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सूत्र १४७
अधोलोक
गणितानुयोग
जाव अहे सत्तमाए पंच अणुत्तरा महति-महालया महाणरगा पण्णत्ता, तं जहा१, काले, २. महाकाले, ३. रोरुए, ४. महारोरुए, ५. अपइट्ठाणे।
-- जीवा० पडि० ३, उ० १, सु०७० ।
यावत् नीचे सातवीं पृथ्वी में पाँच सबसे बड़े अति विस्तृत महानरकावास कहे गये हैं, यथा
(१) काल, (२) महाकाल, (३) रोरुक, (४) महारोरुक, (५) अप्रतिष्ठान ।
पाँच नरकावासों का दिशा विभाग१. क-गाहा–पुव्वेण होइ कालो, अवरेणं, अपइट्ठ, महकालो।
रोरू दाहिणपासे, उत्तरपासे महारोरू। ख–रत्नप्रभा से लेकर तमःप्रभा पर्यंत छह पृथ्वियों में से प्रत्येक पृथ्वी में दो प्रकार के नरकावास हैं । (१) आवलिका
प्रविष्ट और (२) आवलिकाबाह्य (प्रकीर्णक विखरे हुए)। (१) रत्नप्रभापृथ्वी में १३ प्रस्तट (भवन की भूमिका तुल्य) हैं।
प्रथम प्रस्तट की पूर्वादि चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में ४६, ४६ आवलिका-प्रविष्ट नरकावास हैं और चार विदिशाओं में से प्रत्येक विदिशा में ४८, ४८ आवलिका प्रस्तट हैं। मध्य में सीमंतक नाम का नरकेन्द्रक (प्रमुख) नरकावास है। इस प्रकार प्रथम प्रस्तट में आवलिकाप्रविष्ट नरकावास ३८९ हैं। शेष बारह प्रस्तटों में से प्रत्येक प्रस्तट की दिशा तथा विदिशाओं में एक-एक नरकावास कम होने पर प्रत्येक प्रस्तट में आठ-आठ नरकावास कम हो जाते हैं। प्रथम प्रस्तट में ३८९ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। द्वितीय प्रस्तट में ३८१ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। तृतीय प्रस्तट में ३७३ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। चतुर्थ प्रस्तट में ३६५ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। पंचम प्रस्तट में ३५७ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं । षष्ठ प्रस्तट में ३४६ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। सप्तम प्रस्तट में ३४१ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास है। अष्ठम प्रस्तट में ३३३ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। नवम प्रस्तट में ३२५ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। दशम प्रस्तट में ३१७ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। एकादश प्रस्तट में ३०६ आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। द्वादश प्रस्तट में ३०१ आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। त्रयोदश प्रस्तट में २६३ आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं । इन तेरह प्रस्तटों में आवलिकाप्रविष्ट नरकावास ४४३३ हैं। और आवलिकाबाह्य (प्रकीर्णक) नरकावास उनतीस लाख पिचानवे हजार पाँच सौ ससठ (२६,६५,५,६७) हैं। आवलिकाप्रविष्ट और आवलिकाबाह्य नरकावासों की संयुक्त संख्या तीस लाख (३००००००) हैं। माहा-सत्तट्ठी पंचसया, पणनउइसहस्स लक्खगुणतीसं ।
रयणाए सेढीगया, चोयालसया उ तित्तीसं ॥ (२) शर्कराप्रभा में ११ प्रस्तट हैं
प्रथम प्रस्तट की पूर्वादि चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में ३६,३६ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं और प्रत्येक विदिशा में ३५, ३५ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। मध्य में एक नरकेन्द्रक प्रमुख नरकावास है। इस प्रकार प्रथम प्रस्तट में आवलिकाप्रविष्ट २८५ नरकावास है।
(क्रमशः)