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________________ ८४ लोक-प्रज्ञप्ति अधोलोक सूत्र १६६-१७१ राण १६६ : प्र [२] कपिज्जत्ताणं ठाणा प दाहिणिल्ल-णागकुमारठाणाई दाक्षिणात्य नागकुमारों के स्थान१६६ : प० [१] कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं णागकुमाराणं १६६ : प्र० [१] हे भगवन् ! दक्षिण दिशा में रहने वाले पर्याप्त देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णता? और अपर्याप्त नागकुमार देवों के स्थान कहाँ पर कहे गये हैं ? [२] कहि णं भंते ! दाहिणिल्ला णागकुमारा देवा [२] हे भगवन् ! दक्षिण दिशा में रहने वाले नागकुमार देव परिवसंति? ___ कहाँ रहते हैं ? उ० [१] गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स उ० [१] हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरु पर्वत से दाहिणणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असो. दक्षिण में एक लाख अस्तीहजार योजन मोटाई वाली इस रत्नउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए, उरि एग प्रभा पथ्वी के ऊपर से एक हजार योजन अवगाहन करने पर और जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता, हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं नीचे एक हजार योजन छोड़ने पर एक लाख अठत्तर हजार योजन वज्जेत्ता, मझे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से- प्रमाण मध्य भाग में दक्षिण दिशावासी नागकुमार देवों के चुम्माएत्थ णं दाहिणिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं लीस लाख भवनावास हैं-ऐसा कहा गया है। चोयालीसं भवणावाससयसहस्सा भवंतोति मक्खातं। ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा जाव पांड- वै भवन बाहर से वृत्ताकार हैं अन्दर से चतुष्कोण हैं यावत् रूवा-एत्थ णं दाहिणिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं प्रतिरूप हैं । यहाँ दक्षिण दिशाबासी पर्याप्त तथा अपर्याप्त नागपज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। कुमार देवों के स्थान कहे गये हैं। [२] तिसू वि लोगस्स असंखेज्जइभागे। एत्थ णं [२] लोक के असंख्यातवें भाग में (नागकुमारों की बहवे दाहिणिल्ला नागकुमारा देवा परिवसंति। उत्पत्ति, समुद्घात तथा उनके अपने स्थान) ये तीनों हैं। महिड्ढीया जाव विहरंति। यहाँ दक्षिण दिशावासी नागकुमार देव रहते हैं। ये महधिक हैं, -पण्ण० पद० २, सु० १८२ [१] । यावत् (दिव्य भोग भोगते हुए) रहते हैं । दाहिणिल्लणागकुमारिदो धरणो दाक्षिणात्य नागकुमारेन्द्र धरण१७० : धरणे यऽत्थ णागकुमारिदे णागकुमारराया परिवसंति १७० : यहाँ नागकुमार राजा नागकुमारेन्द्र धरण रहते हैं। वे महिडढीए जाव बिग्वाए लेसाए दसदिसाओ उज्जोवेमाणे महधिक हैं यावत् दिव्यलेश्या से दसों दिशाओं को उद्योतित एवं पमासेमाणे। प्रकाशित करते हुए रहते हैं। से णं तत्थ चोयालीसाए भवणावाससय सहस्साणं वह चुम्मालीस लाख भवनावासों का, छह हजार सामानिक छण्डं सामाणियसाहस्सोणं,' तावत्तीसाए ताव- देवों का, तेतीस त्रायस्त्रिश देवों का, चार लोकपालों का, सपरिवार तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं,' पंचण्हं अग्गमहिसीणं पांच अग्रमहिषियों का, तीन परिषदाओं का, सात सेनाओं का, सात सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं सेनापतियों का, चौबीसहजार आत्मरक्षक देवों का और अन्य अनेक अणियाधिवतीणं, चउव्वीसाए आयरक्खदेवसाहस्सोणं दक्षिण दिशावासी नागकुमार देव-देवियों का आधिपत्य एवं पुरोअण्णेसि च बहणं दाहिणील्लाणं नागकुमाराणं देवाण य वर्तित्व करते हुए रहता है। देवीण य आहेबच्चं पोरेवच्चं कुब्वमाणे विहरति । -पण्ण पद० २, सु० १८२-२ । उत्तरिल्ल-णागकुमारठाणाइं उत्तरदिशा के नागकुमारों के स्थान१७१:५० [१] कहि णं भंते ! उत्तरिल्लाणं णागकुमाराणं १७१:प्र० [१] हे भगवन् ! उत्तरदिशावासी पर्याप्त और देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता? अपर्याप्त नागकुमार देवों के स्थान कहाँ पर कहे गये हैं ? सम० ४४, सु० ३। २. ठाणं०६, सु०५०६ । ३. ठाणं ४, उ० १, सु० ५६ । ४. ठाणं० ६, सु० ५०८ में धरण की छह अग्रमहिषियाँ कही गई हैं। ५. ठाणं० ७, सु० ५८२ । ६. जीवा०प०३, उ०२, सु०१२० ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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