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लोक-प्रज्ञप्ति
अधोलोक
सूत्र १५२-१५३
उ० गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
(१) आवलिय-पविट्ठा य। (२) आवलिय-बाहिरा य । तत्थणं जे ते आवलिय-पविट्ठा ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-वट्टा, तंसा, चउरंसा। तत्थ णं जे ते आवलिय-बाहिरा ते णाणासंठाण- संठिया पण्णत्ता, तं जहा१. अयकोट-संठिया, २. पिटुपयणग-संठिया, ३. कंडू-संठिया, ४. लोही-संठिया, ५. कडाह-संठिया, ६. थाली-संठिया, ७. पिहडग-संठिया, ८. किमियड-संठिया, ९. किन्नपुडग-संठिया, १०. उडव-संठिया, ११. मुरव-संठिया, १२. मुयंग-संठिया, १३. नंदिमुयंग-संठिया, १४. आलिंगक-संठिया, १५. सुघोस-संठिया, १६. बदरय-संठिया, १७. पणव-संठिया, १८. पडह-संठिया, १६. भेरी-संठिया, २०. झल्लरी-संठिया, २१. कुतुंबक-संठिया २२. नालि संठिया। एवं जाव तमाए। प० अहे सत्तमाए णं भंते ! पुढवीए णरका किसंठिया
पण्णत्ता? उ० गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता. तं जहा(१) वट्ट य, (२) तंसा य ।
-जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ८२ ।
उ. हे गौतम ! दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा(१) आवलिकाप्रविष्ट । (२) आवलिकाबाह्य ।
इनमें जो आवलिका प्रविष्ट हैं वे तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-१. वृत्त (गोल), २. त्रिकोण, और ३. चतुष्कोण ।
तथा जो आवलिका बाह्य हैं वे नाना (अनेक) संस्थानों में स्थित कहे हैं, यथा
१. अयकोष्ठ-संस्थान, २. पिष्टपचनक-संस्थान, ३. कंडू-संस्थान, ४. लोही-संस्थान, ५. कटाह-संस्थान, ६. थाली-संस्थान, ७. पिहडक-संस्थान, ८. कृमिपट-संस्थान, ६. किन्नपुटक-संस्थान, १०. उडव-संस्थान, ११. मुरज-संस्थान, १२. मृदंग-संस्थान, १३. नंदिमृदंग-संस्थान, १४. आलिंगक-संस्थान, १५. सुघोषा संस्थान, १६. दर्दरक-स्थान, १७. पणव-संस्थान, १८. पटह-संस्थान, १६. भेरी-संस्थान, २०. झल्लरी-संस्थान, २१. कुतुंबक-संस्थान, २२. नालि संस्थान । इसी प्रकार यावत् तमःप्रभा (छठी पृथ्वी) पर्यन्त है।
प्र० हे भगवन् ! नीचे सप्तम पृथ्वी में नरकावास किस (संस्थान) के कहे गये हैं ?
उ० हे गौतम ! दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा(१) वृत्त और (२) त्रिकोण ।
११.०९
गरगाणं वण्णाइं
नरकावासों के वर्णादि१५३ : प० इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरया केरिसया १५३ :प्र. हे भगवन् ! इस रत्नप्रमा पृथ्वी के नरकावास कैसे वण्णेणं पण्णता?
वर्ण के कहे गये हैं ? उ. गोयमा ! काला कालावभासा गंभीरलोमहरिसा उ. हे गौतम ! काले, कालावभास (काली कान्ति) वाले भीमा उत्तासणया परमकिण्हा वण्णणं पण्णत्ता। गम्भीर रोम हर्षवाले (देखने पर अत्यधिक रोमांच करनेवाले)
भयानक, त्रास उत्पन्न करनेवाले, परमकृष्ण वर्णवाले कहे गये हैं। एवं जाव अधे सत्तमाए।
इसी प्रकार यावत् नीचे सप्तम पृथ्वी पर्यन्त है। प० इमीसे णं भंते ! रयणप्पमाए पुढवीए णरगा केरिसया प्र. हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावास कैसी ___ गंधणं पण्णता?
गन्ध वाले कहे गये हैं ? उ० गोयमा ! से जहा नामए अहिमडेति वा गोमडेति उ० हे गौतम ! जैसे सर्प का मृतकलेवर, गौ का मृतकलेवर,
वा सुणग-मडेति वा मज्जार-मडेति वा मणुस्स-मडेति श्वान (कुत्ते) का मृतकलेवर, मार्जार (बिल्ली) का मृतकलेवर. वा महिस मडेति वा मुसग-मडेति वा आस-मडेति मनुष्य का मृतकलेवर, महिष (भैंस) का मृतकलेवर, हाथी का वा हस्थि-मडेति वा सीह-मडेति वा वग्ध-मडेति वा मृतकलेवर; सिंह का मृतकलेवर, व्याघ्र का मृतकलेवर, बक विग-मडेति वा दीविय-मडेति वा;
(भेड़िया) का मृतकलेवर, या द्वीपिक (चीता) का मृतकलेवर;
anana