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लोक-प्रज्ञप्ति
अधोलोक
सूत्र १५६
मालधारा।
६. सीह,
६. द्वीपकुमार के मुकुट में-सिंह का चिह्न है। ७. हयवर,
७. उदधिकुमार के मुकुट में-श्रेष्ठ अश्व का चिह्न है। ८. गयअंक
८. दिक्कुमार के मुकुट में-श्रेष्ठ गज का चिह्न है। ६. मगर,
६. पवनकुमार के मुकुट में—मगर का चिह्न है। १०. बद्धमाण-निज्जुत्त-चिचिघगता।
१०. स्तनितकुमार के मुकुट में-वर्धमान (शराव संपुट) का
चिह्न है। सुरुवा महिडढीया मइज्जुईया महायसा महब्बला महा- (ये भवनवासी देव) सुरूप हैं । महाऋद्धि वाले हैं । महाद्युति णुभागा महासोक्खा।
वाले हैं, महायश वाले हैं, महाबल वाले हैं, महानुभाव (आदरणीय)
हैं, महासुखी हैं। हारविराइयवच्छा कडग-तुडिय-थंभियभुया अंगद कुंडल- (इन देवों के वक्षस्थल) हार से सुशोभित हैं, भुजाएं कडे और मट्रगंडतल कण्ण-पीढधारी,विचित्त-हत्यामरणा विचित्त- त्रुटित (भुजबन्ध) से स्तम्भित (सहित) हैं, कानों में अंगद कुंडल माला-मउलीमउडा।
और कपोल से स्पृष्ट कर्णपीठ धारण किये हुए हैं, हाथों में विचित्र प्रकार के आभरण हैं, मस्तक पर विचित्र मालाओं से सुसज्जित
मुकुट हैं। कल्लाणग-पवर-वत्थ परिहिया, कल्लाणग-पवर-मल्लाणु ये देव कल्याणकारी श्रेष्ठ वस्त्र तथा मालाएँ धारण किये लेवणधरा भासुर बोंदी पलंबवणमालधरा । हुए हैं, (वदन पर) विलेपन लगाये हुए हैं, दिव्य दैदिप्यमान देह
पर लम्बी लटकती हुई वन पुष्प मालाएँ धारण किये हुए हैं। दिवेणं वण्णेणं, दिवेणं गंधेणं, दिव्वेणं फासेणं, ये देव दिव्यवर्ण, दिव्यगन्ध, दिव्यस्पर्श, दिव्यसंघयण तथा दिव्यदिन्वेणं संघयणेणं, दिव्वेणं, संठाणेणं, दिवाए संस्थान, दिव्यऋद्धि, दिव्या ति, दिव्यप्रभा, दिव्यछाया (सामूहिक इड्ढीए, दिवाए जुतीए, दिवाए पभाए, दिव्वाए शोभा), दिव्यअर्ची (रलकान्ति) और दिव्यतेज से दस दिशाओं छायाए, दिव्वाए अच्चीए, दिवेणं तेएणं, दिव्वाए को उद्योतित तथा प्रकाशित करते हैं। लेसाए, दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा। ते णं तत्थ साणं साणं भवणावाससयसहस्साणं, साणं
ये देव अपने अपने लाखों भवनावासों के, अपने अपने हजारों साणं सामाणियसाहस्सीणं, साणं साणं तायत्तीसगाणं, सामानिक देवों के, अपने अपने त्रायस्त्रिश देवों के, अपने अपने साणं साणं, लोगपालाणं, साणं साणं अग्गमहिसोणं, लोकपालों के, अपनी अपनी अग्रमहिषियों के, अपनी अपनी परिसाणं साणं परिसाणं, साणं साणं अणियाणं, साणं षदों के, अपनी अपनी सेनाओं के, अपने अपने सेनापतियों के, साणं अणियाहिवईणं, साणं साणं आयरक्खदेव- अपने-अपने हजारों आत्मरक्षक देवों के और अनेक भवनवासी क्षेत्रों साहस्सीणं अन्नोसि च बहूणं भवणवासीणं देवाण य, के और देवियों के अधिपति हैं, अग्रेसर हैं, स्वामी हैं भर्ता हैं, देवीण य, आहेबच्चं पोरेवच्चं सामित्तं मट्टित्तं महयर- महत्तर हैं और सेनापतियों द्वारा आज्ञा पालन करवाते हैं तथा गत्तं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणा पालेमाणा, ऐश्वर्य धारण किये हुए रहते हैं। महताऽहतनट्ट-गीत-वाइत तंती-तल-ताल तुडिय घणमु- ये देव स्वयं आख्यानकों के नृत्य (कत्थक नृत्य) नित्य देखते यंगपड़प्पवाइयरवेणं दिव्वाई भोग-भोगाई भुंजमाणा हैं, गीत सुनते हैं, बजती हुई वीणा तल (करतल) ताल अटित विहरंति।
(वेणु-बंसरी) की तथा वाद्य बजाने में कुशल व्यक्तियों द्वारा बजाये गये मृदंग की मेघ सम महान गम्भीर ध्वनियाँ सुनते हुए और
दिव्य भोग भोगते हुए रहते हैं । -पण्ण० पद० २, सु० १७७ ।
१. १०.."देवाणं सरीरगा किसंघयणी पण्णता? उ. गौयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी पण्णत्ता । नेवट्टि, नेव छिरा, नवि हारु, णेव संघयणमस्थि ।
जे पोग्गला इट्ठा कता जाव ते तेसि संघातत्ताए परिणमंति। -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० २१४ । २. क-जीवा०प०३, उ० १, सु० ११६ ।
ख-भग० स० २, उ० ७, सु० २।