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________________ सूत्र १४७-टिप्पण अधोलोक गणितानुयोग ६६ इस प्रकार प्रथम प्रस्तट में आवलिकाप्रविष्ट नरकावास १२५ है। शेष ६ प्रस्तटों में से प्रत्येक प्रस्तट की प्रत्येक दिशा-विदिशाओं में एक-एक नरकावास कम होने पर प्रत्येक प्रस्तट में आठआठ नरकावास कम हो जाते हैं। प्रथम प्रस्तट में १२५ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। द्वितीय प्रस्तट में ११७ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। तृतीय प्रस्तट में १०६ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। चतुथं प्रस्तट में १०१ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। पंचम प्रस्तट में ६३ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। षष्ठ प्रस्तट मे ८५ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं । सप्तम प्रस्तट में ७७ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं । इस प्रकार सात प्रस्तटों में आवलिकाप्रविष्ट नरकावास ७०७ हैं और आवलिकाबाह्य नरकावास नव लाख निन्यानवे हजार दो सौ तिरानवे (S,६६,२६३) हैं। आवलिका प्रविष्ट और आवलिका बाह्य नरकावासों की संयुक्त संख्या दस लाख (१००००००) है। गाहा–तेणउया दोण्णिसया, नवनउइसहस्स नव य लक्खा य । पंकाए सेढिगया, सत्तसया हुंति सत्तहिया ।। (५) धूमप्रभा में पाँच प्रस्तट हैं प्रथम प्रस्तट की पूर्वादि चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में , आवलिकाप्रविष्ट नरकावास है और प्रत्येक विदिशा में ८, ८ आवलिका प्रविष्ट नरकावास है। मध्य में एक नरकेन्द्र (प्रमुख) नरकावास है । इस प्रकार प्रथम प्रस्तट में ६६ आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं । शेष चार प्रस्तटों में से प्रत्येक प्रस्तट की प्रत्येक दिशा-विदिशा में एक-एक नरकावास कम होने पर प्रत्येक प्रस्तट में ८,८ नरकावास कम हो जाते हैं। प्रथम प्रस्तट में ६६ आवलिका प्रविष्ट नरकावास है। द्वितीय प्रस्तट में ६१ आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। तृतीय प्रस्तट में ५३ आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। चतुर्थ प्रस्तट में ४५ आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। पंचम प्रस्तट में ३७ आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। इस प्रकार पाँच प्रस्तटों में आवलिकाप्रविष्ट नरकावास २६५ हैं और आवलिकाबाह्य (प्रकीर्णक) नरकावास २,६९,७३५ हैं। आवलिकाप्रविष्ट और आवलिकाबाह्य नरकावासों की संयुक्त संख्या ३००००० तीन लाख है। गाहा-सत्तसया पणतीसा, नवनवइ सहस्स दो य लक्खा य । धूमाए सेढिगया, पणसट्ठा दो सया होति ॥ तमःप्रभा में तीन प्रस्तट हैंप्रथम प्रस्तट की पूर्वादि चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में ४, ४ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं और प्रत्येक विदिशा में ३, ३ आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। मध्य में एक नरकेन्द्रक (प्रमुख) नरकावास हैं। इस प्रकार प्रथम प्रस्तट में २६ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। शेष दो प्रस्तटों में से प्रत्येक प्रस्तट की प्रत्येक दिशा-विदिशा में एक-एक नरकावास कम होने पर प्रत्येक प्रस्तट में ८, ८ नरकावास कम हो जाते हैं। प्रथम प्रस्तट में २६ आवलिकाप्रविष्ट नरकाबास हैं। द्वितीय प्रस्तट में २१ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं । तृतीय प्रस्तट में १३ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। इस प्रकार तीन प्रस्तटों में ६३ नरकावास आवलिकाप्रविष्ट हैं और ६६, ६३२ नरकावास आवलिका बाह्य हैं। आवलिका प्रविष्ट और आवलिका बाह्य नरकावासों की संयुक्त संख्या ६६,६६५ हैं । गाहा–नवनउई य सहस्सा, नव चेव सया हवंति बत्तीसा। पुढवीए छट्टीए, पइण्णगाणेस संखेवो ॥ * यह टिप्पण आगमोदय समिति प्रकाशित जीवाभिगमप्रतिपत्ति ३, उद्देशक १, सूत्र ७० की संस्कृत टीका के आधार से लिखा गया है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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