SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र १३३-१३४ अधोलोक गणितानुयोग ६३ उ० [१] गोयमा ! धूमप्पभाए पुढवीए अट्ठारसुत्तर- उ० [१] हे गौतम ! एक लाख अठारह हजार योजन की जोयणसयसहस्सबाहल्लाए' उरि एगं जोयण- मोटाई वाली धूमप्रभा के ऊपर से एक हजार योजन अन्दर प्रवेश सहस्सं ओगाहित्ता, हिट्ठा वेगं जोयणसहस्सं करने पर और नीचे एक हजार योजन छोड़ने पर एक लाख सोलह वज्जेत्ता मझे सोलसुत्तरे जोयणसयसहस्से- हजार योजन प्रमाण मध्य भाग में धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों के एत्य गं धूमप्पभापुढविनेरइयाणं तिन्नि तीन लाख नरकावास हैं-ऐसा कहा गया है। निरयावाससयसहस्सा भवंतीतिमक्खायं ।। ते णं जरगा अंतो वट्टा बाहि चउरंसा (जाव) ये नरकावास अन्दर से वृत्ताकार (गोलाकार) हैं, बाहर से असुभानरगेसु वेयणाओ-एत्थ णं धूमप्पमा चोकोर हैं (यावत्) इन नरकावासों में वेदना भी अशुभ है। इन पुढ विनेरयाइंपज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। नरकावासों में धमप्रभा पृथ्वी के पर्याप्त तथा अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहे गये हैं। [२] उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइमागे, [२] लोक के असंख्यातवें भाग में ये नरयिक उत्पन्न होते हैं । समुग्धाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, लोक के असंख्यातवें भाग में ये नैरयिक समुद्घात करते हैं। सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे-तत्थ णं लोक के असंख्यातवें भाग में इन नैरयिकों के अपने स्थान हैं, बहवे धूमप्पमा पुढविनेरइया परिवसंति। इनमें धूमप्रभा पृथ्वी के अनेक नैरयिक रहते हैं । काला (जाव) णरगमयं पच्चणुभवमाणा ये नैरयिक कृष्ण वर्ण वाले हैं (यावत्) नरक भयका अनुभव विहरति । करते रहते हैं। -पण्ण पद० २, सु० १७२ । तमप्पभानेरइयाणं ठाणाइं-- तमःप्रभा के नैरयिक स्थान१३४:५० [१] कहि णं भंते ! तमप्पभापुढविनेरइयाणं १३४ : प्र० [१] हे भगवन् ! तमःप्रभा पृथ्वी के पर्याप्त और पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता? अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ पर कहे गये हैं ? [२] कहि णं भंते ! तमप्पभापुढविनेरइया परि- [२] हे भगवन् ! तमःप्रभा पृथ्वी के नैरयिक कहाँ रहते हैं ? वसंति ? उ० [१] गोयमा ! तमप्पभाएपुढवीए सोलसुत्तर उ० [१] हे गौतम ! एक लाख सोलह हजार योजन की जोयणसयसहस्स बाहल्लाए उरि एगं जोयण- मोटाई वाली तमःप्रभा पृथ्वी के ऊपर से एक हजार योजन अन्दर सहस्सं ओगाहित्ता, हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं प्रवेश करने पर और नीचे एक हजार योजन छोड़ने पर एक लाख वज्जेत्ता, मज्झे चोद्दसुत्तरे जोयणसयसहस्से- चौदह हजार योजनप्रमाण मध्यभाग में तमःप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों एत्य णं तमप्पमा पुढविनेरइयाणं एगे पंचूणे के पाँच कम एक लाख नरकावास हैं-ऐसा कहा गया है। परगावाससयसहस्से भवंतीतिमक्खायं ।' ते णं णरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा (जाव) ये नरकावास अन्दर से गोलाकार हैं, बाहर से चोकोर हैं असमा नरगेसु वेयणाओ-एत्थ णं तमप्पमा (यावत्) इन नरकावासों में वेदना भी अशुभ है। इन नरकावासों पढविनेरइयाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा में तमःप्रभा पृथ्वी के पर्याप्त तथा अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान पण्णत्ता। कहे गये हैं। [२] उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, [२] लोक के असंख्यातवें भाग में ये नैरयिक उत्पन्न होते हैं। समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइमागे, लोक के असंख्यातवें भाग में ये नैरयिक समुद्घात करते हैं। २. सम० १८, सु०७। (क) ठाणं ३, उ० १, मु. १४७ । जीवा०प०३, उ०१, सु० ८१ । जीवा०प० ३, उ० १, सु० ८१ । (ख) भग० स० १३, उ० १, सु० १४ । ४. भग० स० १३, उ०१, सु०१५। ५.
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy