कहा गया है। पण्णत्ते। सत्तरसएक्कवीसे जोयणसते उड्ढं उच्चत्तेणं, इस उत्पात पर्वत की ऊंचाई सतरहसो इक्कीस योजन है चत्तारितोसे जोयणसते कोसं च उब्वेहेणं । और उद्वेध (भू-गर्भ की गहराई) चार सौ तीस योजन और एक कोश है। १. सम० १७, सु०७। २. सम० सूत्र १०३/२ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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