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________________ सूत्र १५०-१५२ अधोलोक गणितानुयोग ७१ १५० : सीमंतए णं नरए पणयालीसं जोयणसयसहस्साई आयाम- १५० : (प्रथम नरक के प्रथम प्रस्तट में) सीमंतक नामका नारकाविक्खंभेणं पण्णत्ता। वास पैंतालीस लाख योजन के आयाम-विष्कम्भ वाला कहा -सम० ४५, सु० २। गया है। १५१:५० इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरका केमहा- १५१ : प्र. हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकावास कितने लिया पण्णता? विशाल कहे गये हैं ? उ० गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दोवे सव्व-दीव-समुद्दाणं उ० हे गौतम ! यह जम्बूद्वीप सब द्वीप-समुद्रों के मध्य में हैं, सव्वन्भंतराए सव्व-खुड्डाए वट्ट तेल्लापूय-संठाण- सबसे छोटा है, तेल में तले हुए पुये के समान वृत्त (गोल) संस्थान संठिए, वट्ट रहचक्कवाल-संठाणसंठिए, वट्ठ पुक्खर- से संस्थित है, रथ के पहिये के समान वृत्त संस्थान से संस्थित है, कणिया-संठाणसंठिए, वट्ट पडिपुण्णचंद-संठाण- पुष्करकणिका (कमल का मध्यभाग) के समान वृत्त संस्थान संठिए, एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं तिण्णि से सं स्थित है, प्रतिपूर्ण चन्द्र के समान वृत्त संस्थान से संस्थित है, जोयणसयसहस्साइं सोलससहस्साई दोण्णि य सत्ता- इसका आयाम-विष्कम्भ एकलाख योजन का है तथा तीनलाख वीसे जोयणसए तिणि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोश एक सौ अट्ठाईस तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचिविसेसाहिए परि- धनुष तेरह अंगुल और आधे अंगुल से कुल अधिक परिधि वाला क्खेवेणं पण्णत्ते। कहा गया है। देवे णं महिड्ढोए जाव महाणुभागे जाव इणामेव एक महधिक यावत् महानुभाग देव यावत् अभी आया अभी इणामेवत्ति कटु इमं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं आया यों (कहता हुआ) तीन चुटकियों में इस पूर्वोक्त सम्पूर्ण जम्बू अच्छरानिवाएहि तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ताणं हव्व- द्वीप नामक द्वीप की इक्कीसवार परिक्रमा करके शीघ्र आ जावे । मागच्छेज्जा से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरिताए चवलाए चंडाए प्र० (दौड़ लगाने में ऐसी शीघ्र गति वाला) वह देव उत्कृष्ट सिग्घाए उद्ध्याए जयणाए [छेगाए] दिव्वाए दिव्व- त्वरित चपल चण्ड शीघ्र उद्दत वेगयुक्त, दक्ष दिव्य देवगति से गतीए वीतिवयमाणे बीतिवयमाणे जहण्णेणं एगाहं चलता-चलता जघन्य एक दिन, दो दिन, तीन दिन में उत्कृष्ट छ.. वा, दयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं छम्मासेणं वीति- मास में (क्या उन नारकावासों को) पार कर सकता है? वएज्जा? उ० अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीतिवएज्जा। उ० कुछ नरकावासों को पार कर सकता है और कुछ नारकावासों को नहीं पार कर सकता है। एमहालता णं गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए है गौतम ! इस रत्नप्रभा पथ्वी के नरकावास इतने विशाल पुढवीए गरगा पण्णत्ता। कहे हैं। एवं जाव अहेसत्तमाए। इसी प्रकार यावत् नीचे सप्तम पृथ्वी पर्यन्त है। -जीवा० पडि० ३, उ०१, सु०८४ । णरगाणं संठाणं नरकावासों के संस्थान१५२:५० इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरका कि- १५२ : प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावास किस संठिया पण्णत्ता? संस्थान के कहे गये हैं ? प्रथम नरक के प्रथम प्रस्तट में सीमंतक नरकावास पैंतालीस लाख योजन का लम्बा चौड़ा है, इसलिए दिव्य देव गति द्वारा पार किया जा सकता है किन्तु असंख्य योजन लम्बे-चौड़े नरकावास दिव्य देवगति द्वारा भी छ मास की अवधि में पार नहीं किये जा सकते हैं। सप्तम नरक के पाँच नरकावासों में मध्य (तृतीय) नरकावास केवल एकलाख योजन के आयाम-विष्कम्भ वाला है। इस लिए दिव्य देवगति द्वारा अल्पावधि में पार किया जा सकता है किन्तु शेष चार नरकावास असंख्य योजन लम्बे-चौड़े हैं अतः वे छ मास की अवधि में पार नहीं किया जा सकते हैं। २.
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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