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________________ सूत्र १७१-१७३ अधोलोक गणितानुयोग ८५ [२] कहि णं भंते ! उत्तरिल्ला गागकुमारा देवा [२] हे भगवन् ! उत्तर दिशावासी नागकुमार देव कहाँ परिवसंति? रहते हैं ? उ० [१] गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मदरस्स पब्वयस्स उ० [१] हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरु पर्वत से उत्तरेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असोउत्तर उत्तर में एक लाख अस्सीहजार योजन मोटाई वाली इस रत्नप्रभा जोयणसतसहस्स बाहल्लाए उरि एगं जोयण- पृथ्वी के ऊपर से एक हजार योजन अवगाहन करने पर और नीचे सहस्सं ओगाहेत्ता, हेढा वेगं जोयणसहस्सं से एक हजार योजन छोड़ने पर एक लाख अठत्तर हजार योजन वज्जेत्ता, मझे अट्ठहत्तरे जोयणसतसहस्से- प्रमाण मध्य भाग में उत्तर दिशावासी नागकुमार देवों के चालीस एत्थ णं उत्तरिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं लाख भवनावास है-ऐसा कहा गया है। चत्तालीसं भवणावाससतसहस्सा भवंतिती मक्खातं । ते णं भवणा बाहि वट्टा-सेसं जहा दाहिणिल्लाणं ये भवन बाहर से वृत्ताकार हैं अन्दर से चौकोर हैं-शेष जाव विहरति । वर्णन दक्षिण दिशावासी (नागकुमारों) के समान हैं यावत् –पण्ण पद० २, सु० १८३-१। रहते हैं। उत्तरिल्लणागकुमारिदो भूयाणंदो उत्तर दिशा के नागकुमारेन्द्र भूतानन्द१७२ : भूयाणंदे यऽत्य णागकुमारिदे णागकुमारराया परिवसति १७२ : यहाँ नागकुमारों के राजा नागकुमारेन्द्र भूतानन्द रहते हैं महिड्ढोए जाव दिव्वाए लेसाए दसदिसाओ उज्जोवेमाणे वे महधिक हैं यावत् दिव्यलेश्या से दसों दिशाओं को उद्योतित पभासेमाणे। एवं प्रकाशित करते हुए रहते हैं । ते णं तत्थ चत्तालीसं भवणावाससयसहस्साणं' आहेवच्चं वहाँ चालीस लाख भवनावासों का आधिपत्य एवं पुरोगामित्व जाव विहरइ।' करते हुए यावत् रहते हैं। -पण्ण० पद० २, सु० १८३ [२] । करने पर आप्रभा पृथ्वी के अपलोहजार योजन बाद सुवण्णकुमारठाणाइं सुपर्णकुमारों के स्थान१७३ :प० [१] कहि णं मंते ! सुवण्णकुमाराणं देवाणं पज्जत्ता- १७३: प्र० [१] हे भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त सुपर्णकुमार पज्जत्ताणं ठाणा पण्णता? देवों के स्थान कहाँ पर कहे गये हैं ? [२] कहि णं भंते ! सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति? [२] हे भगवन् ! सुपर्णकुमार देव कहाँ रहते हैं ? उ० [१] गोयमा! हमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असी उत्तर उ० [१] हे गौतम ! एक लाख अस्सीहजार योजन बाहल्य जोयणसयसहस्सबाहल्लाए उरि एगं जोयण- (मोटाई) वाली इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर से एक हजार योजन सहस्सं ओगाहिता, हेवा वेगं जोयणसहस्सं अवगाहन करने पर और नीचे से एक हजार योजन छोडने पर वज्जिऊण, मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से- एक लाख अठत्तर हजार योजन प्रमाण मध्य भाग में सूवर्णकुमार एत्थ णं सुवण्णकुमाराणं देवाणं बावरिं भवणा- देवों के बहत्तर लाख भवनावास हैं-ऐसा कहा गया है। वाससतसहस्सा भवंतीतिमक्खातं । ते णं भवणा बाहि वट्टा जाव पडिरूवा-तत्थ णं ये भवन बाहर से वृत्ताकार हैं यावत प्रतिरूप हैं। इनमें सवण्णकुमाराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पर्याप्त तथा अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवों के स्थान कहे गये हैं। पण्णत्ता। २] तिस वि लोगस्स असंखेज्जइभागे । तत्थ णं [२] लोक के असंख्यात वें भाग में (इनकी उत्पत्ति सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति, महिडीया समुद्घात और उनके स्वस्थान) ये तीनों हैं। वहाँ सुपर्णसेसं जहा ओहियाणं जाव विहरंति। कुमार देव रहते हैं। वे महधिक हैं शेष सामान्य वर्णन -पण्ण० पद० २, सु० १८४ [१] । जैसा है यावत् (क्रीड़ारत) रहते हैं। १. सम०४०, सू०४। २. जीवा०प०३, उ०२, सु. १२० । ३. सु०७२, सू०१।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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