SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र १२६-१२७ अधोलोक गणितानुयोग ५६ नेरइयठाणाई नैरयिकों के स्थान१२६ : प० [१] कहि णं भंते ! नेरइयाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं १२६ : प्र० [१] हे भगवन् ! पर्याप्त तथा अपर्याप्त नैरयिकों के ठाणा पण्णता? स्थान कहाँ पर कहे गये हैं ? [२] कहि णं भंते ! नेरइया परिवसंति ? [२] हे भगवन् ! वे नैरयिक कहाँ रहते हैं ? उ० [१] गोयमा ! सट्टाणेणं सत्तसु पुढवीसु, तं जहा- उ० [१] हे गौतम ! सात पृथ्वियों में इन नैरयिकों के अपने (१) रयणप्पभाए। (२) सक्करप्पभाए। अपने स्थान हैं, यथा-(१) रत्नप्रभा, (२) शर्कराप्रभा, (३) (३) वालुयप्पभाए। (४) पंकप्पभाए। वालुकाप्रभा, (४) पंकप्रभा, (५) धूमप्रभा, (६) तमःप्रभा, (७) (५) धूमप्पभाए। (६) तमप्पभाए। तमस्तमःप्रभा (७) तमतमप्पभाए। एत्थ णं णेर इयाणं चउरासोति णिरयावाससयसहस्सा इन पृथ्वियों में नैरयिकों के चौरासी लाख नरकावास हैंभवंतीतिमक्खायं ।' ऐसा कहा गया है। तेणं गरगा अंतो बट्टा, बाहिं चउरंसा, अहे खुरप्पसंठा- वे नरकावास अन्दर से वृत्त (गोल) हैं, बाहिर से चतुष्कोण : संठिया, णिच्चंधयारतमसा, ववगयगह-चंद-सूर- हैं, नीचे से तीक्ष्ण खुरपे जैसी आकृति वाले हैं । प्रकाश के अभाव णक्ख-त्तजोइसपहा, से सदा अन्धकार वाले हैं क्योंकि ग्रह-चन्द्र-सूर्य-नक्षत्र-इन ज्योतिषी । देवों के (संचार) पथ वहाँ नहीं है। मेद-वसा-पूय-रुहिर-मंस चिक्खल्ललित्ताणुलेवणतला, उन (नरकावासों) के तल मेद-वसा-पूय-पटल-रुधिर-मांस के असुई, वीसा, परमदुब्भिगंधा, कीचड़ से लिप्त हैं, अशुचिविष्ठा जैसी अत्यन्त दुर्गन्ध वाले हैं। काऊअगणिवण्णाभा, कक्खडफासा, दुरहियासा, कापोता जैसे वर्ण वाले हैं, कर्कश स्पर्श वाले हैं, असह्य हैं। असुभा गरगा, असुभा गरगेसु वेयणाओ, एत्थ णं अतएव ये नरकावास अशुभ हैं। इन नरकावासों में वेदना भी अशुभ णेरइयाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। है-इन नरकावासों में पर्याप्त तथा अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान । कहे गये हैं। [२] उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, [२] लोक के असंख्यातवें भाग में ये नरयिक उत्पन्न होते हैं। ' समुग्धाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, लोक के असंख्यातवें भाग में ये नैरयिक समुद्घात करते हैं। सद्राणेणं लोयस्स असंखेज्जइमागे, एत्थ णं बहवे लोक के असंख्यातवें भाग में इन नैरयिकों के अपने-अपने रइया परिवसंति । स्थान हैं। इनमें अनेक नैरयिक रहते हैं। काला कालोभासा गंभीरलोम-हरिसा भीमा उत्ता- ये नैरयिक कृष्ण वर्णवाले हैं, कृष्ण कान्तिवाले हैं, जिनके सणगा परमकण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो !' देखने से अत्यधिक रोमांच हों-ऐसे भयंकर हैं त्रास उत्पन्न करने वाले हैं, हे आयुष्मन् ! श्रमण ! ये नैरयिक वर्ण से अत्यन्त कृष्ण वर्ण वाले हैं। तेजतत्थ णिच्चं भीता, णिच्चं तत्था, णिच्चं उन नरकावासों में ये नैरयिक नित्य भयभीत रहते हैं, नित्य तसिया, णिच्चं उब्विग्गा, णिच्चं परममसुहं संबद्ध त्रस्त रहते हैं, (परमाधार्मिकों द्वारा या परस्पर) नित्य त्रस्त रहते णरगमयं पच्चणुभवमाणा विहरंति।। हैं, नित्य उद्विग्न रहते हैं और नित्य (निरन्तर) अशुभ-सम्बद नरक __ -- पण्ण० पद० २, सु० १६७। भय का अनुभव करते रहते हैं। . रयणप्पभापुढविनेरइयठाणाइं रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक स्थान१२७ : प० [१] कहि णं भंते ! रयणप्पभापुढविणेरइयाणं पज्ज- १२७ : प्र० [१] हे भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी के पर्याप्त और त्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता? अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ पर कहे गये हैं ? (क) सम० ८४, सु०१। (ख) भग० स०६, उ०६, सु० १-१-२]। (ग) भग० स०१, उ०६, सु०१। २. जीवा०प० ३, उ०१, सु० ८७। ३. जीवा०प० ३, उ०१, सु० ८६ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy