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________________ ७८ लोक- प्रज्ञप्ति [२] उपवाए लोया समुन्याएवं लोपस जाने सद्गुणं लोयास असं ग्भागे बह असुरकुमारा देवा परिवसंति । काला लोहिप-विया धबलपुष्पदंता अलिपकेसा वामेयकुंडलधरा अद्दचंदणाणुलित्तगत्ता सोफियालाई असकिलिाई सहमाई यत्वाई पवरपरिहिया, वयं च पढमं समइक्कता बिइयं च असं पत्ता, भद्दे जोवणे वट्टमाणा, मंगतुति-पवरभूज णिम्मलमणि-रणमंडितमुया दसमुहा मंडियाहत्या पूडामणिविचिया गुरुवा (जाव) दिव्या भोग भोगाई जमाना विहति । - पण्ण० पद०२, सु० १७८ (१) । अधोलोक - काला महागीतसरिसा मील गुलिय-गयल अवस कुसुमप्यगासा वियसिय सयवत्त निम्मल इसीसित रत- तंबणयणा गरुला उज्जु - तुंगणासा ओय बिसिलवाल विफल सतिभाहरोहा पंडुरसति सगल-विमल निम्मलदहिय-गोबर र मुणालिया-धवल दंतसेढी हुयवहणिर्द्धतधोयत सतवणिज्जरसतल शालु जीहा कणि-रूप-रमणि द्धि-केसा वामेयकुंडलधरा (जाव ) दिव्वाइं भोगभोगाई मुंजमाणा विहरति । - · - - असुरकुमाराणां इंदा असुरकुमारों के इंद्र१५६ : अमर बलियो यस्य दुवे असुरकुमारिदा असुरकुमार १५६ यहीं पर चमरेन्द्र और बलीन्द्र ये दो असुरकुमारेन्द्र रायाणो परिवर्तति । असुरकुमार राजा रहते हैं । : (इन दोनों इन्द्रों के शरीरों का वर्ण) कृष्ण अतिनील नीलगुटिका, वनमहिष श्रृंग तथा अलसी के पुष्पों जैसा श्याम है, इनके नेत्र विकसित कमल सदृश श्वेत तथा स्वल्परक्त ताम्रवर्ण के हैं, इनकी नासिका जैसी लम्बी सीधी एवं उन्नत है, इनके अधरोष्ठ पिसी हुई नाशिता तथा विवफल जैसे हैं, इनकी दन्तपंक्ति निष्कलंक श्वेत चन्द्र खण्ड, निर्मल घन-दही, शंख-गोक्षीर कुंद (मोगरा) पुण, उदक कम तथा मृगालिका (कमल) जैसी श्वेत है, इनके हाथ-पैर के तलवे तालु और जीभ अग्नि में तपाये हुए शुद्ध स्वर्ण जैसे रक्त है, केश अंजन मेघ और रुचक रत्न जैसे रमणीय एवं स्निग्ध हैं, बायें (कान पर एक कुण्डल है यावत् शिम्म भोग भोगते हुए रहते हैं। - - पण्ण० पद० २, सु०१७८ (२) । दाहिणिल्ल-असुरकुमारठाणाई - १६० प० [१] कहिणं ते! दाहिणिला असुरकुमाराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? [२] कहि णं भंते! दाहिणिल्ला असुरकुमारा देवा परिवर्तति ? उ० [१] गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तर सूत्र १५८ १६० [२] लोक के अस्थातवें भाग में वे ( अमरकुमार ) उत्पन्न होते हैं । सोड के असंख्य भाग में ये (असुरकुमार ) समुदयात करते हैं । लोक के संस्थातवें भाग में इन (अमुरकुमार देवों) के अपने स्थान हैं। वहाँ अनेक असुरकुमार देव रहते हैं । ये (असुरकुमार देव) श्याम वर्ग वाले है, इनके ओष्ठ विफल जैसे रक्त हैं, दन्त श्वेत पुष्प जैसे हैं, केश श्यामवर्ग के हैं, बायें कान पर एक कुण्डल है, शरीर पर चन्दन का विलेपन है । दे (कुमार देव) निमित्र पुण्य जैसे अल्परक्त वर्ण के चमकते हुए सुखद सूक्ष्म श्रेष्ठ वस्त्र पहने हुए हैं । इन (असुरकुमार देवों की प्रथमवय (कुमारावस्था) बीत गई है और युवा वस्था पूर्ण प्राप्त नहीं हुई है किन्तु सुखद युवावस्था प्रारम्भ हुई है। ये देव निर्मल मणिरत्नों से मंडित तलभंग तथा पुटित (भुज बन्ध) श्रेष्ठ भूषण भुजा पर धारण किये हुए है, इनकी अंगुलियों दसमुद्रिकाओं से सुशोभित हैं । इनके (मुकुट) विचित्र चूडामणि के चिह्न युक्त हैं सुरूप हैं यावत् दिव्य भोग भोगते हुए रहते हैं । - दाक्षिणात्य असुरकुमारों के स्थान १६० प्र० [१] हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के पर्याप्त और अप र्याप्त असुरकुमार देवों के स्थान कहाँ पर कहे गये हैं? [२] हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के असुरकुमार देव कहाँ रहते हैं ? उ० [१] हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के ( मध्यस्थित ) मेरु पर्वत की दक्षिण दिशा में एक लाख अस्सी हजार योजन की
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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