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अधोलोक
गणितानुयोग
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खेमा सिवा किंकरामरदंडोवरक्खिया लाउल्लोइय- महिया ।
(ये भवन) क्षेम (उपद्रवरहित) हैं, शिव (मंगलरूप) हैं । किंकर (द्वारपाल) देवों के दण्ड से सुरक्षित हैं। लीपन तथा कलई की सफेदी से सुशोभित हैं।
(द्वारों के दोनों ओर) गोशीर्ष तथा रक्तचन्दन के गाढे लेपसे लिप्त पाँचों अंगुलियों के छापे दिये हुए हैं। चन्दन-कलश रखे
गोसीस सरस-रत्तचंदणदद्दरदिण्ण पंचंगुलितला। उवचिय-चंदणकलसा।
चंदण घड-सुकय-तोरण-पडिदुवारदेसभागा।
तोरण तथा लघु द्वारों का एक भाग चन्दन-घटों से सुशो
भित हैं। आसत्तोसत्त - विउलवट्टवग्घारिय - मल्लदाम-कलावा विस्तृत वृत्ताकार चन्दोवे के भूमितल पर्यन्त लम्बी लटकती पंचवण्ण-सरस-सुरहि-मुक्क पुष्फपुंजोवयार कलिया। हुई पुष्पमालाएँ हैं, पाँच वर्गों के सुन्दर सुगन्धित पुष्पपुँजों की
शोभा से युक्त हैं। कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क - धूव मघमघेतगंधुद्धया- श्रेष्ठ कालागुरु कुंदुरुक्क और तुरुष्क धूप के मनोहर उत्कट भिरामा सुगंधवरगंधगंधिया गंधवट्टिभूया। गन्ध से महकते हुए हैं। श्रेष्ठ सुगन्ध से सुगन्धित हैं। सुगन्धित
द्रव्यों की गुटिका जैसे हैं। अच्छरगण-संघ-संविगिण्णा दिव्व तुडित-सद्द संपणदिता (ये भवन) अप्सराओं के समूह से व्याप्त हैं, दिव्य वाद्यों को . सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया ध्वनियों से गुंजित हैं। सब रत्नमय हैं, अति स्वच्छ, स्निग्ध, कोमल णिम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पहा सस्सिरिया घिसे हुए हैं। साफ किये हुए हैं, निर्मल निष्पंक निरावरण कान्ति समरिया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा वाले हैं । प्रभा वाले हैं, किरणों वाले हैं, उद्योत वाले हैं, मन प्रसन्न पडिरूवा-एत्थ णं भवणवासीणं देवाणं पज्जत्ता- वाले हैं, दर्शनीय हैं, अत्यन्त सुन्दर हैं और समान सौन्दर्य वाले ऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता।
हैं। इनमें पर्याप्त तथा अपर्याप्त भवनवासी देवों के स्थान कहे
गये हैं। [२] उववाएणं लोगस्स असंखेज्जइभागे,
[२] लोक के असंख्यातवें भाग में (ये भवनवासी देव) उत्पन्न
होते हैं। समुग्धाएणं लोगस्स असंखेज्जइभागे, ___लोक के असंख्यातवें भाग में (ये भवनवासी देव) समुद्घात
करते हैं। सटाणेणं लोगस्स असंखेज्जइभागे-तत्थ णं बहवे लोक के असंख्यातवें भाग में इन (भवनवासी देवों) के अपने
भवणवासी देवा परिवसंति, तं जहा- स्थान हैं । इनमें अनेक भवनवासी देव रहते हैं-यथा गाहा
गाथार्थअसुरा, नाग, सुवण्णा, विज्जू, अग्गी य दीव उदही य।। १. असुरकुमार, २. नागकुमार, ३. सुपर्णकुमार, ४. विद्युदिसि, पवण, थणियनामा, दसहा एए भवणवासी ॥ त्कुमार, ५. अग्निकुमार, ६. द्वीपकुमार, ७. उदधिकुमार,
८. दिक्कुमार, ६. पवनकुमार और १०. स्तनितकुमार । ये दस
भवनवासी देव हैं। १. चूडामणिमउडरयण,
१. असुरकुमार के मुकुट में - चूडामणि रत्न का चिह्न है । २. मूसण-णागफड,
२. नागकुमार के मुकुट में-नाग के फण का चिह्न है । ३. गरुल,
३. सुपर्णकुमार के मुकुट में-गरुड का चिह्न है। ४. वइर,
४. विद्युत्कुमार के मुकुट में-वज्र का चिह्न है। ५. पुण्णकलसविउप्फेस,
५. अग्निकुमार के मुकुट में-पूर्ण कलश का चिह्न है।
१.
(ख) भग० स० १३, उ०२, सु०२।
(क) ठाणं० १०, सु० ७३६ । (ग) उत्त० अ० ३६, गा० २०६ ।।