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________________ सूत्र १३६-१४१ अधोलोक गणितानुयोग ६५ अप्पइट्ठाणणरयस्स आयाम-विक्खंभा अप्रतिष्ठान नरकावास का आयाम-विष्कंभ१३६ : अप्पइट्ठाणे नरए एग जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं १३६ : अप्रतिष्ठान नरकावास एक लाख योजन का लम्बा चौड़ा पण्णत्ते। कहा गया है। -सम० १, सु० २० । सत्तपुढवीणं बाहल्लं सप्त पृथ्वियों का बाहल्य१३७ : गाहा १३७ : गाथार्थ :(१) आसीतं १. रत्नप्रभा पृथ्वी का बाहल्य-१,८०,००० योजन हैं। (२) बत्तीसं २. शर्कराप्रभा पृथ्वी का बाहल्य-१,३२,००० योजन हैं। (३) अट्ठावीसं च होइ ३. वालुकाप्रभा पृथ्वी का बाहल्य-१,२८,००० योजन हैं। (४) वीसं च । ४. पंकप्रभा पृथ्वी का बाहल्य-१,२०,००० योजन हैं। (५) अट्ठारस ५. धूमप्रभा पृथ्वी का बाहल्य-१,१८,००० योजन हैं। (६) सोलसगं ६. तमःप्रभा पृथ्वी का बाहल्य-१,१६,००० योजन हैं। (७) अठ्ठत्तरमेव हिट्ठिमया ॥१॥ ७. नीचे की तमस्तमप्रभा पृथ्वी का बाहल्य-१,०८,००० -पण्ण० पद० २, सु० १७४ । योजन हैं। सत्तपुढविनिरयावासाणं ठाणं सप्त पृथ्वी स्थित नरकावासों के स्थान१३८: गाहाओ १३८ : गाथार्थ :(१) अडहुत्तरं च । १. रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावास १,७८,००० योजन में हैं। . (२) तीसं २. शर्कराप्रभा पृथ्वी के नरकावास १,३०,००० योजन में हैं । (३) छन्वीसं चेव सतसहस्सं तु। ३. वालुकाप्रभा पृथ्वी के नरकावास १,२६,००० योजन में हैं। (४) अट्ठारस ४. पंकप्रभा पृथ्वी के नरकावास १,१८,००० योजन में हैं। (५) सोलसगं ५. धूमप्रभा पृथ्वी के नरकावास १,१६,००० योजन में हैं। (६) चोद्दसमहियं तु छट्ठीए ॥२॥ ६. तमःप्रभा पृथ्वी के नरकावास १,१४,००० योजन में हैं। (७) अतिवण्णसहस्सा उवरिमाहे वज्जिऊणतो मणियं । ७. साढ़े बावन हजार योजन ऊपर और नीचे छोड़कर मध्य मझे उ तिसु सहस्सेसु होंति नरगा तमतमाए ॥३॥ में तमस्तमःप्रभापृथ्वी के नरकावास-३,००० योजन में है -पण्ण० पद० २, सु० १७४ । कहा है। निरयावासाणं संजुत्तसंखा नरकावासों की संयुक्त संख्या१३६ : पढम-पंचम-छट्ठी-सत्तमीसु चउसु पुढवीसु चोत्तीसं निरया- १३६ : प्रथम, पंचम, षष्ठ और सप्तम, इन चार पृथ्वियों में वाससयसहस्सा पण्णत्ता। (सब को मिलाकर) चौतीस लाख नरकावास कहे गये हैं । - सम० ३४, सु०६।। १४०: बितिय-चउत्थीसु दोसु पुढवीसु पणतीसं निरयावाससय- १४० : द्वितीय तथा चतुर्थ, इन दोनों पृश्वियों में पैंतीस लाख सहस्सा पण्णत्ता। नरकावास कहे गये हैं। -सम० ३५, सु०६। १४१: दोच्च-चउत्थ-पंचम छट्ठ-सत्तमासु णं पंचसु पुढवीसु एगूणा- १४१ : द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ और सप्तम, इन पाँचों पृथ्वियों चत्तालीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता । में उनतालीस लाख नरकावास कहे गये हैं। -सम०३६, सु०३।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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