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लोक-प्रज्ञप्ति
अधोलोक
सूत्र १८१-१८४
१८१:५० केवतिया णं भंते ! नागकुमारावाससयसहस्सा १८१: प्र० भगवन् ! नागकुमारों के कितने लाख आवास कहे पन्नत्ता?
गये हैं? उ० (गोयमा! चुलसीइनागकुमारावाससयसहस्सा उ० (गौतम ! नागकुमारों के चौरासीलाख आवास
पण्णत्ता ।) एवं जाव णियकुमारा। कहे गये हैं।) इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक हैं। नवरं-जत्थ जत्तिया भवणा।
विशेष--जहाँ जितने भवन हैं (उतने कहें)। -भग० स० १३, उ०२, सु०६ ।
१८२: गाथार्थ
१. असुरकुमारों के चौसठलाख भवन हैं। २. नागकुमारों के चौरासीलाख भवन हैं । ३. सुपर्णकुमारों के बहत्तरलाख भवन हैं। ४. वायुकुमारों के छिन्नवेलाख भवन हैं।
५. द्वीपकुमार, ६. दिशाकुमार, ७. उदधिकुमार, ८. विद्युकुमार, ६. स्तनितकुमार और १०. अग्निकुमार इन ६ युगलों (दक्षिण उत्तर) के (प्रत्येक युगल के) छिहत्तरलाख भवन हैं ।
१८२: गाहाओ
१ चोटुिं असुराणं,' २ चुलसीति चेव होंति नागाणं ।' ३ बावरि सुवण्णे, ४ वाउकुमाराण छण्ण उ य॥ ५ दीव, ६ दिसा, ७ उदहोणं, ८ विज्जुकुमारिद, ६ थणिय, १० मग्गीणं । छह पि जुवलयाणं, छावत्तरिमो सयसहस्सा।"
-पण्ण० पद० २, सु० १८७ । दाहिणिल्ल उत्तरिल्ल-भवणसंखा - १८३ : गाहाओ
१ चोत्तीसा, २ चोयाला, ३ अट्टतीसं च सयसइस्साई। ४ पण्णा , ५ चत्तालीसा, ६-१० दाहिणओ होंति भवणाई॥
दक्षिण दिशा और उत्तरदिशा के भवनों की संख्या१८३ : गाथार्थ
१. असुरेन्द्र चमर के भवन चौतीसलाख हैं। २. नागकुमारेन्द्र धरण के भवन चुम्मालीसलाख हैं। ३. सुपर्णकुमारेन्द्र वेणुदेव के भवन अडतीसलाख हैं। ४. विद्युत्कुमारेन्द्र हरि (कांत) के भवन पचासलाख हैं। शेष छह इन्द्रों के (प्रत्येक के) भवन चालीस चालीसलाख
१तीसा, २ चत्तालीसा, ३ चोत्तीसं चेव सयसहस्साई। ४ छायाला, ५ छत्तीसा, ६-१० उत्तरओ होंति भवणाई।
-पण्ण० पद० २, सु. १८७।
१. असुरेन्द्र बली के भवन तीसलाख हैं। २. नागकुमारेन्द्र भूतानन्द के भवन चालीसलाख हैं। ३. सुपर्णकुमारेन्द्र वेणुदाली के भवन चौतीसलाख हैं। ४. विद्युत्कुमारेन्द्र हरिस्सह के भवन छियालीसलाख हैं।
शेष छह इन्द्रों के (प्रत्येक के) भवन छत्तीस, छत्तीसलाख हैं।"
भवणावासाणं रयणामयत्तं सासयासासयत्तं य
रत्नमय भवनावास शाश्वत और अशाश्वत१८४:५० केवतिया णं भंते ! असुर कुमार मवणावाससयसहस्सा १८४ : प्र० भगवन् ! असुरकुमारों के कितने लाख भवनावास पन्नत्ता?
कहे गये हैं ?
सम० ६४, सु०२।। २. क--- सम० ८४, सु०११।
ख-भग० स० १३, उ० २, सु०६ । ३. सम०७२, सु०१। ४. सम०६६, सु० २।
५. क-सम०७६, सु०१-२ ।
ख--भग० स० १, उ०५, सु०३।
सम० ३४, सु०५। ७. सम०४४, सू०३ । ८. सम०४०, सु०४। ६. सम० ४६, सु० ३।