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________________ सूत्र १६६-१६८ अधोलोक गणितानुयोग ८३ उत्तरिल्ल-असुरिंदो बली - उत्तरदिशा का असुरेन्द्र बली१६६ : बली यऽत्थ वइरोणिदे वइरोयणराया परिवसति । काले १६६ : यहाँ पर वैरोचन राजा वैरोचनेन्द्र बली रहता है । बली महानीलसरिसे जाव दिव्वाए लेसाए दसदिसाओ उज्जो- (वैरोचनेन्द्र) के शरीर का वर्ण अतिनील यावत् दिव्यलेश्या से वेमाणे पभासेमाणे। दस दिशाओं को उद्योतित तथा प्रकाशित करता है। से णं तत्थ तीसाए भवणावाससय-सहस्साणं, सट्ठीणं वह वहाँ तीसलाख भवनावासों का, साठहजार सामानिक देवों सामाणियसाहस्सोण,' तावत्तीसाए तावत्तीसगाणं, का, तेंतीस त्रायस्त्रिशकों का, चार लोकपालों का, पाँच सपरिवार चउण्ह लोगपालाणं, पंचण्हं अग्गमहिसोणं सपरिवाराणं, अग्रमहिषियों का, तीन परिषदाओं का, सात सेनाओं का, सात सेनातिण्ह परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाधिव- पतियों का, साठहजार के चोगुणे (दो लाख चालीसहजार) आत्मतीण, चउण्हं य सट्ठीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं,' अण्णसिं रक्षक देवों और अन्य अनेक उत्तर दिशावासी असुरकुमार देव-देवियों च बहणं उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण य का आधिपत्य या प्रमुखता करता हुआ रहता है। आहेवच्चं पोरेवच्चं कुब्वमाणे विहरति ।' —पण्ण पद० २, सु० १८०-२। णागकुमारठाणाई-- नागकुमारों के स्थान१६७:५० [१] कहि णं भंते ! णागकुमाराणं देवाणं पज्जत्ता. १६७ : प्र० [१] हे भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त नागकुमार ऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? | देवों के स्थान कहाँ पर कहे गये हैं ? [२] कहि णं भंते ! णागकुमारा देवा परिवसंति ? [२] हे भगवन् ! नागकुमार देव कहाँ रहते हैं ? उ० [१] गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असी- उ० [१] हे गौतम ! एक लाख अस्सीहजार योजन बाहल्य उत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उरि एग (मोटाई) वाली इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर से एक हजार योजन जोयणसहस्सं ओगाहित्ता, हेट्ठा वेगं जोयण- अन्दर जाने पर और नीचे से एक हजार योजन छोड़ने पर एक सहस्सं वज्जिऊण, मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसय- लाख अठत्तर हजार योजन प्रमाण मध्यभाग में पर्याप्त तथा सहस्सं-एत्थ णं णागकुमाराणं देवाणं पज्जत्ता- अपर्याप्त नागकुमार देवों के चालीस लखा भवनावास हैं-ऐसा । ऽपज्जताणं चुलसीइ भवणावाससयसहस्सा कहा गया है। हवंतीतिमक्खातं ।' ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो चउरसा जाव पडिरूवा। वे भवन बाहर से वृत्ताकार (गोल) हैं, अन्दर से चोकोर है तत्थ णं णागकुमाराणं देवाणं पज्जात्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा यावत प्रतिरूप हैं। उनमें पर्याप्त तथा अपर्याप्त नागकुमार देवों पण्णत्ता। के स्थान कहे गये हैं। [२] तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे। तत्थ ण लोक के असंख्यातवें भाग में (नागकुमारों की उत्पत्ति, समुद् बहवे णागकुमारा देवा परिवसं ति। महिड्ढीया घात और उनके अपने स्थान) ये तीनों हैं-उनमें अनेक नागकुमार महाजुतीया-सेसं जहा ओहियाणं जाव देव रहते हैं । वे महाऋद्धि वाले हैं, महाद्युतिवाले हैं शेष सामान्य विहरंति। वर्णन के समान है यावत् (दिव्य भोग भोगते हुए) रहते हैं। —पण्ण० पद० २, उ० १, सु० १८१-१ । णागकुमारिदा नागकुमारेन्द्र१६८ : धरण भूयाणंदा एत्थ दुवे णागकुमारिदा णागकुमार- १६८ : यहाँ पर नागकुमारों के राजा, नागकुमारेन्द्र धरण रायाणो परिवसंति महिड्डिया सेसं जहा ओहियाणं और भूतानन्द ये दो रहते हैं। वे महधिक हैं शेष सारा जाव विहरंति। वर्णन सामान्य वर्णन के समान है यावत (दिव्य भोग भोगते -पण्ण० पद० २, उ० १, सु० १८१-२ । हुए) रहते हैं। १. सम०६०, सु०४। २. ठाणं०७, सु०५८२। ३. भग० स०३, उ०६, सु० १४ । ४. जीवा०प० ३, उ० १, सु० ११६ । ५. सम० ८४, सु० ११ । ६. जीवा०प०३, उ०२, सु० १२० ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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