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________________ ८० लोक-प्रज्ञप्ति अधालोक सूत्र १६१-१६२ दसमुद्दामंडितग्गहत्थे, अंगुलियाँ दस मुद्रिकाओं से मण्डित हैं । चूडामणिचिचिधगए, (मुकुट) विचित्र चूडामणि के चिह्न से युक्त है। सुरुवे महिड्ढीए महज्जुइए महायसे महाबले महाणु मागे यह चमरेन्द्र सुरूप है महाऋद्धि वाला है, महाद्युति वाला महासोक्खे, है, महाबल वाला है, महायश वाला है, महानुभाव है, महासुखी है। हारविराइयवच्छे, चमरेन्द्र का वक्षस्थल हार से सुशोभित है । कडय-तुडिय-थंभियभुजे, भुजायें कडे और भुजबन्ध से सुदृढ़ हैं , अंगद-कुंडल-मट्ट गंडतल- कपीढधारी कानों में अंगद, कुण्डल और कर्णपीठ धारण किये हुए है। विचित्तहत्याभरणे, विचित्तमालामउली, हाथों में विचित्र आभरण है, विचित्र मालाओं से सुसज्जित मुकुट मस्तक पर है। कल्लाणगपवरवत्थपरिहिए, कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणे, ___ कल्याणकारी श्रेष्ठ वस्त्र तथा मालाएँ धारण किये हुए है। भासुरबोंदी, पलंबवणमालधरे, बदन पर विलेपन लगाये हुए है, दिव्य दैदिप्यमान देह पर लम्बी लटकती हुई वन पुष्पों की मालायें धारण किये हुए है। दिवेणं वण्णेणं जाव दिव्वाए लेसाए दसदिसाओ दिव्य वर्ण यावत दिव्यलेश्यासे दस दिशाओं को उद्योतित उज्जोवेमाणे पभासेमाणे । तथा प्रकाशित करता है। से णं तत्थ चोत्तीसाए भवणावाससयसहस्साणं,' चउसट्ठीए यह चमरेन्द्र चौतीस लाख भवनावासों का, चोसठ हजार सामाणियसाहस्सीणं', तावत्तोसाए तावत्तीसाणं, चउण्हं सामानिक देवों का, तेतीस त्रायस्त्रिश देवों का, चार लोकपालों का लोगपालाणं, पचण्हं अग्गमहिसीणं,' सपरिवाराण, तिण्हं सपरिवार पाँच अग्रमहिषियों का, तीन परिषदों का, सात सेनाओं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिबईणं, का, सात सेनापतियों का, चोसठ हजार के चोगुणे अर्थात् दो लाख चउण्हं य चउसट्ठीणं आयरक्खदेवसाहस्सोणं, अण्णेसि च छप्पन हजार आत्मरक्षक देवों का और दक्षिण दिशा के अन्य अनेक बहणं दाहिणिल्लाणं देवाण य देवोण य आहेबच्चं पोरे- देव-देवियों का अधिपति हैं अग्रसेर है यावत् दिव्य भोगों को वच्चं जाव दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ। भोगता हुआ रहता है। –पण्ण पद० २, सु० १७६ (२) । असुरकुमाराणं अहोगइविसयपरूवणा-- असुरकुमारों की नीचे जानेकी शक्ति का प्ररूपण१६२ : प० अस्थि णं भंते ! असुरकुमाराणं देवाणं अहेगतिविसए १६२ : प्र० हे भगवन् ! क्या असुरकुमार देवों की नीचे जाने की पण्णत्ते? शक्ति कही गई है? उ० हंता अत्थि । उ० हाँ (कही गयी) है। म० वि० पण्ण० प० २, सु० १७६ [२] में "चमरे ऽत्य असुरकुमारिदे असुरकुमारराया परिवसति काले महानीलसरिसे जाव (सु० १७७ [२] पभासेमाणे।" ऐसी संक्षिप्त वाचनाकार की सूचना है, किन्तु सूत्र १७७ में [१] या [२] विभाग नहीं है और उसमें 'काले "से हारविराइयवच्छे" तक का पाठ भी नहीं है। उक्तप्रति के सूत्र १७८ [२] में 'काला' से 'पभासेमाणा" पर्यन्त पाठ मिलता है, किन्तु उसमें 'चमर' और 'बलि' का एक साथ वर्णन है। इसलिए सभी वाक्य बहुवचनांत है, बहुवचनांत वाक्यों से एकवचनांत वाक्यों की कल्पना कर लेना कुछ कठिन भी हैं, तथा इस सूत्र की अनुवृत्ति सूत्र १८० [२], १८२ [२], १८३ [२] आदि में लेने की सूचना संक्षिप्त वाचनाकार ने दी है अतः यहाँ एकवचनांत वाक्यों वाला विस्तृत पाठ दिया है। सम० ३४, सु० ५। ६. ठाणं० ३, उ० २, सु० १५४ । सम०६४, सु० ३. ७. क-ठाणं० ५, उ० १, सु० ४०४ में नृत्यानीक और गंधर्वानीक नहीं गिने हैं। ४. ठाणं० ४, उ० १, सु० २५६ । ख-ठाणं ७, सु०५८२ । ५. ठाणं० ५, उ०१,०४०३ । ८. जीवा० पडि०३, उ०२, १० ११७ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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