________________
७०
लोक-प्रज्ञप्ति
अधोलोक
सूत्र १४८-१४६
णरगाणं-पमाणं१४८:५० इमोसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरगा केवतियं
बाहल्लेणं पण्णता? उ० गोयमा ! तिण्णि जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ता, तं जहा-हेढा घणा सहस्सं, मज्झे झुसिरा सहस्सं, उप्पि संकुइया सहस्सं। एवं जाव अहेसत्तमाए।
-जीवा० पडि० ३, उ०१, सु० ८२ ।
नरकावासों का प्रमाण१४८ : प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों की मोटाई कितनी कही गई हैं ?
उ० हे गौतम ! तीन हजार योजन की मोटाई कही गई है। यथा-नीचे एक हजार योजन धन हैं, मध्य में एक हजार योजन पोले हैं और ऊपर एक हजार योजन संकुचित है।
इसी प्रकार यावत् नीचे सप्तम पृथ्वी पर्यन्त है।
१४६:५० इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए गरगा केवतियं १४६ : प्र० हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों का आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ता? आयाम-विष्कम्भ (लम्बाई-चौड़ाई) कितना कहा गया है ? और
उनकी परिधि कितनी कही गई है ? उ० गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
उ. हे गौतम ! (इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावास) दो
प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. संखेज्जवित्थडा य, २. असंखेज्जवित्थडा य। (१) संख्येय विस्तार वाले, और (२) असंख्येय विस्तार वाले, तत्थ णं जे ते संखेज्जवित्थडा ते णं संखेज्जाइं इनमें जो संख्येय विस्तार वाले हैं उनका आयाम-विष्कम्भ जोयणसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयण- संख्येय सहस्रयोजन का है और परिधि भी संख्येय' सहस्रयोजन सहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ता।
की है। तत्थ णं जे ते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाई जो असंख्येय विस्तार वाले हैं उनका आयाम-विष्कम्भ असंख्येय जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, असंखेज्जाइ सहस्र योजन का है और परिधि भी असंख्येय सहस्र योजन की जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ता।
कही गई है। एवं जाव तमाए।
इसी प्रकार यावत् (छठी) तमा (पृथ्वी) पर्यन्त है। प० अहे सत्तमाए णं भंते! पुढवीए णरगा केवतियं आयाम
प्र. हे भगवन् ! नीचे सप्तम पृथ्वी के नारकावासों का विक्खंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ता ? आयाम-विष्कम्भ कितना कहा गया है और उनकी परिधि कितनी
कही गई है ? उ० गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
उ. हे गौतम ! (नीचे सप्तम पृथ्वी के नारकावास) दो
प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. संखेज्जवित्थडे' य, २. असंखेज्जवित्थडा य ।
(१) संख्येय विस्तारवाले और (२) असंख्येय विस्तारवाले । तत्थ णं जे ते संखेज्जवित्थडे से णं एक्कं जोयणसय
इनमें जो संख्येय विस्तार वाले हैं उनका आयाम-विष्कम्भ सहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साई
एक लाख योजन का है और तीन लाख सोलह हजार दो सौ सोलससहस्साई दोन्नि य सत्तावीसे जोयणसए तिन्नि सत्ताईस योजन, तीन कोस एकसौ अठाईस धनुष कुछ अधिक साढ़े कोसे य अट्ठावीसं च धणुसतं तेरस य अंगुलाई अद्ध- तेरह अंगूल की परिधि वाले कहे गये हैं। गुलयं च किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते । तत्थ णं जे ते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाई जो असंख्येय विस्तार वाले हैं। उनका आयाम-विष्कम्भ जोयण-सयसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, असंखेज्जाई असंख्य लाख योजन का है और परिधि भी असंख्य लाख योजन जोयण सयसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ता ।
की कही गई है। -जीवा० पडि० ३, उ० १, सु० ८२।
१-२. भग० स० १३, उ० १, सु० ५-११ तथा १७ ।