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________________ ८६ लोक- प्रज्ञप्ति wwwwww अधोलोक सुवण्णकुमारिदा १७४ : वेणुदेव वेणुदाली यत्थ दुवे सुवण्णकुमारिदा सुवण्णकुमाररायाणी' परिवसति महिडीया जाय विहरति । - पण्ण० पद० २, सु० १८४ [२] । दाहिणिल्ल सुवण्णकुमारठाणाई १७५० [१] [हि ] से दाहपिल्लाणं सुवणकुमारा पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? १. [२] कहि णं भंते ! दाहिणिल्ला सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति ? उ० [१] गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणं इमीसे रयणप्पमाए पुढवीए असीउत्तर जोयणसय सहस्स बाहल्लाए उबर एवं जोयणसहस्सं ओगाहिता, हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं किण महत्तरे यणसह एत्य णं दाहिणिल्लाणं सुवणकुमाराणं अतो भवणावास सतसहस्सा भवतीति मक्खातं । ते णं भवणा बाहि वट्टा जाव पडिरूवा - एत्थ णं दाहिणा सुकुमाराणं पञ्जत्ता पजलाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । [२] तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे । एत्थ णं बहुवे सुवणकुमाराणं देवा परिवर्तति । - पण० पद०२, सु० १८५ [१] । दाहिणिलवणकुमारिदो वेणुदेवो१७६ : वेणुदेवे यत्थ सुर्वाण्णदे सुवण्णकुमारराया परि वसई सेस जहा नागकुमाराणं । - पण्ण० पद० २, सु० १८५ [२ [ । उत्तरिल्लवण्णकुमारठाणाई १७७ : ० [१] कहि णं भंते ! उत्तरिल्लाणं सुवण्णकुमाराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? [२] कहि णं भंते ! उत्तरिल्ला सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति ? ठाणं० ० २, उ० ३, सु० ६४ । सूत्र १७४-१७७ सुपर्णकुमार देवों के इन्द्र १७४ : सुपर्णकुमारों के राजा सुपर्णकुमारेन्द्र वेणुदेव और वेणदाली ये दो वहाँ रहते हैं। वे महर्षिक हैं यावत् वे ( क्रीड़ारत) रहते हैं । दाक्षिणात्य सुपर्णकुमारों के स्थान १७५ प्र० [१] हे भगवन् ! दक्षिण दिशावासी पर्याप्त अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवों के स्थान कहाँ पर कहे गये हैं ? [२] हे भगवन् ! दक्षिण दिशावासी सुपर्णकुमार देव कहाँ रहते हैं ? उ० [२] हे गौतम! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण में एक लाख अस्सीहजार योजन बाहल्य वाली इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर से एक हजार योजन अवगाहन करने पर और नीचे से एक हजार योजन छोड़ने पर एक लाख अठत्तर हजार योजन प्रमाण मध्य भाग में दक्षिण दिशाबासी सुपर्णकुमारों के अडतीस साथ भवना वास है ऐसा कहा गया है। बाहर से वृत्ताकार हैं यावत् प्रतिरूप हैं । यहाँ दक्षिण दिशावासी पर्याप्त तथा अपर्याप्त सुपर्णकुमारों के स्थान कहे गये हैं । [२] लोक के असंख्यातवें भाग में ( इनकी उत्पत्ति समुद्घात तथा इनके अपने स्थान) ये तीनों हैं । यहाँ पर अनेक सुपर्णकुमार देव रहते हैं । दाक्षिणात्य सुपर्णकुमारेन्द्र वेणुदेव १७६ : यहाँ पर सुपर्णकुमारों के राजा सुपर्णकुमारेन्द्र वेणुदेव रहते हैं । शेष सारा वर्णन नागकुमारों के समान हैं । उत्तर दिशा के सुपर्णकुमारों के स्थान - १७७ प्र० [१] भगवन् ! उत्तर दिशावासी पर्याप्त और अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवों के स्थान कहाँ पर कहे गये हैं ? [२] भगवन् ! उत्तर दिशायासी सुपर्णकुमार देव कहाँ रहते हैं ?
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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