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लोक-प्रज्ञप्ति
अधोलोक
सूत्र १४२-१४७
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१४२ : चउसु पढवीसु एक्कचत्तालीसं निरयावाससयसहस्सा १४२ : चार पृथ्वियों में इकतालीस लाख नरकावास कहे गये हैं,
पण्णत्ता, तं जहा–रयणप्पभाए, पंकप्पभाए, तमाए, यथा-- रत्नप्रभा, पंकप्रभा, तमःप्रभा और तमस्तमःप्रभा । तमतमाए।
-सम० ४१, सु०२।
१४३: पढम-चउत्थ-पंचमासु पुढवीस तेयालीसं निरयावाससय- १४३ : प्रथम, चतुर्थ तथा पंचम पृथ्वियों में तियालीस लाख सहस्सा पण्णत्ता।
नरकावास कहे गये हैं। -सम० ४३, सु०२।
१४४: पढम-बिइयासु दोसु पुढवीसु पणवन्न निरयावाससय- १४४ : प्रथम तथा द्वितीय, दोनों पृथ्वियों में पचपन लाख नरकासहस्सा पण्णत्ता।
वास कहे गये हैं। -सम० ५५, सु०५।
१४५ : पढम-दोच्च-पंचमासु तिसु पुढवीस अट्रावन निरयावास- १४५ : प्रथम, द्वितीय और पंचम, इन तीनों पृथ्वियों में अठावन सयसहस्सा पण्णत्ता।
लाख नरकावास कहे गये हैं। -सम०५८, सु०१।
'१४६ : चउत्थवज्जासु छसु पुढवीसु चोवतरि निरयावाससय- १४६ : चतुर्थ को छोड़कर शेष छह पृथ्वियों में चौहत्तर लाख सहस्सा पण्णत्ता।
नरकावास कहे गये हैं। -सम०७४, सु० ४।
. पुढवीसु निरयावासा--
पृथ्वियों में नरकावास१४७:५० इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए केवइया निरया- १४७ :प्र० भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने लाख नरकावाससयसहस्सा पण्णता?
वास कहे गये हैं ? उ० गोयमा ! तीसं णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। उ. गौतम ! तीसलाख नरकावास कहे गये हैं।
एवं एएणं अभिलावेणं सवासि पुच्छा, इमा इस प्रकार ऐसे प्रश्नोत्तरों से इस गाथा की व्याख्या गाहा अणुगंतव्वा
करनी चाहिए। (१) तीसा य
रत्नप्रभा में तीस लाख नरकावास हैं। (२) पण्णवीसा
शर्कराप्रभा में पच्चीसलाख नरकावास हैं, (३) पण्णरस
वालुकाप्रभा में पन्द्रहलाख नरकावास हैं, (४) दसेव
पंकप्रभा में दसलाख नरकावास हैं, (५) तिण्णि य हवंति।
धूमप्रभा में तीनलाख नरकावास हैं, (६) पंचूणसयसहस्सं
तमःप्रभा में पाँच कम एकलाख नरकावास हैं, (७) पंचेव अणुत्तरा णरगा।'
तमस्तमःप्रभा में पाँच बहुत बड़े नरकावास है,
१. (क) सम० सु० १५०।
(ग) पण्ण० पद २, सु० १७४ ।
(ख) भग० स० १, उ० ५, सु० १, २ ।