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________________ सूत्र १८४-१८५ अधोलोक गणितानुयोग ८६ उ. गोयमा ! चोटुिं असुरकुमार-भवणावाससयसहस्सा उ० गौतम ! असुरकुमारों के चौसठलाख भवनावास कहे पन्नत्ता। गये हैं। प० ते णं भंते ! किमया पन्नत्ता? प्र० भगवन् ! वे किसके बने हुए हैं ? उ. गोयमा ! सव्वरयणामया अच्छा सण्हा जाव पडि- उ० गौतम ! वे सम्पूर्ण रत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, श्लक्षण-चिकने रूवा । तत्थ णं बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति, हैं, यावत् मनोहर हैं। उनमें अनेक जीव उत्पन्न होते हैं और मरते विउक्कमंति, चयंति, उववज्जति, सासया गं ते भवणा हैं । अनेक पुद्गल आते हैं और जाते हैं। अतः वे भवन द्रव्यों की दवट्टयाए, वण्णपज्जवेहि जाव फासपज्जवेहि अपेक्षा से शाश्वत हैं। वर्ण पर्यवों (की अपेक्षा) से यावत स्पर्श असासया । पर्यवों (की अपेक्षा) से अशाश्वत हैं । एवं जाव थणियकुमारावासा । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारावास हैं । -भग० स० १६, उ०७, सु० १, २, ३ । भवणवासीणं इंदा१८५ : १. दो असुरकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा (१) चमरे चेव, (२) बलि चेव । २. दो नागकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा (१) धरणे चेव, (२) भूयाणंदे चेव । ३. दो सुवण्णकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा (१) वेणुदेवे चेव, (२) वेणुदाली चेव । ४. दो विज्जुकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा (१) हरिच्चेव, (२) हरिस्सहे चेव । ५. दो अग्गिकुमारिंदा पण्णता, तं जहा (१) अग्गिसिहे चेव, (२) अग्गिमाणवे चेव । ६. दो दीवकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा (१) पुण्णे चेव, (२) विसिट्ठ चेव । ७. दो उदहिकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा (१) जलकते चेव, (२) जलप्पमे चेव । ८. दो दिसाकुमारिदा पण्णता, तं जहा (१) अमियगई चेव, (२) अमियवाहणे चेव । ६. दो वायुकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा (१) वेलंबे चेव, (२) पभंजणे चेव, १०. दो थणियकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा(१) घोसे चेव,' (२) महाघोसे चेव । -ठाणं० २, उ०३, सु०६४ । भवनवासियों के इन्द्र१८५:१. असुरकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा (१) चमर और (२) बलि । २. नागकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा (१) धरण और (२) भूतानन्द । ३. सुवर्णकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा-- (१) वेणुदेव और (२) वेणुदाली । ४. विद्युत्कुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा (१) हरी और (२) हरिस्सह । ५. अग्निकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा (१) अग्निशिख और (२) अग्निमाणव । ६. द्वीपकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा (१) पूर्ण और (२) वासिष्ठ ।। ७. उदधिकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा (१) जलकांत और (२) जलप्रभ। ८. दिशाकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा (१) अमितगति और (२) अमितवाहन । ६. वायुकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा (१) वेलंब और (२) प्रभंजन । १०. स्तनितकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं, यथा (१) घोष और (२) महाघोष । १. सम० ३२, सु० २ । २. दाहिणिल्ला इंदा : गाहा १. चमर, २. धरणे, ३. तह वेणुदेव, ४. हरिकंत, ५. अग्गिसीहे य । ६. पुणे, ७. जलकते य, ८. अमिय, ६. विलंबे य, १०. घोसे य ।। उत्तरिल्ला इंदा : गाहा १. बलि, २. भूयाणंदे, ३. वेणुदालि, ४. हरिस्सहे, ५. अग्गिमाणव, ६. वसि? । ७. जलप्पभे, ८. अमियवाहण, ६. पभंजणे य, १०. महाघोसे ।। -पण्ण० पद० २, सु० १८७ । wwwwwwwwwwwwwwimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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